शीर्षक पंक्ति: आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
2023 के प्रथम गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं
सद्यरचित पांच चुनिंदा रचनाएँ-
वे कोशिश में सफल हुए
मैंने असफलता का मुंह देखा
जब भी अन्देखा किया उन का
मुझे ही कष्ट भोगना पड़ा |
अरे चीथड़ों कब जागोगे -सतीश सक्सेना
तुमको धांसू न्यूज़ सुनाकर
प्रेस मीडिया नोट कमाये !'
तुमको भरमाने की खातिर
चोर को साहूकार बताये !
चलते-चलते पढ़िए एक मर्मस्पर्शी लघुकथा जो रिश्ते की तल्ख़ी बयान कर रही है -
"तितलियाँ नहीं दीमक कहिए, जिन्हें गुनना नहीं बस...
सहायिका को जमीन खरीदकर उसपर घर बनवाकर देने के बाद वो कहती है कि क्या ईंट
निकालकर खायें!"
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंनहीं तो
मैं सूरज को
मुट्ठी में
भींच कर रखती।
आभार
सादर
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज की चुनिन्दा पाँच सूत्री हलचल में अपनी पोस्ट का लिंक देख कर बहुत प्रसन्नता हो रही है ! आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे ! सभी मित्रों, साथियों, एवं पाठकों को नूतन वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए
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