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शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

3630...आँखों का चश्मा

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
------
हर साल यही सोचती हूँ
क्यों सोचूँ मैं झुण्ड की तरह 
निपुणता से तटस्थ रहूँगी  इस साल
परंतु कामनाओं ,महत्वाकांक्षाओं,
अधपके स्वप्नों के रंगीन फुदनों के 
आकर्षण से ललचायी,
भावनाओं की महीन सुईयों से
अपने अस्तित्व के ऊपर
सजाकर सिलने लगती हूँ
फिर उकताकर 
सोचती हूँ
बाहरी कोलाहल में 
सम्मिलित होने का स्वांग भरती हुई
अपने अंतर्मन की शांति की तलाश में
क्या मैं फिर बेचैन रहूँगी इस साल भी...?
------//------

आज की रचनाओं के संसार से-

आज का बचपन चंपक,नंदन,चाचा चौधरी,
 पिंकी या चंदामामा नहीं माँगता बल्कि एडवांस फिचर्स वाले फोन,टैब की ज़िद करता है।
माँ की लोरी कार्टून चैनल्स के किरदारों में गुम होने
लगी है। उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ते बच्चों को
संस्कार,मानवीय मूल्यों 
की सीख देने वाली मासूम कहानियों,कविताओं
की पोटली थमाना न भूलें यही हमारा दायित्व है।
इसी क्रम में पढ़िए बेहद प्यारी रचनाएँ।

झाँक रहीं आँखों का चश्मा 

बार-बार खिसकाते हाथ।

हर जिज्ञासा-उत्सुकता को

सुलझाते समझाते बात॥

सोच-सोच कर उन यादों को 

मेरी साँसें फूल रही हैं ॥



गीली,हरी,रूखी या कुम्हलाई
बदले ऋतु समय की कलाई...।
पिघलेगी बर्फ
मुस्कुरायेंगी हवाएँ
महकेंगे बाग,मनचलेंगें भौरें
कैंलेडर की तिथियों के साथ
उतरेगा बसंत भी
मौसम में रंग भरने...।


लता बृक्ष सब मुरझाए से,
पात बिछड़ने का झेलें गम ।
मारी-मारी फिरें तितलियाँ,
फूलों का मकरंद गया जम ।


पत्थर बनकर रह गयी हूँ
पत्थरों के इस शहर में
दिल में कोई एहसास नहीं बाकी
बेदिलों के इस शहर में
देखने भर को हैं बस मासूम चेहरे
प्यार के सौदागर हैं बस इस शहर में...।

पत्थरों के हैं शहर ये

देख कर मन जल रहा है
नयनों से बरसे जल
आज भी अब जल रहा है
जल रहा है इसमें कल
जलजले को देख जड़वत
वेदना बादल घने

कोई भी जन्म से महान नहीं होता
किसी भी इंसान के कर्म,विचार और व्यक्तित्व
 ही तय करते हैं कि उसे किस तरह याद किया जायेगा।
एक सुंदर प्रसंग साझा करने के लिए लेखक का
हार्दिक आभार
आदमी की सफलता पदों की भाषा में नहीं आंकी जानी चाहिए। पद सिधाई से हासिल नहीं होता, न सिधाई से चलनेवाला आदमी पदों पर ठहर पाता है। दुनिया को रोशनी उन लोगों से नहीं मिलती, जो दुनियादारी की दृष्टि से सफल समझे जाते हैं। सफलता चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, वह सीमित चीज है। रोशनी की धार बड़ी असफलताओं से फूटती है। राम, कृष्ण, ईसा और गांधी असफल होकर मरे, इसीलिए वे संसार को आज तक प्रकाश दे रहे हैं।

और चलते-चलते 
 विविधता पूर्ण विषयों को सुंदर तस्वीरों,
वीडियो और अनूठे बिंब से युक्त कविताओं द्वारा
एक पन्ने पर इंद्रधनुष की तरह सजाकर 
परोसने की कला रचनात्मकता है।
प्रतिभा अपना रास्ता स्वयं तलाश लेती है 
इस कथन को सिद्ध करते
लेखक महोदय की उपलब्धि पर उन्हें
असीम शुभकामनाएँ।

देख अचम्भा लगे हैं हर बार,
यूँ ऋषिकेश में गंगा के तीर।

निज प्यास बुझाए बेझिझक, 
कोई उन्मुक्त पीकर गंगा नीर।


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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।


11 टिप्‍पणियां:

  1. मनमोहक अंक
    स्तरीय रचनाएं
    भाई सुबोध जी को शुभकामनाएं
    एआईआर देहरादून ज्वाइन करने के लिए
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी ! सुप्रभातम सह नमन संग आभार आपका आपकी शुभकामनाओं के लिए .. ताउम्र प्रकृति सकारात्मक दृष्टिकोण रखे आपके लिए .. बस यूँ ही ...

      हटाएं
  2. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका मेरी विविध विषयों पर एक ही पन्ने में की गयी बतकही को "पाँच लिंकों के आनन्द" जैसे विशिष्ट मंच पर अपनी इंद्रधनुषी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए .. साथ ही शुभकामनाओं के लिए भी .. बस यूँ ही ...
    आज भी आपकी USP के अनुसार आरंभिक भूमिका में मन-मंथन की मादा झलकी और हर रचना (मेरी तो बतकही) के पूर्व उनकी संक्षिप्त विवेचना उन रचनाओं की आत्मा की झलक दिखला जाती हैं .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात !
    सुंदर एक से बढ़कर एक सूत्र !
    वसुधा अंबर एक हो गए, सुधा जी की शरद ऋतु पर सजीव और मनोहक कविता।
    पत्थरों के हैं शहर ये, समाज की विद्रूपताओं पर अभिलाषा जी की पारखी नजरों का मार्मिक अवलोकन।
    अरुण साठी जी, का स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला बाबू के व्यक्तित्व की जानकारी देता उत्तम आलेख ।
    श्वेत प्रदर की तरह, सुबोध सिन्हा जी, का रचनात्मकता लिए सुंदर,अद्भुत लेखन। काव्यगोष्ठी के सुबोध जी को हार्दिक बधाई।
    इस सुंदर अंक में सज्जित मेरे दो बालगीत बहुत ही खुशी दे रहे ।
    आभार और अभिनंदन प्रिय श्वेता सखी💐💐

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय श्वेता ,
    आज की प्रस्तुति की भूमिका में जो बेचैनी दर्शायी है , वो तो हर संवेदनशील व्यक्ति के हिस्से आयी है । वक़्त गुज़रता जाता है और मन यूँ ही छटपटाता रह जाता है । और ऐसी ही छटपटाहट में शहर हो या गॉंव सभी पत्थर के हो गए हैं ।इसकी बानगी अभिलाषा जी की रचना को पढ़ते हुए महसूस हुई ।
    बाल कविताएँ बुजुर्गों को याद करते हुए खराब आदतों को छोड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं ।
    सुधा जी की रचना पढ़ते हुए तो जम गए । भई बहुत ठंड । सजीव चित्रण कर दिया ठंड का ।
    सच कहा कि मनुष्य के विचार ही इंसान को बड़ा बनाते हैं । बेहतरीन जानकारी मिली ।
    बाकी तो यूँ ही कहते कहते कवि , विचारक सुबोध सिन्हा जी बहुत कुछ कह जाते हैं ।
    बेहतरीन चयन के साथ अच्छी प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सारगर्भित और गंभीर रचनाओं के संकलन के लिए साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. हर साल यही सोचती हूँ
    क्यों सोचूँ मैं झुण्ड की तरह
    निपुणता से तटस्थ रहूँगी परन्तु संवेदनशील मन तटस्थ कहाँ रह पाता है।
    बहुत ही सुंदर विचारणीय रचना की भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय । साथ ही प्रत्येक लिंक पर आपकी शानदार समीक्षा से प्रस्तुति और भी रोचक बन गयी है ।
    मेरी रचना को भी इस रोचक प्रस्तुति में शामिल करने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. शीतलहर के कारण विद्यालयों में जनवरी के अंत तक छुट्टियाँ बढ़ाई गयी। पृथ्वी भर पर

    जवाब देंहटाएं

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