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रविवार, 29 जनवरी 2023

3653....क्या पता कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले।


जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......

वक्त से लड़कर जो नसीब बदल दे,
इंसान वही जो अपनी तकदीर बदल दे,
कल क्या होगा कभी मत सोचो,
क्या पता कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले।
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....

आया बसन्त, आया बसन्त
हिम हटा रहीं पर्वतमाला,
तम घटा रही रवि की ज्वाला,
गूँजे हर-हर, बम-बम के स्वर,
दस्तक देता होली का ज्वर,
सुखदायी बहने लगा पवन।

मैं और मेरी माँ
मौन में माँ नजर आती है
मैं हर रोज़ उसमें माँ को जीती हूँ और
माँ कहती है-
”मैं तुम्हें।”
जब भी हम मिलते हैं
 हमारे पास शब्द नहीं होते
 कोरी नीरवता पसरी होती है
 वही नीरवता चुपचाप
 गढ़ लेती है नई कविताएँ

दिल न जाने कहां
ख़ामोश है, कितनी दिशा,
चीखकर, कभी, गूंजती है निशा,
चुप रौशनी के साये,
यूं बुलाए, मुझको किधर!
वो कहकशां!
दिल था यहीं, अब न जाने कहां?

पतंग
चाहे जितना ऊपर जाओ
पैर जमीन  पर ही रखो
हवा का रुख पहचानों
डोर अपनी मजबूत रखो
सबको लेकर साथ चलो ।

 

पुल से ....

पुल,

अपनी सुविधा के लिए दूसरों ने 

तुम्हें किनारों से जकड़ दिया है,

वे तुम्हारे सहारे नदी पार कर रहे हैं,

पानी में डुबकी भी लगा रहे हैं,

पर तुम चुपचाप देख रहे हो. 




धन्यवाद।


 


 


 




 

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल क्या होगा
    कभी मत सोचो,
    क्या पता कल
    वक्त खुद अपनी
    तस्वीर बदल ले।
    सुंदर अंक
    आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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