निवेदन।


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मंगलवार, 31 जनवरी 2023

3655 ..मतलब वही... ग्रहदोष लगता है

 सादर अभिवादन

आखिर सन 2023 की आँखें बाहर देखने लगी
फरवरी की ओर...
इस वसंत को मौसम में एक और चढ़ेगा बुखार
कल से..वो है वैलेंटाइन का

अब देखें रचनाएँ ....




जो कुछ उसके पास है, वह छिन जाने का भय, रिश्तों के टूट जाने का भय अथवा उनके सदा एक सा न बने रहने  का भय। दूसरों के मन में अपने प्रति स्नेह व सम्मान  को खो देने का भय। समाज में अकेले रह जाने का भय और दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका भय।




विहीन प्रणय कविता, तलाशते हैं हम
रेत के नीचे अविदित जलाधार,
जहाँ छुपी रहती है अनंत
प्रीत की उत्पत्ति, धूप -
छाँव की तरह
प्रतिध्वनित
होती है




मेरी लाठी मुझे
सहारा तो देती है,
पर मुझे अच्छा नहीं लगता,
वह जब चलती है,
तो शोर बहुत करती है.




हे
सखी
वसंत
ऋतु आया
सब का मन
नाचे हो मतंग
खुशी से अंग-अंग
भर   गया   उमंग
सखियों के संग
देखूँ हो दंग
प्यारा रंग
अलग
रूप
है





अभी साधने है कई लक्ष्य ,
ज़िम्मेदारी के निभाने है कई चक्र ,
लिखनी कई #इबारत पसीने और खून से ,
अभी रखें दिल को जरा सुकून से ।




"ठीक है दादी ! मैं जरूर बात करुँगी मम्मी-पापा से।पर दादी ! मैंने एक बुक में पढ़ा कि अगर हम अच्छे से नहीं रहते , अपना काम अपने आप नहीं करते , चीजों को अस्त-व्यस्त फैलाकर रखते हैं और घर में जूते-चप्पल सही जगह सलीके से नहीं रखते तो हमारे ग्रहों पर भी इसका गलत असर पड़ता है। मतलब वही... ग्रहदोष लगता है, और फिर ऐसी गलतियों पर जब हमें बार-बार बड़ों की डाँट पड़ती है तो हम चिड़चिड़े भी हो जाते हैं" ।
.........................
आज बस
सादर

सोमवार, 30 जनवरी 2023

3654 / फ़िजाएँ बेईमान लगती हैं.

 

नमस्कार !   यूँ आज  शहीद दिवस है ........ महात्मा गाँधी जी की पुण्य तिथि  को  शहीद दिवस के रूप में  मनाते  हैं ...... जब - जब    महात्मा  गाँधी का  नाम आएगा  गोडसे  का नाम स्वयं ही याद आ जायेगा .....  ये ऐसा विषय है जिस पर कुछ न कहा जाये वही बेहतर है  यूँ  मैं गोडसे को हत्यारा  मानती हूँ देशद्रोही नहीं ..... 

खैर ..... आइये चलते हैं आज की हलचल पर ... ............  ब्लॉग्स  पर आने वाली पोस्ट क्या हलचल कर रही है  , यही देखना है ....... आज कल बसंत छाया हुआ है ...... प्रकृति में भी और ब्लॉग्स की रचनाओं में भी . आइये हम भी बसंत का आनंद लें ........ 

और बसंती ऋतु



झुंड में लहरों पे उड़ना

चहचहाना चोंच भरना।

एक लय एक तान लेके

फ़लक पे जाके उतरना॥


नए वर्ष का भी एक माह बीतने वाला है .......मात्र एक दिन बचा है .... और जनवरी का आखिरी इतवार लोग कुछ यूँ मना रहे हैं ....


ऊँची उड़ान


सफर जिंदगी का भाग रहा है

अपने वेग से,

चेहरे पर इस हँसी के पीछे दर्द

बहुत है..

यहां हौसलों ने जिद की है |

ऊँची उड़ान के लिए हौसले और संकल्प की ज़रूरत होती है  , लेकिन बचपन तो बस इन्द्रधनुषी सपनों में रहता है ....... आइये  आज की ही तारिख की एक  पाँच  साल  पुरानी पोस्ट पढ़िए .... 

इंद्रधनुषी स्वप्निल बचपन


सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती मे झुमता एक भोला बचपन ।

सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।


हम यहाँ  बचपन के सपनों की रंगीनी से सराबोर हैं  लेकिन आज का बचपन किन परिस्थितियों से जूझ रहा है ये जानना बहुत ज़रूरी है ........ सबको इस विषय में जागरूक रहना आवश्यक है .... विशेष रूप से जिनके बच्चे अभी स्कूल  में पढ़ रहे हैं ........ बहुत बार अनजाने में ही ऐसा कुछ हो जाता है जिससे बच्चे और माता पिता भी परेशानी में आ जाते हैं ....... आइये जानते हैं इसके बारे में ......

वेपिंग…एक नया खतरा !

क्या आप जानते  हैं कि Vape यानि कि E Cigarette क्या है ? मैं तो नहीं जानती थी। यदि आप भी नहीं जानते तो जरा गूगल पर सर्च करिए और जान लीजिए। यदि आपके घर में युवा या टीनएजर हैं तो बैठ कर उनको उसके नुक़सान बता कर सख्त ताकीद करिए क्योंकि ये एक ऐसी लत है जो बहुत तेजी से स्कूल के बच्चों में पैर फैला रही है।

अभी फिलहाल हमारे एक परिचित का बेटा अज्ञानता के कारण मुसीबत में आ चुका है। उसकी क्लास के कुछ बच्चे क्लास में वेप ले रहे थे अज्ञानतावश उसने भी उसकी सुगंध से आकृष्ट होकर ले  ली। टीचर तक बात पहुँच गई और सख़्त एक्शन लिया गया। घर पर खबर भेजी गई। रेस्टीकेट करने की बात चल रही है। बच्चे का कहना था कि वो सुगन्ध से आकर्षित हुआ उसे पता नहीं था कि ये क्या चीज है ? यदि उसे पता होता तो मुसीबत से बच जाता।

पूरी जानकारी लीजिये लेख को पढ़ कर ...... और जहाँ तक हो सके बच्चों को भी इसके बारे में बता कर  आगाह करें ...... जितना ज्यादा ये इ - नेट वर्किंग है उतने ही ज्यादा खतरे बढ़ रहे हैं . नयी नयी तरह की नशे की चीज़ें ईज़ाद हो रही हैं .....हम जैसों को तो कभी कभी पुराना ज़माना ही याद आ जाता है ......

वो फ़ोन कॉल


हमारे समय में कम्प्यूटर नहीं था, नेट नहीं था, मोबाइल नहीं थी। किसी को जरूरी समाचार देना होता तो शहर में हरकारा दौड़ाया जाता, बात दूर, दूसरे राज्य की हो तो टेलीग्राम किया जाता। घर में किसी की बीमारी की खबरें तो खत का हिस्सा भी नहीं बनती थी, साफ छुपा ली जाती। तर्क यह होता, "बिचारे को क्यों परेशान किया जाय? आकर भी क्या कर लेगा!" 

घर में कोई मर जाय तो सीधे टेलीग्राम होता....Come soon. यहाँ भी मौत की खबर छुपा ली जाती, "बिचारा, अधिक दुखी हो जाएगा तो आएगा कैसे?"


कितनी ही बातें यूँ ही याद आ जाती हैं ....... तार का नाम सुनते ही घर में कोहराम सा मच जाता था ....... भले ही कोई ख़ुशी की बात हो ...... वैसे ख़ुशी पर टेलीग्राम  कम ही आते थे ....... अब तो टेलीग्राम का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है ...... सच कितना बदल गया है सब  कुछ ...... यहाँ तक कि इंसान भी ...... 

लोग बदल गए हैं


चिड़िया ने चिड़े से कहा - 

सुना है, लोग बदल गए हैं

और उनकी कोशिश रही है हमें बदल देने की !!!

पहले सबकुछ कितना प्राकृतिक, 
और स्वाभाविक था,
है न ?

बदल तो सच ही बहुत कुछ रहा है ...... हो सकता है कि स्थानों के नाम परिवर्तन से कुछ को आपत्ति हो ........ तो कुछ इसके पक्ष में हों ....... अपनी  राय न रखते हुए बस आप लोगों को इसकी जानकारी मिले इस उद्देश्य से  एक पोस्ट यहाँ  ले कर  आई  हूँ ...... 

अमृत-काल' की 'गणतंत्रीय सूचना' :
प्रतिवर्ष भ्रमणार्थियो के लिए खुलनेवाला 'मुग़ल गार्डन' इस वर्ष  'अमृत उद्यान' (नामांतरण) होने के बाद ही  31 जनवरी 2023 से खुलेगा।

सामान्य जानकारियां शेष नागरिकों के लिए :

1. 'भारतीय राष्ट्रपति भवन' के अंदर, रायसीना हिल्स पर 15 एकड़ में स्थित है मुग़ल गार्डन। 
2. 26 जनवरी 2023 से 'मुग़ल गार्डन' का नाम  'अमृत उद्यान' कर दिया गया है।


शेष जानकारी ब्लॉग पर जा कर लें ........कल  यानि २८ जनवरी को  नर्मदा जयंती थी ..... इस बात की जानकारी मुझे फेसबुक पर एक लेख पढ़ने से हुई ........ और उसके बाद ही ब्लॉग पर माँ नर्मदा की स्तुति में एक खूबसूरत रचना पढ़ने को मिली .... जिसे आप सबके साथ साझा कर रही हूँ ..... 

माँ नर्मदे ! उत्साह का आशीष दो माँ ...


अंतस भरा
तव औज से
मन तम हरा
रव मौज से

श्रद्धा का तुम
अवगाह हो 
भक्ति का नित
प्रवाह हो |

इंसान अपने ही बनाये चक्रव्यूह में  फँसता चला जाता है ........ ईश्वर  के भेजे सन्देश पढ़ ही नहीं  पाता ..... प्रकृति हमें नित नए सन्देश देती है ..... एक खूबसूरत रचना पढ़िए ....

गुंजार


तू जगा रहा है निज गुंजार से 

और हम न जाने

किन अंधेरों में सोए हैं 

एक क्षण के लिए

तुझसे नयन मिलते हैं तो |


किस कदर इंसान हैरान है ... परेशान है कि उसे सब कुछ बेईमान ही लगता है ..... कुछ ऐसा ही कह रही है ये ग़ज़ल ......


फ़िजाएँ बेईमान लगती हैं.


मुकद्दस  हवाएं  भी परेशान लगती हैं।

पातों की खड़खड़ाहट तूफान लगती हैं।

आग से शोर तो लाजमी है  बस्तियों में,

महलों की कैफ़ियत शमशान लगती हैं।

 अब अधिक तूफ़ान को न लाते हुए आज लिंक्स का सिलसिला यहीं ख़त्म कर रही हूँ ........ मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद ...... तब तक के लिए ...... 


नमस्कार 

संगीता स्वरुप .


रविवार, 29 जनवरी 2023

3653....क्या पता कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले।


जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......

वक्त से लड़कर जो नसीब बदल दे,
इंसान वही जो अपनी तकदीर बदल दे,
कल क्या होगा कभी मत सोचो,
क्या पता कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले।
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....

आया बसन्त, आया बसन्त
हिम हटा रहीं पर्वतमाला,
तम घटा रही रवि की ज्वाला,
गूँजे हर-हर, बम-बम के स्वर,
दस्तक देता होली का ज्वर,
सुखदायी बहने लगा पवन।

मैं और मेरी माँ
मौन में माँ नजर आती है
मैं हर रोज़ उसमें माँ को जीती हूँ और
माँ कहती है-
”मैं तुम्हें।”
जब भी हम मिलते हैं
 हमारे पास शब्द नहीं होते
 कोरी नीरवता पसरी होती है
 वही नीरवता चुपचाप
 गढ़ लेती है नई कविताएँ

दिल न जाने कहां
ख़ामोश है, कितनी दिशा,
चीखकर, कभी, गूंजती है निशा,
चुप रौशनी के साये,
यूं बुलाए, मुझको किधर!
वो कहकशां!
दिल था यहीं, अब न जाने कहां?

पतंग
चाहे जितना ऊपर जाओ
पैर जमीन  पर ही रखो
हवा का रुख पहचानों
डोर अपनी मजबूत रखो
सबको लेकर साथ चलो ।

 

पुल से ....

पुल,

अपनी सुविधा के लिए दूसरों ने 

तुम्हें किनारों से जकड़ दिया है,

वे तुम्हारे सहारे नदी पार कर रहे हैं,

पानी में डुबकी भी लगा रहे हैं,

पर तुम चुपचाप देख रहे हो. 




धन्यवाद।


 


 


 




 

शनिवार, 28 जनवरी 2023

3652... घोंघा

   

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

जिसको लाभ – हानि की कुछ समझ नहीं है वह बिलकुल घोंघा बसन्त है...

घोंघा : शब्दों का सफर

टर्नर के कोश में घेंटु यानी गला अथवा गर्दन का उल्लेख भी है और इसकी तुलना भी गले के घुमावदार उभार से की गई है। कण्ठ (गला ), गण्ड (उभार, ग्रन्थि), कण्ड (जोड़) जैसे शब्द एक ही कड़ी के हैं। गलगण्ड यानी गले का उभार। कई लोग इसे गले की घण्टी भी कहते हैं। घूर्णन (घुमाव), घूम, घूमना, घण्टा, घण्टी, घट, घाटी जैसे कई शब्दों में इसे समझा जा सकता है।

घोंघा : हिन्दी समय

करकट की छत के नीचे लगी प्लाई की फाल्स सीलिंग के बारे में उनका कहना था कि वह तो अंग्रेजों के घोड़ों के लिए भी 'आवश्यक आवश्यकता' की श्रेणी में आता होगा। वह न होती तो मई-जून के महीनों में, जब करकट की वजह से इन कमरों में अदृश्य आग जल रही होती, घोड़े शर्तिया बगावत कर बैठते और अंग्रेजों को यह साबित करने में अपने कई इतिहासकारों को झोंकना पड़ता कि चूँकि घोड़ों का सामंतवाद के साथ करीबी रिश्ता रहा है

घोंघा : बेचैन आत्मा

अब खाली हो

असहाय

खालीपन के

एहसास से परे

बन चुके हो

खिलौना

खेलते हैं तुम्हें

रेत से बीन-बीन

बच्चे

घोंघा : कविता कोश

कब तक केंकड़ों, साँपों और जोकों से

दुनिया बच पाएगी ?

खोल में छिपना अब बन्द करें,

सूमों में दंश भरें ।

घोंघा : बाल सजग

पानी में वह रहता था,

नहीं किसी से डरता था.....

तभी वहां आया एनाकोंडा,

तुरन्त निकला फोड के अण्डा....

अगर निगल जाता उसको,

उसका असली नाम था डिस्को...

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पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

3651...खिलखिलाता बसंत

 शुक्रवारीय अंक में

आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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आइये वसंतोत्सव के संग गणतंत्र का गीत गुनगुनाकर
जीवन को रंग और ऊर्जा से परिपूर्ण करें
-----
जब भोर की अलसाई हवाएँ सर्दी का लिहाफ़ हौले से सरकाने लगे,
जब फागुन की पहली लहर गाँव के खेतों को पियरी पहनाने लगे,
जब शीतल हवाओं से लदी माघ की मदमस्त रात चाँदनी में नहाने लगे,
 जब कोयलिया पीपल की फुनगी में झूलकर स्वागत गीत गाने लगे,
 जब भँवरे तितलियों संग छुआ-छाई खेल-खेल कर फूलों को लुभाने लगे,
तब समझो...
 बसंत अंजुरियों में भरकर रंग, बर्फीली ऋतु को पिघलाने लगा है...।-श्वेता
------

आइये आज की रचनाओं की दुनिया में

बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर,
ओदायी, 
शीत की निष्ठुरता से उदास,
वो पल-पल सिहरती
बसंत की आहट सुन गाने लगती है-

केसर बेसर डाल-डाल 
धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत।
भावनाओं के रेशमी धागों से बुनी गयी
मन छूती बेहतरीन अभिव्यक्ति


पढ़ कर शिकायत 
उसने कहा 
मैं तो कब से 
थपथपा रहा था दरवाजा 
हर बार ही 
निराश हो लौट जाता था 
तुमने जो ढक रखा था 
खुद को मौन की बर्फ से 

बासंती ऋतु में चुटकीभर देशभक्ति का रंग मानों
दूध में केसर का रंग,गंध और स्वाद।
एक मनभावन रचना जिसके भाव और शब्द-संरचना 
रचना को बार-बार पढ़ने के लिए आमंत्रित कर रहे-


भ्रमर पुंज की गुनगुन सुनकर,

कलियाँ भी इठलाई ।


द्विज वृन्दों की मिश्रित सरगम,

नव जागृति ले लाई ।


मातृभूमि के रक्षा से बढ़कर
और कोई भी संकल्प नहीं
आत्मसम्मान से जीने का
इससे अच्छा है विकल्प नहीं
आज़ादी को भरकर श्वास में
दो सलामी सम्मान से
जब तक सूरज चाँद रहे नभ पे
फहरे तिरंगा शान से....

गाथा कहें माँ भारती की हम सदा।
हर ओर गौरव गान हो अभिमान से।।

रख स्वावलंबी आज अपना ध्येय भी।
पूरा न हो कोई प्रयोजन दान से।।


कली केसरी पिचकारी 
मन अबीर लपटायो,
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो। 


कुञ्ज गलिन अरु
पाथ  मलिन  सबै
पसरायो ,
हरसायो , एक बसंत !
सखी आयो ,
सुधि बिसरायो

और चलते बेहद ज्ञानवर्धक,सुरूचिपूर्ण,भावपूर्ण 
और सुंदर लेख 
अवश्य पढ़िये।

ब्रज में यह उत्सव अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जहां प्राय भारत में अन्य जगह इस उत्सव पर लोग पीले वस्त्र धारण कर वाग्देवी श्री सरस्वती मां का पूजन अर्चन करते है वही दूसरी और ब्रज में यह उत्सव कुछ अलग ही ढंग से मनाया जाता है। वसंत पंचमी के दिन से ब्रज के सुप्रसिद्ध ४५ दिवसीय होलीकोत्सव का प्रारंभ हो जाता है। वसंत पंचमी को ब्रज में होली का प्रथम दिन माना जाता है।

------


आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

3650...इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय बृजेन्द्र नाथ जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

चित्र:गूगल से साभार 

74 वें गणतंत्र दिवस एवं बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 15 अगस्त 1947 को हमारा देश ब्रिटिश सत्ता की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ और 26 जनवरी 1950 से हमारा अपना संविधान लागू हुआ अर्थात स्वतंत्र से गणतंत्र बनने में कुछ वर्षों का समय लगा। हमारे देश का संविधान लिखित है जिसमें समय-समय पर देश की परिस्थितियों के अनुसार संशोधन होते रहते हैं। गणतंत्र दिवस पर देश की शक्ति, शौर्य और सांस्कृतिक गतिविधियों की झलक 'कर्तव्य-पथ' (एक साल पहले तक 'राजपथ) पर पेश की जाती है।

ऋतुराज बसंत का आगमन हो चुका है। वाग्देवी सरस्वती माँ का जन्मोत्सव बसंत पंचमी के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। नई फ़सल और रंग-बिरंगे फूल व विभिन्न प्रकार की पत्तियों की चमकदार हरीतिमा मन मोह लेती है।  

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल (कविता)


आफ़ताबों की हिम्मत ऐसी बढ़ेगी कि

दिग्भ्रमित श्रद्धा के टुकड़े किए जायेंगे?
न्याय प्रक्रिया इतनी पंगु हो जाएगी
जुल्म साबित करने में वर्षों लग जायेंगे?
विलंबित न्याय का कब सुधरेगा चाल?
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

अब लौट कर कभी तो दिगम्बर वतन में आ...

भेजा है माहताब ने इक अब्र सुरमई
लहरा के आसमानी दुपट्टा गगन में आ
 
तुझ सा मुझे क़ुबूल हैज़्यादा न कम कहीं
आना है ज़िन्दगी में तो अपनी टशन में आ

एक देशगान -आज़ादी के दिन वसंत है

वतनपरस्ती जन-जन में हो

देशभक्त हो माली,

सरहद पर अपनी सेना की

गाथा गौरवशाली,

फर्ज़ निभाते बारिश, आंधी

ओले, ग्रीष्म तपन में.

हाईकू (वसंत )

बसंत छाया

धरती पर सरसों

पीली फूली है

झूमकर मधुमास आया

झील के उस पार दिखता,

नीड़ जो आधा झुका।

डालियों पे बैठ उसके,

गीत जो मैंने लिखा॥

आज उन गीतों को गाने का,

बड़ा सुंदर समय।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव

 

बुधवार, 25 जनवरी 2023

3649..एक ऊर्जा..

 ।।प्रातः वंदन।।

"भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी !

जब गिरी तन पर नवल पहली किरन
हो गया अनजान चंचल मन-हिरनप्रीत की भोली उमंगों को लिए
लाज की गद-गद तरंगों को लिए कर गयी !"
महेंद्र भटनागर

सुबह सवेरे इंतजार रहता ही है। इसबार तो कर्तव्य पथ पर 74 वे गणतंत्र की झांकी,
आत्मनिर्भरता की बानगी की और कदम दर कदम के साथ, बसंत पंचमी  भी,तो फिर देर न करते हुए चलिए, जल्दी से नज़र डालते  है आज के चुनिंदा लिंकों पर..

एक ऊर्जा परम लहर बन 


विश्व आज देखे भारत को

 ​​एक नवल इतिहास बन रहा, 

युगों-युगों से जो नायक था

 पुनः समर्थ सुयोग्य सज रहा  !

🇮🇳🇮🇳


जब कभी,  यादें पुरानी    याद आती हैं।
ख़ुश्क आंखें भी अचानक भीग जाती हैं।

अब हथेली की लकीरों में नहीं कुछ भी
अब लकीरें भीगतीं,  न  कसमसाती..
🇮🇳🇮🇳


जिससे दोनों पाटों को जोड़कर   
पार कर जाते थे अथाह खाई   
हाँ, एक पतली सी डोरी छोड़ दी थी  ..
🇮🇳🇮🇳

श्रीमती मिथिलेश दीक्षित द्वारा मधुदीप जी को भेजे गए प्रश्न व मधुदीप जी के उत्तर..

प्रश्न : हिन्दी की प्रथम लघुकथा, उद्भव कब से, प्रथम लघुकथाकार

उत्तर : हिन्दी की प्रथम लघुकथा किसे माना जाये ---इस  विषय में मतभेद हैं | श्री कमल किशोर गोयनकाजी तथा अन्य कुछ 

🇮🇳🇮🇳

जिससे हो जाये दिल को राहत ! 


ऐसा क्या कर जाऊं मैं ,

जो तेरी नजर को भाऊं मैं,

तू ही बता तेरी क्या #चाहत ,

जिससे हो जाये दिल को #राहत

🇮🇳🇮🇳
।।इति शम।।
धन्यवाद

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