सादर
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रविवार, 15 जनवरी 2023
3639 ...बवंडरों से जूझता पल - पल - टुकड़ों में ढह रहा है !
7 टिप्पणियां:
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सुप्रभात! सभी पाठकों व रचनाकारों को मकर संक्रांति के पावन पर्व पर शुभकामनाएँ, सराहनीय व सामयिक रचनाओं के लिंक्स से सजी हलचल में मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने के लिए आभार यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन .. साधुवाद
जवाब देंहटाएंआप सभी को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय सूत्रों से सजी प्रस्तुति में..
जवाब देंहटाएंसखी रेणुबाला जी का.. हिमालय की विकट स्थिति का गहन अवलोकन ।
सखी अभिलाषा चौहान जी की.. श्रमशक्ति पर गहन और चिंतनपूर्ण रचना।
अनीता दीदी की.. भारतीय मूल्य और संस्कृति पर सुंदर प्रेरक अभिव्यक्ति।
शांतनु सान्याल जी की.. सुंदर भावपूर्ण अहसास को संजोती गहन रचना ।
के साथ साथ मेरी रचना "मेरी उड़ गई पतंग" को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय सखी ।
आपको एवं सभी रचनाकारों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
बहुत ही सुन्दर रचना संकलन और प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी,आपकी इस भावपूर्ण प्रस्तुति के बहाने अपना ही लेख दुबारा पढ़ने का अवसर मिला जो कभी बहुत व्यथित मन से लिखा था।आज की सम्मिलित सभी रचनाओं के सुर में सुर मिला रहा लेख भी स्नेही पाठक वृन्द की नजरों से फिर से गुजरा, अच्छा लगा।बहुत दुखद है जोशीमठ का धीरे -धीरे रसातल में समाना।एक सुन्दर और आध्यात्मिक देव भूमि का ये हश्र आँखें नम कर देता है।वहाँ के निवासियों के उजड़ रहे घरोंदे दिल को दहला रहे हैं।2010 के आसपास मेरे जीजा जी सेना की नौकरी के कारण सपरिवार जोशीमठ कई साल रहे।उनसे वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की अनगिन कहानियाँ सुनी।आज ही जब जोशीमठ के बारे में उनसे बात हुई तो वे दोनों उन दिनों को याद कर भावुक से हो गये।रुई-सी झरती बर्फ़ और बादलों से ऊपर अपना कुछ दिनों का निवास उन्हें अनायास स्मरण हो आया।बाबा केदार- बद्री नाथ की पुण्य धरा के व्यावसायिकरण ने इसके अस्तित्व को ही दाव पर लगा दिया।कभी हम अपनी पाठय पुस्तकों में पढ़ते थे कि पहाडों पर सलेटी पत्थर की छतों वाले हल्के -फुल्के मकान होते हैं पर आज देखो तो पहाडों पर भी मैदानी क्षेत्रों सरीखे कंक्रीट के जंगल उग आये हैं।कहीं भारी भरकम बाँध और कहीं पहाडों पर सडकों रेल की पटरियों के लिए होते बारूद के प्रचण्ड धमाके ' आखिर कब तक पहाड़ विचलित न होंगे।उनके सब्र की भी एक सीमा होती है।अब वे जर्जर हो दरकें ना तो क्या करें!! काश!मानव पर्वतों की वे हरितिमा युक्त श्रेणियाँ भावी पीढ़ी को लौटा पाता!!😞
जवाब देंहटाएंरचनाकारों के सभी विषय हृदयस्पर्शी हैं।सभी को संक्रांति पर्व की बधाई और शुभकामनाएं प्रिय दीदी।मेरी रचना को अपनी प्रस्तुती में शामिल करने के लिए आभारी हूँ।आप और सभी स्नेही पाठकों को संक्रांति पर्व की बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌹🌹♥️♥️