हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
शीतलहर के कारण विद्यालयों में जनवरी के अंत तक छुट्टियाँ बढ़ाई गयी। पृथ्वी भर पर
किसी न किसी काम में लगे लोगों के लिए
इसे आरामगाह न मानें
सौर्यवर्ष की गणनाओं में
निश्चित अंतराल खोजे गए होंगे पहले
फिर मनुष्य की क्षमता और काम के घंटों के हिसाब से
छुट्टियाँ होंगी रात दिन करे जो डटकर, मैं तो हो गया घनचक्कर।
चक्कर के इस चक्कर मे, अब अल्पविराम की सोचा है।। सूरज ने भी—
जल्दी घर को मैं जाऊँगा, खूंटी टांक अब सो जाऊँगा,
उठ पाऊंगा देर सवेरे, रजाई में ही सुस्तताऊंगा ।
नहीं बरसु अब शोले जैसा, अब शीतल की सोचा है।। सूरज ने भी—
छोटा सा अब दिन रहेगा, कुछ तो काम का बोझ हटेगा,
मेरी अर्ध छुट्टियों से ही, लोगों का बोझिल मन बंटेगा
वास्तव में सारे दिन दुश्चिन्ता में उन्होंने अच्छी तरह भोजन तक नहीं किया और अपने लड़कों के साथ नाहक़ बहुत खिटखिट करती रही थीं।
फटिक ने रोते हुए कहा, “मैं अपनी माँ के पास जा रहा था, ये लोग मुझे पकड़ लाए।”
बालक का ज्वर बहुत बढ़ गया था। सारी रात वह बकता रहा। विश्वंभर बाबू डॉक्टर ले आए।
फटिक ने अपनी सुर्ख़ आंखें एक बार खोलीं। वह छत की कड़ी की ओर हतबुद्धि-सा देखता हुआ बोला, “माँ-माँ, मेरी छुट्टी हुई क्या?”
लिख देती सीने पे उसके लव यू का एक गोला ।
होती उसपे रंग बिरंगी धारीदार डिजाइन
कोई लगाता नज़र ना मुझको
ना ओझा ना डायन
उसे पहनकर खूब उछलता बन जाता मन मौला
बुन देती मेरा भी कोई एक ऊन का चोला ।।
जाड़ा कर मारे, कांपत हवे चोला
बदरी आऊ पानी हर बइरी लागे मोला।
गरु कोठारे बैला नरियात है,
दूरा में बईठ के कुकुर भुंकात हवे,
आगी तपात हवे गली गली टोला,
जाड़ा कर मारे…
शीतलहर के कारण विद्यालयों में जनवरी के अंत तक
जवाब देंहटाएंछुट्टियाँ बढ़ाई गयी। पृथ्वी भर पर
किसी न किसी काम में लगे लोगों के लिए
करी लड्डू और तिल पपड़ी के बारह बज जाएंगे
सादर नमन
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया
जवाब देंहटाएंजी दी,
जवाब देंहटाएंछुट्टी पर आधारित अत्यंत सराहनीय संकलन। सभी कविताएं बहुत अच्छी लगी पर मन टैगोर जी की कहानी पर अटक गया।
सस्नेह प्रणाम दी
सादर।
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति..
छुट्टियों पर एक से बढ़कर एक रचनाएं।
कहानी बहुत ही हृदयस्पर्शी।
🙏🙏