शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना
से।
सादर अभिवादन।
नए गुरुवारीय अंक में पाँच चयनित रचनाओं के लिंक्स के साथ
हाज़िर हूँ।
आइए अब पसंदीदा रचनाओं का रसास्वादन कीजिए-
कुछ ही ऐसे मोती होते
जिन में आव स्थाई रहती
यही स्थाईत्व बहुत कम
जिन मोतियों में रहता वे ही सच्चे होते .
अब यह सड़क जगह-जगह से
टूट-फूट गई है,
किसी काम की नहीं रही,
पर अच्छा नहीं लगता
कि कोई सड़क इस हाल में रहे.
शायरी |
ग़ज़ल | सीख लिया |
डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अपने ही
ख़्वाबों से
मैंने
अब कतराना सीख लिया।
लावारिस बच्चे
जब देखे
ख़ैर मनाना
सीख लिया।
रिश्तों की तर्जुमानी है बस
लफ़्ज़ों का
हेर फेर, गुलाब के दामन में रहता
है काँटों का घेरा, हृदय पिंजर
में कहाँ रुकता है सुख -
पाखी, आँखें खुली
शून्य हुआ
रैन-
बसेरा।
जीवन-घट जल अधिकांश बीत, रीत गया
पहुँचे सभी को प्रणाम और जुहार विनत,
बोले-अनवोले
मीत,पांथ-पथिक संग-नित,
*****
फिर मिलेंगे।
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंकुछ ही ऐसे मोती होते
जिन में आव स्थाई रहती
आभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं"काँटों का घेरा" और गजल "सीख लिया"
ये दो लिंक खुले नहीं । शायद मुझसे ही ना खुले हों। बाकी लिंक बहुत उम्दा एवं पठनीय ।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanks for the Conectarte
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