सादर अभिवादन
प्रस्तुत है
ग्यारह वर्ष पुरानी याद
अब देखिए रचनाएँ .....
सूर्यास्त के बाद ...शान्तनु सान्याल
हृदय सूत्रों में बंधा होता है जीवन का
समीकरण, प्रणय काल में छुपा
रहता है दैहिक इति कथा,
पहाड़ियों के उस पार
बुझ रहा है सूर्य,
इस पार
इक विश्वास हृदय में अनुपम ..अनीता जी
जीवन इक उपकार किसी का
कोई दाना, वस्त्र उगाए,
दिया ज्ञान, घर-द्वार बनाता
पग-पग नया सहायक आए !
लड़की ने नदी में पाँव डाले हुए ही मुठ्ठी में बंद आसमान से कहा, 'तुम्हें घर ले चलूं? सिरहाने रखूंगी. भाग तो न जाओगे?' लड़की की नर्म हथेलियों में रखे-रखे आसमान ऊंघने लगा था. उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठा और बोला, 'वहीं जहाँ, मोगरे की खुशबू, सावन की बरसातें, पलाश की दमक, सरसों की खिलखिल, राग भैरवी,आम की बौर रखी है...?
लड़की ने हैरत से उसे देखा, 'तुझे ये सब कैसे पता..?
प्रतिक्षाएँ अनादि काल से
ओसरे पर बैठे बूढ़ी माई जैसी बनने पर
उस जगह से उठने का
संकेत देती हैं
प्रतिक्षाएँ सफल रही तो
अर्थ है नहीं व्यर्थ हैं
संस्कारों का पतन नहीं है फेमिनिज़्म ...मालती मिश्रा 'मयंती
"अब समय रहा ही कहाँ मनीष, अब तो सब खत्म हो गया, काश! कि मैं आँखें खोलकर रखती और समझ पाती कि किसी शब्द का सही अर्थ जाने बिना मैं उसके पीछे ऐसे भागूँगी तो एक दिन समाज तो छोड़ो अपनी नज़र में ही नहीं उठ पाऊँगी।
काश! मैंने सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया होता, काश! मैं समझ पाई होती कि
नारीवाद पुरुष और महिला के बीच प्राकृतिक अंतर को मिटाने की बात नहीं करता, यह पुरुषों के दमन की बात भी नहीं करता। बल्कि यह सभी के बराबर सामाजिक अधिकारों की बात करता है न कि इसकी आड़ में किसी को नीचा दिखाने की। नारीवाद का अर्थ संस्कारों का पतन नहीं बल्कि संस्कारों और समाज के प्रति सभी के दायित्व निर्वहन की समान भागीदारी का होना है। काश! समय रहते अपने अधूरे ज्ञान को पूर्णता दे पाती, अधूरा ज्ञान अज्ञान से अधिक खतरनाक होता है। इस अधूरे ज्ञान ने ही फेमिनिज्म के चेहरे को भयावह कर दिया।"
आज बस
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय।
जवाब देंहटाएंदेरी से आने के लिए खेद है, पर लगता है सभी कल व्यस्त थे, सुंदर प्रस्तुति! बहुत बहुत आभार मेरी रचना को हलचल में शामिल करने हेतु यशोदा जी!
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