शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाये।"
"ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी हैं वो हम ही है जो आँखों पर हाथ रखकर रोते है कि कितना अँधेरा है।"
"खुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।"
"शारीरिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक रुप से जो भी कमज़ोर
बनाता है ,उसे ज़हर की तरह त्याग दो।"
उपर्युक्त ओजपूर्ण उक्तियाँ,जीवन के प्रति सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती हैं ऐसी ही अनगिनत सूक्तियाँ करोड़ो युवाओं के आदर्श 12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902स्वामी विवेकानंद जी
आइये आज की रचनाओं के संसार में-
जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से पूरा देश चिंतित है. आए दिन भू-धंसाव की डरा देने वाली घटनाएं और तस्वीरें सामने आ रही हैं. उधर, घर छोड़ने वाले लोगों की आंखों में भरे आंसू उनका दर्द बयां कर रहे हैं। सुबह होते ही ये लोग कैंप से निकलकर अपने घरों को देखने जा रहे हैं. अपने आशियानों को निहारते हुए इनकी आंखें भर आती हैं।जोशीमठ के आध्यात्मिक महत्व से हम सब परिचित हैं। प्रकृति के दोहन के दंड स्वरूप किसी भी धरोहर का धीरे-धीरे नष्ट होना और उसे नष्ट होते हुए विवश होकर दर्शक की भाँति सारी प्रक्रिया देखना,किस बात का संकेत है यह संदेश स्पष्ट है।
साथ ही मेरा यह प्रश्न आप सब जरूर सोचिएगा कि क्या यह आपदा एक दिन में अचानक आयी ?
अभी तो सिर्फ घरों में आई है दरारें
कल को न जाने कितने घर
भरभरा कर गिर जाएँगे
ताश के पत्तों की तरह
तथाकथित विकास और
अधिकाधिक धन की लालसा में
मनुष्य जीवन का सबसे सुखद पड़ाव होता है बचपन। बचपन जिसमें किसी से कोई मतलब नहीं , किसी चीज़ का कोई तनाव नही, जिंदगी का मतलब सिर्फ़ खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और बेफ्रिक्र होकर हर पल का आनंद लेना होता है। परंतु सभी बच्चों का जीवन इतना सुखद नहीं होता।
ज़िंदगी की शोर में
ग़ुम मासूमियत/हसरतों और आशाओं का
बोझा लादे हुए,/बस भागे जा रहे है,
अँधाधुंध, सरपट/ज़िंदगी की दौड़ में
शामिल होती मासूमियत,/
सबको आसमां छूने की
जल्दबाजी है।
हमें अपने सयानेपन के घर में वह सुख तलाशना पड़ता है जो बचपन का घर स्वतः दे दिया करता था। खैर समय की पीठ पर सवार बचपन हमें छोड़ हजार योजन दूर निकल जाता है... हमें सयानेपन की चौखट पर छोड़कर।।। उम्र कई बार पलटकर देखती है उस मासूमियत को मुस्कुराता पाती है... और ठंडी श्वास लेकर मशीन हो जाती है।
एक टुकड़ा धूप मेरी ख्वाहिशों का तुम
नीम अंधेरे तन्हाईयों में सिमटे खोये
मेरे गीले एहसासों में गुनगुनी धूप सा
अपने वजूद की गरमाहट भर देते हो
तुम्हारी यादों को जभी जीती हूं
मुझे मेरी होने का
एहसास हो जाता है
तुम्हारी यादों को जब भी जीती हूं
मेरे मेज़ पर पड़ी कलम
कागज़ से लिपटकर खूब रोती है
ना मोहब्बत ना दोस्ती के लिए
वक़्त रुकता नही किसी के लिए...
वक़्त के साथ साथ चलता रहे
यही बेहतर है आदमी के लिए...।
अनमोल है ये वक्त
अमूल्य है ये वक्त
बेश कीमती है ये वक्त
इसको पूरा जीने का जज्ब
जेहन में उतार लो,
वरना
कहीं ऐसा न हो कि
रेणु सदृश सरक जाए
पुस्तक की आत्मा को स्पर्श करना,
उसे आत्मसात कर शब्दों की सुगंध भरकर सुवासित करना,जिसकी खुशबू से आकर्षित होकर
पाठक भ्रमर और तितलियों की भाँति उसे
पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाएँ,
पुस्तक के अंतर्वस्तु से परिचय करवाने वाली
एक ऐसी ही
पुस्तक समीक्षक अपनी
सूक्ष्म अवलोकन दृष्टि से पुस्तक में निहित भावों को महसूस करवा पाने में सक्षम हैं।
पढ़िए चिर-परिचित
साहित्यकार आदरणीय विश्वमोहन जी की लिखी
पुस्तक की बेहद गहन और निष्पक्ष समीक्षा।
संक्षेप में, यदि कहें हर रंग ,हर विषय की रचना के रूप में कवि की असीम प्रतिभा दिखाई पड़ती है तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी | आज मानो, जब कविता में अलंकारों के प्रयोग के चलन का लोप-सा ही होता जा रहा है इन रचनाओं में रूपक , मानवीकरण इत्यादि अंलकारों के साथ अनुप्रास अंलकार की टूटती साँसों में जीवन भरता उनका प्रयास यत्र-तत्र कई रचनाओं में मनमोहक शैली में दिखाई पड़ता है | पुस्तक की सभी रचनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण करते कई विद्वान साहित्य -साधकों के विचार -- पाठकों को सरस , सहज और बेबाक समीक्षा से अवगत कराते हुए सृजन के महत्वपूर्ण बिन्दुओं से परिचय भी कराते हैं | |
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
"खुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।"
जवाब देंहटाएंये अंक हमें बहुत सीख देती है
आभार
सादर
युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन 🙏
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचनाएं
कहते हैं कि प्रकृति अपना संतुलन खुद बना लेती है। हम मनुष्यों को ये बात समझ नहीं आती और प्रकृति से छेड़ छाड़ करते रहते।
सुंदर रचना...
उमर के हर पड़ाव को जीना है और हर दौर को आनंद से जिया जाए तो हर वक्त का अपना आनंद है, पर बचपन की बात ही निराली है।
पुनः बचपन की ओर ले जाती सुंदर प्रस्तुति।
तुम तो चले गए, पीछे यादों का कारवां छोड़ के।
हृदय विदारक रचना
सामयिक उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंबढियां संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनरेन्द्रनाथ दत्त जैसे विचारक के विचारों से अवगत कराते हुए प्रस्तुति का प्रारम्भ अर्थपूर्ण बन गया है । यादें चाहे बचपन की हों या किसी विशेष व्यक्ति के प्रति मन को झकझोरती ही हैं । वक़्त है कि कभी भी रुकता नहीं । जो बोयेंगे वही काटेंगे यह बात स्वामी विवेकानंद ने भी कही है ।जोशीमठ इस बात का जीता जागता उदाहरण है ।ऐसी ही समसामयिक रचनाओं से पल्लवित विश्वमोहन जी की पुस्तक का समीक्षात्मक परिचय अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों के संकलन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
सुंदर हलचल।सार्थक लिंक।
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंद जी की ओजपूर्ण उक्तियों के साथ उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय श्वेता।युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद का ये प्रखर आह्वान आज भी प्रासंगिक है।उनका तेजस्वी व्यक्तित्व और ओजस्वी वाणी युवाओं ही नहीं हर देशवाशी के लिए प्रेरक है।उनके जन्म दिन को इसी लिये युवा दिवस के रूप में मनाने की परम्परा विकसित हुई।स्वामी विवेकानन्द की पुण्य स्मृति को सादर नमन ।जोशीमठ आज खबरों के शीर्ष पर है।कारण बहुत दुखदाई है।पर क्या इसे नयी त्रासदी माना जाये?? कदापि नहीं! इसकी नींव मानव की महत्वकांक्षा के साथ ही रखी गई थी।कुछ जीवन को सरल बनाने5के लिये कुछ चीजेँ दरकार थी पर् जरूरतों के साथ अनावश्यक दोहन एक अभिशाप बन कर आ गया,जिसका सफर अब तक जारी है।ये मानव पीडित हिमालय का मौन चीख है जो हम सुनना नहीं चाहते।मैने उतराखण्ड त्रासदी पर कुछ साल पहले एक लेख लिखा था।जिसमें काफी चिंतन किया था।
जवाब देंहटाएंhttps://mimansarenu550.blogspot.com/2018/06/blog-post_15.html
शायद अब समय का निर्णय शेष है बस।ईह्वर सब कुछ अच्छा हो ।भूमिका के साथ सभी सार्थक लिंको का चयन अत्यंत सराहनीय है।सभी रचनाकारो को सप्रेम बधाई। तम्हें शुभकामनाएं और बधाई इस अनमोल प्रस्तुति के लिए।🌺🌺🌹🌹
बहुत बहुत आभार आपका श्वेता जी। सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं।
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