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मंगलवार, 24 जनवरी 2023

3648 ...बागों में क्या-क्या गुज़रा क्यों नहीं बताती हो तितलियाँ

 सादर अभिवादन

कपूर....
आजकल बाजार मे जो कपूर उपलब्ध है, भले वह टिकिया वाला हो या डल्ले वाला उसमे करीब 99% कपूर पैट्रोलियम से संश्लेषण द्वारा प्राप्त कपूर, अर्थात नकली कपूर ही होता है।
देशी कपूर, जिसे भीमसेनी कपूर भी कहते हैं, अब बड़ी कठिनाई से मिलता है।
वह एक पेड़ से निकाला जाता है, व बहुत महंगा होता है।



जिस पेड़ से यह प्राप्त होता है उसे ड्रायोबैलानॉप्स ऐरोमैटिका कहते हैं। यह डिप्टरोकार्पेसिई कुल का सदस्य है जो सुमात्रा तथा बोर्नियो आदि में स्वत: उत्पन्न होता है।

अब देखें रचनाएँ ....


उम्र भर का आशना, आईना भी निकला ग़ैर,
बेमानी है खोज, यहाँ कोई भी नहीं तलबगार,
 
पत्थरों के शहर में, इक शीशा ए मुजस्मा हूँ,
हर मोड़ पे हैं नक़ाबपोश  मुहज़्ज़ब संगसार ।




ये सच है कि मेरे सपनों में
जादू वाली परियां आती थीं बचपन में
मगर उनका चेहरा ग़ायब हो जाता था भोर से पहले
तुम्हारा होना किसी भोर के सपने का सच होना लगता है




चाँद के आने से पहले
सूरज के ठहरने तक
चिड़ियों की पुकार पर
ऋतुओं के बदलने तक
बागों में क्या-क्या गुज़रा
क्यों नहीं बताती हो तितलियाँ?




हम सच को स्वीकार नहीं करते
वरना साफ़-साफ़ कह देते
हम मंदिर आते हैं खुद के लिए
हे ईश्वर ! हम तुमसे प्रेम नहीं करते
शब्दों को एक-दूसरे के साथ बिठाकर
गढ़ लेते हैं प्रार्थनाएँ




जिन्दगी की छोटी
छोटी खुशियाँ भी
भिगो जाती हैं तन मन
सबके
कर देती हैं आत्मा तृप्त ,
नाच उठता है सम्पूर्ण मन
जन -जन के


आज बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! यक़ीन, मौसम, तितलियों और ख़ुशी का संदेश देती पठनीय रचनाओं से सजा है आज का अंक, आभार 'मन पाए विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु यशोदा जी!

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  2. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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