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सोमवार, 23 जनवरी 2023

3647 / आँचल और धूप

 

नमस्कार !   आज २३ जनवरी  है .... नेता जी सुभाष चन्द्र  बोस की जयन्ती .१८९७  में उनका जन्म कटक (उड़ीसा )में हुआ था ....... इन्होने आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था .......इनका दिया - "जय हिन्द "  का नारा हमारा राष्ट्रीय नारा है ...... आज इस मंच से हम इनको याद करते हुए नमन करते हैं . 

जय हिन्द !

अब लिंक्स की ओर .......

अब सर्दी कुछ कम हो चली है ....... इस बदलते मौसम में  आइये पढ़ें कुछ बेहतरीन रचनाएँ ..... अब सच में आपको पसंद आती हैं या नहीं ये मुझे नहीं मालूम ...... बस जो मुझे पसंद आती हैं उनको यहाँ ले आती हूँ आप सबको  पढ़वाने के लिए ...... एक समसामयिक विषय पर जागरूक करता लेख आप सबको भी  पढ़ना चाहिए और हो सके तो आवाज़ भी उठानी चाहिए ..... 

खेलने का फैसला करने से लेकर खेल के मैदान तक सफर


कुश्ती के अखाड़े में जिन शेर और शेरनियों को लड़ते हुए देखते थे उन्हें आज जंतर मंतर पर अपने स्वाभिमान,अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ रहा है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा? जिनका एक एक पल बेशकीमती होता है वे आपना वक़्त अपनी प्रतिभा को देने के बजाय जंतर मंतर पर बर्बाद करने पर मजबूर हो रहें हैं

हालांकि जहाँ तक मुझे जानकारी है कि इस पर सरकार ने ध्यान दिया है शायद अब तक समस्या सुलझा भी ली होगी ..... लेकिन प्रश्न तो ये है कि ऐसी नौबत ही क्यों आई ?  खैर ..... अब रही बात  लड़कियों को खेल के मैदान में भेजने की  ,तो आज की लड़कियाँ स्वयं में सक्षम हैं कि ऐसे लोगों का सामना कैसे किया जाये ............. आज की लड़कियाँ भले बुरे को समझती हैं .......... यहाँ तक  कि वो अपने बड़ों को भी समझाती  हैं ...... इसी सन्दर्भ में पढ़ें ये  कहानी -



    सुबह के पाँच बजे हैं, सुमित्रा अभी-अभी फूल तोड़कर लौटी है, उसकी बेटी कनेरी फूलों की डलिया ले कर, फूल तोड़ने के लिए निकल रही है, आज डलिया भरकर फूल चुनकर ही लाना है, अम्मा के लिए, वह आज देवी जी का दरबार सजाने के लिए, भर -भर के माला बनाएगी, मंदिर में भंडारा भी है, कनेरी का भाई केशव कई दिनों का बाहर गया, अभी तक लौटा नहीं है, वो रहता था तो ठेला भर के फूल और कलियाँ लाता था.. क्यों न! उसे भोर में तीन बजे ही मोहल्ला-मोहल्ला, गली-गली में फूलों वाले घरों में चोरी ही करनी पड़े,

छोटी - मोटी चोरी करते करते आदतें कितनी बिगड़ जाती हैं इसका अहसास तब होता है जब पानी सर से गुज़र जाता है ..... आज कल एक और चर्चा का विषय बने हुए हैं  " धीरेन्द्र  शास्त्री " ....... क्या सच है क्या झूठ ...... नहीं पता  . लेकिन इस पर कुछ विचार तो आ ही रहे हैं ...... 


हर व्यक्ति वैज्ञानिक नहीं होताउनकी सोच भी वैज्ञानिक नहीं होतीइसलिए हम कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएँआधिकांश आम लोगों में अंधविश्वासचमत्कार और पाखण्ड के प्रति आकर्षण बना ही रहेगा। अंधविश्वासचमत्कार और पाखण्ड का धर्म से कोई सम्बंध नहींतथापि यह बहुत से लोगों की जीवनशैली हो सकती है। मनुष्येतर प्राणियों में यह सब नहीं होताउन्हें इस सबकी आवश्यकता भी नहीं हुआ करतीतो क्या इसकी आवश्यकता केवल मनुष्यों को ही हुआ करती है?

सच तो यही है कि लोग चमत्कार के प्रति आकर्षित तो होते हैं .......अक्सर कहते सुना जाता है कि इस मंदिर की मानता  बहुत है ..... हर इच्छा पूरी होती है .......... फलाने बाबा सारी इच्छा पूरी करते ...... मैं सोचती हूँ कि यदि सच ही ऐसा है तो फिर भी लोग कष्ट क्यों पाते हैं ?  मैं किसी की आस्था पर चोट नहीं कर रही ........  आप तो आगे की रचना पढो ...... 


हम सच को स्वीकार नहीं करते 

वरना साफ़-साफ़ कह देते

 हम मंदिर आते हैं खुद के लिए 


कितनी आसानी से सहजता के साथ ये बात कह दी अनीता जी ......मंदिर भी जाते हैं तो हम स्वयं के लिए ... बहुत कम ही होता है कि लोग अपने से इतर दूसरों के लिए सोचें ....... और जो सोचते हैं वो फ़रिश्ते से कम नहीं ...... ऐसी ही एक लघु कथा आप पढ़िए .


ये दोस्त और दोस्ती !

बस एक दोस्त था और उसकी माँ थी , जिसने अपनी माँ के बचपन में ही चले जाने पर उसे दीपक की तरह ही प्यार दिया था। स्टेशन पर लेने के लिए विजय को दीपक ही आया था क्योंकि उसे विजय से मिले हुए बहुत वर्ष बीत गए थे।

       अब दोनों ही रिटायर्ड हो चुके हैं। विजय ने ट्रेन से उतरते ही दोनों हाथ फैला दिए गले लगाने के लिए |

इस कथा के साथ ही एक पौराणिक कथा भी मिल गयी पढने के लिए ..... वहाँ भी कुछ दोस्ती की बात है ..... 

अश्वत्थामा हतो.......! जैसा वाकया पहले भी एक बार घटित हो चुका था


अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा ! महाभारत युद्ध की इस बहुचर्चित घटना की तरह का एक वाकया इसके बहुत पहले भी एक बार घटित हो चुका था ! संयोग से उसके केंद्र में भी श्रीकृष्ण ही थे ! बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण के हाथों कंस वध हुआ था ! इस बात से क्रोधित हो कंस के ससुर व मित्र जरासंध ने प्रतिशोध लेने के लिए मथुरा पर हमला कर दिया था ! जरासंध की सेना में दो अपार शक्तिशाली सेनानायक हंस और डिम्भक थे ! 


एक तरफ दोस्ती में लोग न जाने क्या क्या कर जाते हैं ...... दूसरी ओर लोग रिश्ते भी नहीं निभा पाते हैं ....... खैर यहाँ मैं रिश्तों के न निभाने की बात नहीं कर रही , बात कर रही हूँ तो ज़िन्दगी निभाने की ....... जी हाँ ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी ही निभाई जाती है और उसको निबाहने के अलग अलग तरीके खोज लिए जाते हैं ....एक ऐसी ही कहानी जो गहराई तक सोचने पर मजबूर कर दे कि आखिर क्या है ज़िन्दगी ? 


हँसी पसंद माँ की बेटीएक मेरी माँ,सोच-समझकर हँसती और इसी बिना पर डाँटते हुए मुझ से कहती थीं,"नानी की तरह सारा दिन हँसती हो,ज़रा तमीज़ सीखो कृपा। ज्यादा हँसना उस दुःख को मौन पीना है जो अपने हिस्से का होता ही नहीं।” ऐसा मेरी माँ को लगता था। जबकि हर छोटी-बड़ी बात पर मैंने नानी को हँसते हुए ही देखा थासो हँसना मुझे अच्छा लगने लगा था। हालाँकि धीरे-धीरे जब मेरा अनुभव पका तो ज्यादा हँसनेबेबात के हँसनेफ़ालतू में हँसने और अति-हँसने में अंतर समझ आया। और ये भी कि नानी को कोई भी दुखदुःखी नहीं कर सकता और सुखहँसी से ज्यादा कुछ दे नहीं सकता। इसीलिए शायद उन्होंने सुख-दुःख को हँसी के भाव तौल लिया था।


इस हँसी में कितनी पीड़ा रही होगी ये तो  आप कहानी पढ़ कर समझ ही गए होंगे ....  माँ का ज़िक्र हुआ है तो एक रचना माँ को समर्पित  और पढ़िए ....... आज भी माँ के आँचल की  छाँव की चाह बनी हुई है ..... 


पवन प्रकंपित थम जाता माँं!

लट में तेरे अलकों के।

और दहकती अग्नि ठंडी,

तेरी शीतल पलकों में।

माँ को याद करते हुए  ले चलती हूँ  आपको सुबह की सैर पर ....... पढ़ कर एक बार तो सर्दी महसूस कर झुरझुरी आ ही जाएगी ....... मुझे तो आई .......

जनवरी की एक सर्द सुबह


जनवरी मास की एक सर्द सुबह। ठंड अपने शबाब पर है। मेरी घड़ी में 5 बजकर 20मिनट हो रहे हैं। मैं यहां पार्क की एक बेंच पर बैठी सामने के वृक्षों के पत्तों से टपकती ओस की बूंदों को निहार रही हूं।इतनी जबरदस्त ठंड में भी ओस की बूंदें मुस्कुरा रही हैं और पत्तों से टपककर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दे रही हैं। चूंकि सर्दी का सितम बहुत है, इसलिए पार्क में इक्का-दुक्का ही टहलने वाले लोग हैं |

पढ़ कर आँखों देखा वर्णन लगा न आपको ?  और इसके बाद की  सुनहरी  सी  धूप कितना आनंद देती है इसका अंदाज़ा तो होगा आपको ...... 

माघ की मरमरी ठंड को ओढ़कर,

धूप निकली सुबह ही सुबह सैर पर,

छूट सूरज की बाँहों से भागी, मगर

टूटे दर्पण-सी बिखरी इधर, कुछ उधर !

इस गुनगुनी धूप में अक्सर देखा है कि बच्चे पार्क में खेलते हुए पकड़ते हैं तितलियाँ ....... और जब कोई तितली आ जाती है हाथ तो कितना प्रसन्न  होते हैं ये वो ही अनुमान कर सकते हैं जिन्होंने बचपन में तितलियाँ पकड़ी होंगी ........ मैंने तो बहुत पकड़ी हैं ..... लेकिन कुछ लोगों की अजब गजब ख्वाहिश होती है ..... कभी सुना नहीं कि तितलियों का अलग से कोई टापू  भी होता है ........ खैर आप तो पढ़िए  ये कविता ..... 

तितलियों के टापू पर...


बेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को
चिकोटी काटकर,
खिले-अधखुले फूलों के 
चटकीले रंग चाटकर
बताओ न गीत कौन-सा
गुनगुनाती हो तितलियाँ?

 अब आप तितलियों से प्रश्न पूछिये या धूप का आनंद लीजिये , .....  लेकिन  सब जगह यानि की लिंक्स पर  अपनी  छाप  छोड़ते जाइये  .......मतलब टिप्पणी दीजिये ...... यहाँ भी प्रतिक्रिया देनी न भूलें ..... मिलते हैं अगले सोमवार को ..... 

नमस्कार 
संगीता स्वरुप 




32 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    वाकई ठंड गायब हो गई
    जाते-जाते सर्दी -खांसी दे गई
    आभार..
    सादर नमन

    .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जिज्ञासा सिंह23 जनवरी 2023 को 7:51 am बजे

      सुप्रभात!
      एक दृष्टि में बहुत ही सुंदर और रोचक अंक। पढ़ती हूँ फिर आती हूँ..

      हटाएं
    2. यशोदा , अभी एक बार फिर ठंड चक्कर लगाने आएगी ।खुद का ख़्याल रखिये।

      हटाएं
    3. जिज्ञासा ,
      बहुत शुक्रिया । इंतज़ार है ।

      हटाएं
  2. सदैव की भाँति अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति । तितलियों के टापू पर माँ के आँचल की सुखद छाँव स्मृतियों के आँगन में ले गयी वहीं इकलौता बेटा परवरिश में अंधमोह की भयावहता के दर्शन करवा गई । सभी सूत्र लाजवाब एवं बेहतरीन । सादर सस्नेह वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नेता सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व को कोटि-कोटि नमन । जय हिन्द!!

      हटाएं
    2. त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मीना ।

      हटाएं
  3. इस अंक में दिया गया पहला लिंक ब्लॉग से हटा दिया गया है शायद ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शायद लेखिका के द्वारा हटाया गया है
      पता करती हूं
      सादर

      हटाएं
    2. मैं माफी चाहतीं हूँ, कुछ समय के लिए मुझे अपने लेख को हटाना पड़ा क्योंकि उसमें कुछ त्रुटियां थी और मेरे पास वक़्त नहीं था उस समय सुधार करने के लिए इसलिए मैंने हटाना सही समझा पर अब सुधार करके पुनः प्रकाशित कर दी है

      हटाएं
    3. कुछ पाठक शायद नहीं पढ़ पाए होंगे तुम्हारा लेख । तुमने यहाँ स्पष्ट कर दिया ,अच्छा लगा ।

      हटाएं
    4. कोई बात नहीं, दरअसल मेरा इक्जाम था आज तो मैं समय पर सुधार नही कर पायी थी दुबारा पढ़ कर!

      हटाएं
  4. पहला लिंक ब्लॉग से हटा दिया है लगता है।

    दिल को भेदती कहानी...
    आजकल की कुंठित मानसिकता को दर्शाती

    कुछ न कुछ रहस्य तो शेष है ही, जो हमें अपने दैनिक जीवन में कभी कभी महसूस होता है।
    अच्छा लेख।

    वाह!! बढ़िया कटाक्ष, सही कहा जो पाठ हम खुद नहीं पढ़ पाते, वो भी दूसरों को पढ़ाने का प्रयास करते।

    अच्छी मार्मिक कहानी...दोस्ती का रिश्ता अपनेआप में एक मुकम्मल रिश्ता है।

    दिल को छूती, सुंदर प्रस्तुति।

    मां तो बस मां होती है, हर रिश्ते की सौगात होती है।
    मां को श्रद्धांजलि 🙏🙏


    लाजवाब पंक्तियां!! शीत ऋतु में धूप की सुंदर व्याख्या।

    बेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को
    चिकोटी काटकर,
    खिले-अधखुले फूलों के
    चटकीले रंग चाटकर...

    वाह!! बहुत सुंदर रचना।

    लिंक से लिंक जोड़कर बनाई गई बहुत ही सुंदर कड़ी!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रूपा ,
      आपने इतने मन से पढ़ीं सारी रचनाएँ , बहुत अच्छा लगा । आपकी मॉर्निंग वॉक भी कुछ कम नहीं । ओस की बूँद का कानों के लवों से टपकने का इंतज़ार करती हैं -- गज़ब ही बात है ।
      सुंदर और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
    2. संगीता जी,
      सराहना हेतु तथा पांच लिंकों के आनंद पर मेरे लेख को शामिल करने लिए हार्दिक आभार !!

      हटाएं
  5. मेरे लेख को पांच लिंकों में शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद🙏💕

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मनीषा ,
      आप ऐसे ही दमदार लेख लिखती रहें और हम यहाँ इस मंच पर शामिल करते रहें ।
      पाँच लिंक इसलिए नहीं लिखा क्यों कि मेरी प्रस्तुति में हमेशा ही 5 से ज्यादा हो जाते हैं ।😥

      हटाएं
  6. हमेशा की तरह अपने चिर परिचित अन्दाज़ में अत्यंत मोहक प्रस्तुति। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ साथ उन वीरांगना खिलाड़ियों को भी सादर नमन जिन्होंने देश की इज़्ज़त से खिलवाड़ करनेवालों के साथ ईंट से ईंट बजा दी। इस मनभावन प्रस्तुति के लिए बधाई और सादर आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विश्वमोहन जी ,
      प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  7. दोपहर की धूप में बैठकर तितलियों का इंतजार करते सारी रचनाएँ पढ़ लीं। प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। बालकनी में इतने फूल खिले हैं पर तितलियों के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। कहीं अपने टापू पर लौट तो नहीं गईं ? बहरहाल, मेरी दोपहर इस सुंदर अंक की रचनाएँ पढ़ते हुए खिल सी गई। आदरणीया संगीत दीदी को सादर आभार इस बेहतरीन अंक के लिए और मेरी रचना को स्थान देने के लिए भी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      ये तो सच है कि प्रदूषण के चलते शायद तितलियाँ भी दिखती नहीं । फिर भी दोपहर की धूप में बैठ कुछ पढ़ने को मिल जाये तो फिर और क्या चाहिए .....
      यूँ संगीत से मेरा कोई वास्ता नहीं है , तभी न तुम्हारी टिप्पणी स्पैम में चली गयी थी । नाम गलत लिखने पर भी निकाल लायी हूँ तुम्हारी टिप्पणी 😆😆😆। यूँ ही मज़ाक किया है ......
      धूप बहुत खूबसूरत रचना लिखी है ।।
      किसी भी लिंक पर टिप्पणी नहीं दे पाई थी , लेकिन पढ़ी पूरी रचनाएँ हैं , इस बात की गारंटी तो मेरी प्रस्तुति दे ही देती है । है न ?

      हटाएं
    2. जी दीदी, बिल्कुल सही है। आपका नाम ही ऐसा है कि गलत लिखने पर और भी मधुर हो गया । कभी कभी गलती क्षमा की पात्र होती है ना ?

      हटाएं
  8. प्रिय दी,
    स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस इतिहास के पन्नों के अमिट हस्ताक्षर हैं जिनकी कहानियाँ युगों तक दोहराई जायेगी। नमन देश के वीर सपूत को।
    आज की सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी हमेशा की तरह।
    रचनाओं पर लिखी आपकी रोचक समीक्षा उत्सुकता पैदा कर रही है रचनाओं को पढ़ने के लिए-
    -----
    जनवरी की एक सर्द सुबह
    मरमरी धूप सेंकते हुए तो रचनाएँ नहीं पढ़ पाई
    पर संघर्षों में लपेटी हुई व्यथाओं से कराहती
    खेल के मैदान तक का सफ़र सोचते हुए
    मनुष्य के भीतर पसरा
    पाखंड सच में उजागर हो गया
    नहीं हँस पायी फिर...

    इकलौता बेटा
    अश्वत्थामा
    एहसास दिलाता है कि
    सच्चे दोस्त और दोस्ती
    कितने बेशकीमती है....।

    अगले सोमवारीय विशेषांक की प्रतीक्षा में।
    सप्रेम प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      हमेशा की तरह , अद्भुत प्रतिक्रिया ।
      अच्छा हुआ तुम हँस नहीं पायीं । हँसी वो तो बिना प्रयास के आये , जिसके लिए प्रयास करना पड़े वो असल में मन की कुंठा होती है ।
      अति सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार ।

      हटाएं
  9. उत्कृष्ट लिंकों से सजी बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति । हमेशा की तरह बहुत ही मनमोहक अंदाज ।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
    जय हिंद
    🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार सुधा ।
      आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहता है ।।

      हटाएं
  10. देर से आने के लिए खेद है, पराक्रम दिवस पर पाँच से अधिक रचनाएँ और प्रस्तुत करने के अनोखा अंदाज़, सभी रचनाकारों और पाठकों को आज के दिन की बधाई और बहुत बहुत आभार संगीता जी!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार अनिता जी । देर भले ही हो बस आते रहिए।

      हटाएं
  11. वाह बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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