शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
आइये वसंतोत्सव के संग गणतंत्र का गीत गुनगुनाकर
जीवन को रंग और ऊर्जा से परिपूर्ण करें
-----
जब भोर की अलसाई हवाएँ सर्दी का लिहाफ़ हौले से सरकाने लगे,
जब फागुन की पहली लहर गाँव के खेतों को पियरी पहनाने लगे,
जब शीतल हवाओं से लदी माघ की मदमस्त रात चाँदनी में नहाने लगे,
जब कोयलिया पीपल की फुनगी में झूलकर स्वागत गीत गाने लगे,
जब भँवरे तितलियों संग छुआ-छाई खेल-खेल कर फूलों को लुभाने लगे,
तब समझो...
बसंत अंजुरियों में भरकर रंग, बर्फीली ऋतु को पिघलाने लगा है...।-श्वेता
आइये आज की रचनाओं की दुनिया में
बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर,
ओदायी,
शीत की निष्ठुरता से उदास,
वो पल-पल सिहरती
बसंत की आहट सुन गाने लगती है-
केसर बेसर डाल-डाल
धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत।
भावनाओं के रेशमी धागों से बुनी गयी
मन छूती बेहतरीन अभिव्यक्ति
पढ़ कर शिकायत
उसने कहा
मैं तो कब से
थपथपा रहा था दरवाजा
हर बार ही
निराश हो लौट जाता था
तुमने जो ढक रखा था
खुद को मौन की बर्फ से
बासंती ऋतु में चुटकीभर देशभक्ति का रंग मानों
दूध में केसर का रंग,गंध और स्वाद।
एक मनभावन रचना जिसके भाव और शब्द-संरचना
रचना को बार-बार पढ़ने के लिए आमंत्रित कर रहे-
भ्रमर पुंज की गुनगुन सुनकर,
कलियाँ भी इठलाई ।
द्विज वृन्दों की मिश्रित सरगम,
नव जागृति ले लाई ।
मातृभूमि के रक्षा से बढ़कर
और कोई भी संकल्प नहीं
आत्मसम्मान से जीने का
इससे अच्छा है विकल्प नहीं
आज़ादी को भरकर श्वास में
दो सलामी सम्मान से
जब तक सूरज चाँद रहे नभ पे
फहरे तिरंगा शान से....
गाथा कहें माँ भारती की हम सदा।
हर ओर गौरव गान हो अभिमान से।।
रख स्वावलंबी आज अपना ध्येय भी।
पूरा न हो कोई प्रयोजन दान से।।
कली केसरी पिचकारी
मन अबीर लपटायो,
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो।
कुञ्ज गलिन अरु
पाथ मलिन सबै
पसरायो ,
हरसायो , एक बसंत !
सखी आयो ,
सुधि बिसरायो
और चलते बेहद ज्ञानवर्धक,सुरूचिपूर्ण,भावपूर्ण
और सुंदर लेख
अवश्य पढ़िये।
ब्रज में यह उत्सव अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जहां प्राय भारत में अन्य जगह इस उत्सव पर लोग पीले वस्त्र धारण कर वाग्देवी श्री सरस्वती मां का पूजन अर्चन करते है वही दूसरी और ब्रज में यह उत्सव कुछ अलग ही ढंग से मनाया जाता है। वसंत पंचमी के दिन से ब्रज के सुप्रसिद्ध ४५ दिवसीय होलीकोत्सव का प्रारंभ हो जाता है। वसंत पंचमी को ब्रज में होली का प्रथम दिन माना जाता है।
------
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
शुद्ध वासंतिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयह अंक सहेजा भी जाएगा
और पढ़ा भी जाएगा
हाय, मैं मर जाऊं
कहां से मिली ऐसी बुद्धि
हमें भी एडमिशन दिला दें
उसी विद्यालय में ,
जहां ऐसी बुद्धि बांटी जाती है
सादर
गणतंत्र दिवस पर्व और वसन्तोत्सव के बासन्ती रंगों से सुसज्जित मन्त्रमुग्ध करती मनमोहक प्रस्तुति में ‘प्रभात बेला ’ को सम्मिलित करने के लिए के लिए असीम आभार ।आप सभी चर्चाकारों,रचनाकारों और पाठकों को वसन्तोत्सव और गणतंत्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई । सादर सस्नेह वन्दे ।
जवाब देंहटाएंमाँ भारती और माँ सरस्वती पर आधारित आज की प्रस्तुति अत्यंत सराहनीय है ।
जवाब देंहटाएंभूमिका में बसंत आगमन की जो क्रियाएं लिखीं मन को छू गयीं पंक्तियाँ ।
जब बसंत खिलखिला ही गया तो मन में ऊर्जा का समावेश होना ही था । और जब ऊर्जा हो और खुद से पहले देश की बात मन में आये तो लगता है कि हम ज़िंदा हैं । ब्रज के बसंत उत्सव की विस्तृत जानकारी से मन भी कृष्णमय हो रहा है ।
आनंद देने वाली प्रस्तुति । आभार ।
बसंत की तरह ही मनमोहक बासंतिक भूमिका के साथ उत्कृष्ट लिंकों से सजी बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं👌👌👏👏🙏🙏
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत खूबसूरत रचना संकलन
जवाब देंहटाएंसभी प्रिय, माँ भारती के लाड़ले-लाड़लीयों को बासंती गणतंत्र दिवस की बहुत रंगभरी शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती , अपने वात्सल्य का सबको सहज उपहार दे ,यही प्रार्थना है , मातु चरणों में !
वन्दे वीणा-पुस्तक धारिणीं, शुभदा सकल जग तारिणीं |
नमामि मातु ऐं सरस्वत्यै, सकल कलि-कल्मष हारिणीं ||
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ आकर्षक रचनाओं का संकलन।
मन बसंती कर गई श्वेता जी आपकी ये सुंदर रंगीन प्रस्तुति।
कली केसरी पिचकारी
जवाब देंहटाएंमन अबीर लपटायो,
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो।
तुम्हारी इन प्यारी सी पंक्तियों के साथ इस बासन्ती प्रस्तुति के लिए आभार और प्यार।सभी रचनाकारों को सादर नमन।बहुत प्यारी रचनाएँ हैं सभी।