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शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

490..नहीं आया समझ में कहेगा फिर से पता है भाई पागलों का बैंक अलग और खाता अलग इसीलिये बनाया जाता है

सादर अभिवादन स्वीकार करें
 
मुलाहिज़ा फ़रमाएँ आज की पसंदीदा कड़ियाँ...


कैदी भी हिंदुस्तान के अब जंग माँगते हैं.
मोदी रहो अब चुप सब दिल से ठानते है़.
हिंदु स्थान का हर इक बाशिंदा चाहता है
बस पाक को मिटा दो वो सबक मांगता है.


मैं गरीब का बेटा ..
संगिनी मेरी गरीबी है..
मैं चलता हूँ नंगे पांव ..
दर्द मेरा हमसफर है ,
लाचारी बहन मेरी ..
दोस्त गम का साया है ...
झूठ बोला कहने सब ..
वो मुस्कुराया है .. 

यौवन की दहलीज पर,यूं रखते ही पांव। 
मन जोगन सा ढूंढता,आज पिया का गांव।

ढूंढ ढूंढ जब थक गई, मिली पेड़ की छांव। 
राह बताते लोग सब,दूर पिया का गांव।।


एक नन्हा फूल कल तक थी कली
आज चकित सी पवन में हिल रही
देख कर वो रंग भरी पांखुरी
मन ही मन निज रूप पर थी खिल रही

चाहे आये आंधी - तूफ़ान होते दो पल के मेहमान 
जब रात ढली है, तो दिन का निकलना भी तय है। .. 
विश्वास की डोर थामे रखती होती वो शक्ति अनजान 
उजाले की सिर्फ आस में ही, अँधेरे से नहीं भय है।


चलो चलें न
उस ओर
जहाँ धर्म की लताएँ न हों
प्रेम की लताएं फैली हों केवल

आज का शीर्षक....

भविष्य में पढ़ने 
लिखने के विभागों 
में उसी तरह 
का पाठ्यक्रम 
चलाया जाता है 
जिसमें आता और 
जाता पैसा माल 
सुरंगों के रास्ते 
निकाला और 
संभाला जाता है 

चलूँ मैं इज़ाज़त लिए बगैर...
काम-धंधे के टाईम पर
ब्लॉग छापने के काम में लगा दिया मुझे
इन पचास दिनों में
काम की भरमार है..
दिग्विजय 




4 टिप्‍पणियां:

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