।।प्रातः वंदन।।
"उठो अब कुंठा बुहारो।
यूँ न बोलो के नही कहता हूँ.हूबहू जैसे सुनी कहता हूँ.
कान रख देता हूँ हवाओं पर,फिर जो सुनता हूँ वही कहता
गुस्ताखियाँ
बेईमान लम्हों की हसीन नादान गुस्ताखियाँ l
कर गयी ऐसी मीठी मीठी दखलअन्दाज़िया ll
शरमा तितली सी वो कमसिन सी पंखुड़ियां l
रंग गयी गुलमोहर उस चाँद की परछाइयाँ ll
रहो यूं #मशरूफ इतना !
रहो यूं #मशरूफ इतना ,
जश्न के #मयखाने में ,
कि जलती रहे लौ खुशी की ,
दिल के #दीपखाने में..
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दुर्योधन की डायरी - पेज २९६२
🌸
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेम, मेरी लिखी रचना ब्लॉग को "पांच लिंकों का आनन्द" के अंक में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी संकलित रचनाएँ बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को बधाइयाँ ।
सादर ।
बहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभावभीनी हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …
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