नमस्कार ! उत्तर भारत शीत लहर से ग्रस्त है , ऐसे में ब्लॉग्स की पोस्ट को पढ़ कर लिंक लगाना और ये सोचना कि पाठक नियमित रूप से पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया भी दें .......कुछ ज्यादती वाली बात है ........... टाइप करने में ही हाथ काँप रहे हैं .........खैर ........ कोशिश कर रही हूँ कि आप तक कुछ अच्छी रचनाएँ पहुँचा सकूँ .....
लोग अक्सर विश्वास और अंधविश्वास को ले कर तर्क वितर्क करते हैं और अक्सर आदर्शवादी कहते हैं कि अन्धविश्वासी नहीं होना चाहिए ........ लेकिन एक ब्लॉगर हैं जो सुझाव दे रही हैं कि ......
चलो अंधविश्वासी हो जाएं
करता दिखा और स्वतः ही मैं बोल उठी -अरे गणपति वाहन -और
मन एक तरह से शांत हो गया ।थोड़ी देर बाद एक़दम से ये ख़्याल
आया कि मै,एक तथाकथित रूप से वो गृहणी जो अंधविश्वा्सों
से बहुत दूर ही रहती है ,कैसे इस तरह का अंधविश्वास कर गई ।
किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया,
किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।
स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया,
प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में
नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।
यहाँ तो इंसानियत का पाठ पढाया जा रहा है ......... और दूसरी तरफ कि आखिर जीवन क्या है ..... सुख - दुःख सब कुछ मिला कर ही जीवन है .......... खिलने के लिए मुरझाना भी होता है ......
जीवन है
चाह मुक्ति की यह अनुपम है
स्वयं का व जग का हित सधता,
रिक्त हुआ उर जब भीतर से
प्रियतम खुद ही आकर बसता !
जहाँ पीड़ा है वहां अक्सर हम निःशब्द हो जाते हैं ....... ऐसे ही एक ये रचना है .....
कोहरे की चादर में लिपटी सांसें
टूटने से डरतीं
वही कहती हैं जो सदियाँ
कहती आईं
वे उठने को उठना और
बैठने को
बैठना ही कहतीं आईं हैं |
कभी कभी कम शब्दों में रची गयी रचनाएँ लम्बी कविताओं से ज्यादा मारक होती हैं ....... अपनी बात कम से कम शब्दों में कह देना सबके वश की बात नहीं ........ पढ़िए कुछ .....
“क्षणिकाएँ”
अक्सर मैं
हाथ की लकीरों में
तुम्हें ढूँढा करती हूँ
क्या पता …
न जाने क्या ढूँढा करते हैं लोग हाथ की लकीरों में ..........अक्सर होता है ये कि वक़्त का पता नहीं होता कि भविष्य में क्या होना है ........ तभी कहा गया है कि कर्म करो बाकी सब ईश्वर की मर्ज़ी पर छोड़ दो ..... सत्य घटना पर आधारित एक कहानी बुनी गयी है .......... पढ़िए आप भी .....
का एक अकेला भाई परिवार का कर्ता-धर्ता.. माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी.... सेवाभावी
एक पुत्र का काम है परिवार का पालन-पोषण करना
जवाब देंहटाएंऔर एक और पुत्र जो सेना में है
जो एक कमाण्डो है
उसका भा काम है
रक्षा करना देश की
और उस देश में उसका
परिवार भी रहता है
धन्य हैं वो दोनों पुत्र
बेहतरीन अंंक
सादर नमन
आभार यशोदा ।
हटाएंसुप्रभात ! सभी सूत्र लाजवाब एवं बेहतरीन । आपकी प्रस्तुति प्रस्तुत करने की पद्धति नायाब है।पहले आपकी टिप्पणी और फिर उस रचना को पढ़ना पाठक को आल्हादित कर देता है।मुझे अपने अंक में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आ. दीदी! सादर सस्नेह वन्दे।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मीना । पाठक आनंदित हो कर लिंक्स तक पहुँचे , इससे ज्यादा क्या खुशी होगी । आभार ।
हटाएंसुप्रभात! संगीताजी, यहाँ तो केवल पाँच लिंक्स का ही वादा है, पर आपने तो दो अधिक ही लगा दिए हैं !!आभार मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने के लिए। सभी पाठकों व रचनाकारों को शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंअनिता जी ,
हटाएंकम से कम 5 लिंक्स का वादा है 😆😆
मेरी प्रस्तुति में तो 12 लिंक भी मिल जाते हैं । बहुत आभार ।
बहुमूल्य पाँच लेखनियों में खुद को भी पा कर आनन्दित हूँ दी 🥰
जवाब देंहटाएंथोड़ी देर में पढ़ कर आती हूँ।
सादर 🙏
यह लिखने का तरीका बता रहा है कि शायद निवेदिता हो ।
हटाएंयहाँ तक पहुँचने के लिए शुक्रिया ।
विशेष लिंक्स में खुद को शामिल देखना बहुत सुकून देता है
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
हटाएंआपकी कोई भी पोस्ट ले कर मुझे भी सुकून का एहसास होता है ।।
बेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति आदरणीया दीदी आपके श्रम को नमन ।आज आपने मेरी जो रचना चयनित की वो २०१८ में लिखी थी।आज आपके कारण वह सबके समक्ष आ गई।इस मार्मिक और वीर सपूत की बलिदान गाथा को सबके सामने प्रस्तुत करने के लिए आपका सहृदय आभार सादर
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा ,
हटाएंसच्ची घटना पर आधारित तुम्हारी इस कहानी को सबके समक्ष लाना ही था । मैं पहुँच पाई , यही मेरे लिए खुशी की बात है ।
प्रस्तुति की सराहना हेतु आभार ।
सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंअत्यंत हर्ष हुआ स्वयं को यहाँ पाकर...हार्दिक आभार आदरणीय संगीता दी आप का।
सादर
बहुत शुक्रिया ।
हटाएंप्रिय दी,
जवाब देंहटाएंमौसम कोई भी काम कहाँ रूकता है।
दिल्ली का तापमान तो यूँ भी काफी कंपकंपाने वाला है। अपना ख़्याल रखें दी।
आज की सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी दी और साथ में आपकी लिखी संक्षिप्त समीक्षाएँ तो उत्सुकता जगा देती हैं।
रचनाओं को.पढ़ते हुए
इंसानियत के गीत गुनगुनाएँ
चलो अंधविश्वासी हो जाएँ
इंसानियत का दुश्मन क्यों तू आज बना
विचारों में तुम्हारे कहाँ से इतना ज़हर सना?
जीवन है
सुख-दुख,जीवन मरण
कर्मों का यही तो रण है।
हर पीड़ा मुदिता से भर दे
अंतर्मन शुचिता से भर दे।
कोहरे की चादर में लिपटी साँसें
जीवन बिसात पर समय के पाँसें।
ट्रेन, गूगल मैप और चाँद की बातें
क्षणिकाओं में कम शब्दों में ज्यादा बातें।
हे! वीर सपूतों गर्व करूँ या नमन तुम्हें
माँ चाहती है देना हर बार जनम तुम्हें....।
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अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में।
सप्रेम प्रणाम दी
सादर।
प्रिय श्वेता ,
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह हर रचना को आत्मसात करते हुए सबका सार अपने शब्दों में समाहित कर लेना , कठिन कार्य है । जिसे तुम सहजता से लिख लेती हो । अद्भुत है ।
सस्नेह
आपके द्वारा चयनित लिंक वाकई मनन योग्य होते हैं । तभी तो हर सोमवार मन पढने के लिए तैयार रहता है ।फिर चाहे पढ़ते पढ़ते मंगलवार भी लग जाय ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह आज भी एक और नायाब प्रस्तुति एक से बढ़कर एक पठनीय लिंक्स ।सभी रचनाकारों को बधाई एवं आपको सादर नमन🙏🙏🙏🙏
बहुत शुक्रिया सुधा । आप लोगों ने मेरी ज़िम्मेदारी ज्यादा बढ़ा दी है ।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंhttps://www.youtube.com/watch?v=ov2cskLqk6s&t=573s
बहुत आभार
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