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सोमवार, 16 जनवरी 2023

3640 / आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा

 नमस्कार !  नए वर्ष का पहला  पर्व ...... मकर संक्रांति ....... कुछ लोगों ने   14  जनवरी को मनाया तो कुछ ने 15  को ........... यह त्योहार क्यों ख़ास है आइये जानकारी लेते हैं  इस पोस्ट से .... 


सूर्योपासना का पर्व है मकर संक्रांति

  मकर संक्रांति आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है। इसी दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है। इसी दिन उत्तरायण शुरू होता है, अभी तक दक्षिणायण रहता है। खगोलीय दृष्टि से भी यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है। पुराणों में कहा गया है कि दक्षिणायण देवताओं की रात और उत्तरायण देवों के लिए दिन माना जाता है। यह दिन दान, पूजा-हवन, यज्ञ करने के लिए सर्वाधिक श्रेष्ठ है। मकर संक्रांति से सम्बंधित कई कथाएं है-

इस विषय पर कुछ जानकारी आप काव्य रूप में भी ले सकते हैं ..... 

मकर सक्रांति


प्रथम पर्व यह वर्ष का,खत्म हुआ खर मास।
तेजोमय हों सूर्य सम,लगी देव से आस।।

संवत के पंचाग में,हिंदू तिथि आधार।
मकर राशि दिनकर चले,आये तब त्यौहार।।
दक्षिण से उत्तर चले, सूर्य देव भगवान।
पुण्य काल आराधना,करिये जप तप दान।।
बीजमंत्र है सूर्य का,मकर संक्रांति खास।

मकर संक्रांति पर विशेष खाद्य  खिचड़ी .... दही - चूड़ा  माना जाता है ...... यही दान किया जाता है तो यही इस दिन खाया जाता है ...... इसके महत्त्व को जानने के लिए भक्ति भाव से लिखा ये पद  पढ़िए ..... 

खिचरिया खाएँ श्रीभगवान! ..पद


खिचरिया खाएँ श्रीभगवान !

दाल-भात की बनी रे खिचरिया,पूजय सकल सुजान।

प्रात परात सजय हर्दी संग, खूब करय स्नान।

माथ लगे चरनन म छिटके,भिच्छुक पावत दान।


इस पर्व के बाद से सूर्य उत्तरायण में प्रवेश कर जाता है ....... मन जाता है कि देवताओं के दिन आ जाते हैं सोये देव जाग जाते हैं .... इसी तरह की आशा करता हुआ कवि कह रहा है कि भाग्य अब तो उत्तरायण में आ जाओ ......


अब तो उत्तरायण हो भाग्य मेरे !



हे भाग्य देव !
तुम क्यों ,
करवट नहीं लेते ,
आँखे तो खोलो ,
देखो तो जरा ...

कोई बैठा चरणों में
इंतजार में
मुरझा  रहा है ...

और  कुछ लोग हैं कि ऐसी ठंडी हवा से  दो - दो हाथ  करने की ठान लेते हैं .... और उस मुकाबले की बात पढ़ते हुए मुझे बचपन में पढ़ी  हवा और सूरज की कहानी  याद आ गयी ... ..... खैर आप तो इस कविता का आनंद लीजिये .... 


देखा सिकुड़ते तन को
ठिठुरते जीवन को
मन में ख्याल आया...
थोड़ा ठिठुरने का ,
थोड़ा सिकुड़ने का,
शॉल हटा लिया....
कानो से ठण्डी हवा ,
सरसराती हुई निकली,
ललकारती सी बोली ;
इसमें क्या ?

आखिर हार जीत किसकी होनी है ये तो आपको पढ़ कर ही पता चल पायेगा .......  लेकिन  कभी कभी अपना नाम हमारा परिचय नहीं होता  बल्कि कुछ विशेष होता है ...... विश्व हिंदी दिवस पर एक भाषा को समर्पित एक प्यारी रचना आई है ..... आप भी पढ़ें .... 


माधुर्य कण्ठ का है तुझसे ,

तेरा शब्द-शब्द  है यश मेरा !

ढल कविता में जो बह निकला 

तू  अलंकार, नवरस मेरा!

अतुलकोश  सहेज भावों का 

है कृतज्ञ बड़ा हृदय मेरा!

कोई अपनी भाषा से प्रेम करता है तो कोई देश से ....... तो कोई श्रृंगार रस में एक प्रेम गीत लिख देता है ...... 

एक प्रेम गीत -इत्र से भींगे हुए रुमाल वाले दिन


तुम्हें देखा

याद आए

खुशबुओं के ख़त,

चाँदनी रातें

सुहानी

और सूनी छत,

राग में

डूबे हुए

करताल वाले दिन.

अब ये रुमाल वाले दिन ...... गुलाब वाले दिन ...... चॉकलेट वाले दिन  या फिर टेडी  बियर वाले दिन  बन गए हैं ...... और उनको आने में अभी एक महिना बाकी है ....लेकिन फिर भी कुछ लोगों के मन में अभी से सुरूर तारी है .....


तुझे अब इश्क़ में ही ज़िन्दगी मालूम होती है.
दिगम्बर ये तो पहली ख़ुदकुशी मालूम होती है.
 
कोई प्यासा भरी बोतल से क्यों नज़रें चुराएगा,
निगाहों में किसी के आशिक़ी मालूम होती है.


कहीं तो प्रेम का सुरूर चढ़ा है तो कहीं मन न जाने कहाँ भटक रहा है ........ वर्तमान में कभी कभी भविष्य के  बहुत भयानक  दृश्य दिखने लगते हैं ......... ये सोच किस ओर विचारों को इंगित कर रही है आप  स्वयं ही पढ़ कर अनुमान लगायें ....


हवा के स्वर में हाहाकार था, रेत उससे दामन छुड़ा रही थी। वृक्ष एक कोने में चुपचाप पशु-पक्षियों को गोद में लिए खड़े थे।उनकी पत्त्तियाँ समय से पहले झड़ चुकी थीं। सहसा स्वप्न के इस दृश्य से विचलित मन की पलकें उठीं, अब उसने देखा सामने खिड़की से चाँद झाँक रहा था।

”हाँ! चाँद झाँक ही रहा था!! न कि दौड़ रहा था।” उसने फिर विश्वास की गहरी सांस भरी।


वक़्त के साथ अक्सर बहुत कुछ बदलता है ....... ऐसे ही मौसम भी बदलता रहता है ......   मौसम के  बारे में सोचते सोचते ऐसा भी लगता है  कि -----


आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा


कुछ मौसम ऐसे भी हैं जो मनुष्य ने बाजारवाद के चलते गढ लिये हैं. इनका आनन्द भी सक्षमतायें ही उठाने देती है. इसका सबसे कड़क उदाहरण मुहब्बत का मौसम है जिसे सक्षम एवं अमीर वर्ग वैलेन्टाईन डे के रुप में मनाता है फिर इस डे का मौसम पूरे फरवरी महीने को गुलाबी बनाये रखता है. फरवरी माह के प्रारंभ में अपनी महबूबा संग गिफ्ट के आदान प्रदान से चालू हो कर वेलेन्टाईन दिवस पर इजहारे मुहब्बत की सलामी प्राप्त करते हुए फरवरी के अंत तक यह अपने नियत मुकाम को प्राप्त हो लेता है.

रेडियो पर गीत बज रहा है...’आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा..आज मौसम...’


सच है कि मौसम   बेईमान  है ..... और ठण्ड  भी काफी है ...... तो आज के लिए इतना ही बहुत है 

....... पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिये कि  आज की रचनाएँ कैसी लगीं ........ 

नमस्कार 

संगीता स्वरुप 



 



27 टिप्‍पणियां:

  1. हे भाग्य देव !
    तुम क्यों ,
    करवट नहीं लेते ,
    आँखे तो खोलो ,
    देखो तो जरा ...
    बहुत सुंदर अंक
    फ़ौरन पढ़ कर
    मैं फौरन प्रतिक्रिया
    नहीं दे पाती
    आभार
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई कुलदीप जी को शुभकामनाएं दिए कल
    नववर्ष,लोहड़ी, संक्रांति और आनेवाली प्रेम-दिवस पखवाड़े के लिए, उलाहना भी दिए कि
    ईद का चांद वर्ष में एक बार ही दिखता है, आप तो कई वर्षों से नहीं दिखे.....वादा लिया अगले रविवार की प्रस्तुति वे लगाएंगे
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम और दुःख का कोई मौसम नहीं होता. प्रेम शाश्वत है.सादर अभिवादन. कृपया मेरी पोस्ट को हटा दें इधर वैसे लेखनी ठप है. फेसबुक भी डिलीट कर दिया हूं. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतना सुन्दर प्रेम गीत है …क्यों हटाना चाहते हैं आप ? रहने दीजिए और खूब लिखिए😊

      हटाएं
    2. आपको पढ़ आई ।बहुत सुंदर गीत ।आपसे हम सीखते हैं, आप इसे मत हटवाइए.. बस एक आग्रह 👏👏

      हटाएं
    3. आदरणीय वकील साहब,
      अभी-अभी तीन नई रचनाएं लिक्खी दिखी है,रीडिंग लिस्ट पर,
      आप फेसबुक पर रहें या न रहें
      पर ब्लॉग पर बने रहिए
      सादर नमन

      हटाएं
  4. वंदन और शुभकामनाओं के संग साधुवाद
    उम्दा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर ग़ज़ल

    जवाब देंहटाएं

  6. सादर अभिवादन दीदी,
    आज के अंक में मेरे पद " खिचरिया खाएं श्रीभगवान" को शामिल करने के लिए आभार दीदी।
    साथ सभी रचनाकारों की रचनाओं का रसास्वादन किया.. बहुत सुंदर श्रमसाध्य संकलन में..
    कविता रावत जी का मकर संक्रांति पर्व की महत्ता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता उपयोगी आलेख ।
    अनीता सुधीर जी का मकर संक्रांति पर्व की अभ्यर्थना करता दोहागीत
    तरुण जी की मन के भावों को व्यक्त करती सुंदर रचना ।
    सुधा देवरानी सखी की सर्द मौसम से जुड़े जीवन के यथार्थ का परिदृश्य ।
    रेणुबाला सखी की.. हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता और समृद्धता को जागृत करती सुंदर रचना
    जयकृष्ण जी की श्रृंगार का अद्भुत अवलोकन करती सुंदर रचना ।
    दिगंबर नासवा जी की.. खूबसूरत शेरों से सज्जित बेहतरीन गजल।
    अनीता सैनी जी की.. स्वप्न और हकीकत के बीच के अंतर्द्वंद्व को कहती लघुकथा..
    समीर लाल जी का... मौसम पर वक्ती मिजाज़ को पेश करता सराहनीय आलेख ।
    ... सुंदर संग्रह लाने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी। अगले अंक के इंतज़ार में... जिज्ञासा👏👏💐💐

    जवाब देंहटाएं

  7. सादर अभिवादन दीदी,
    आज के अंक में मेरे पद " खिचरिया खाएं श्रीभगवान" को शामिल करने के लिए आभार दीदी।
    साथ सभी रचनाकारों की रचनाओं का रसास्वादन किया.. बहुत सुंदर श्रमसाध्य संकलन में..
    कविता रावत जी का मकर संक्रांति पर्व की महत्ता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता उपयोगी आलेख ।
    अनीता सुधीर जी का मकर संक्रांति पर्व की अभ्यर्थना करता दोहागीत
    तरुण जी की मन के भावों को व्यक्त करती सुंदर रचना ।
    सुधा देवरानी सखी की सर्द मौसम से जुड़े जीवन के यथार्थ का परिदृश्य ।
    रेणुबाला सखी की.. हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता और समृद्धता को जागृत करती सुंदर रचना
    जयकृष्ण जी की श्रृंगार का अद्भुत अवलोकन करती सुंदर रचना ।
    दिगंबर नासवा जी की.. खूबसूरत शेरों से सज्जित बेहतरीन गजल।
    अनीता सैनी जी की.. स्वप्न और हकीकत के बीच के अंतर्द्वंद्व को कहती लघुकथा..
    समीर लाल जी का... मौसम पर वक्ती मिजाज़ को पेश करता सराहनीय आलेख ।
    ... सुंदर संग्रह लाने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी। अगले अंक के इंतज़ार में... जिज्ञासा👏👏💐💐

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार । भगवान भोग का पद बहुत सुंदर लिखा है ।।

      हटाएं
  8. बहुत सुंदर संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय दी,
    मकर संक्रांति के त्योहार-सी सादगी लिए
    रचनाओं पर.आपकी प्रतिक्रिया मन में
    तिल का सोंधा पन और
    गुड़- सी मिठास घोल रही है...।
    विविध विधाओं,विविधता पूर्ण रचनाओं की सतरंगी छटा बिखेरता आज का अंक मनभावन है
    रचनाओं को पढ़ते हुए....

    सूर्योपासना का पर्व है
    मकर संक्रांति
    अब तो उत्तरायण हो भाग्य मेरे
    खिचरिया खाये श्री भगवान
    सब मिलकर पतंग उडाएँ...

    स्वप्न नहीं भविष्य था
    जानूँ न कौन किसका शिष्य था
    मन कहता रहता है मेरा
    माँ हिंदी तू ही परिचय मेरा

    इत्र में भींगे हुए रूमाल वाले दिन
    सर्द मौसम और मैं
    झुकी पलकों में अबतक सादगी मालूम होती है
    तब दिल गा उठता है
    आज मौसम बड़ा बेईमान है...।
    -----
    अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
    सप्रेम प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      हमेशा की तरह अद्भुत प्रतिक्रिया ।
      निःशब्द हूँ।
      आभार ।

      हटाएं
  10. उत्कृष्ट लिंकों से सजी एक और नायाब प्रस्तुति हमेशा की तरह अपने अलग ही अद्भुत अंदाज में बरबस आकर्षक !
    मेरी भूली बिसरी पुरानी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
    सादर नमन🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      भूली बिसरी रचना को याद कराना ही तो मुख्य उद्देश्य है । सराहना हेतु आभार ।

      हटाएं
  11. देर से उपस्थित होने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ प्रिय दीदी।पर कल से बराबर जुड़ी हुँ सभी रचनाओं से।आपके संकलन की ताजगी अपनी मिसाल आप है।बहुत बहुत शुक्रिया और आभार मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए।जिनकी रचनाएँ आज शामिल हुई सभी साथियों को सादर नमन।आपका पुन आभार और प्रणाम 🙏♥️♥️🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  12. कमाल का रोचक अन्दाज़ … आभार मुझे शामिल करने के लिये …

    जवाब देंहटाएं
  13. आदरणीया संगीता स्वरुप जी ! प्रणाम !
    रचना को आशीर्वाद देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
    प्रतिक्रया में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूंगा !
    आपको व समस्त "पांच लिंको का आनन्द " मंच को मकर सक्रांति एवं उत्तरायण की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    जय श्री राम !
    ईश्वर आपके प्रयास क पूर्णता एवं श्रेष्ठता प्रदान करे , शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं

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