सादर अभिवादन
लग गया झटका 440 व्होल्ट का
कुछ नामी-गिरामी लोगों से
आत्मीयता हो गई
वो कुछ इतनी हुई
कि मैं क्या बताऊँ
उनका कहना था...
ये नक्सली और आतंकवादी
है क्या चीज..इन्हें तो हम
चुटकियों में मसल देंगे..पर
नहीं न चाहते कि ये खत्म हो जाए
???? सोच में पड़ गया मैं..
सामने उसके ये प्रश्न उछाला
??
उसने मेरे कान में कहा...
इनके उन्मूलन के लिए सरकार अकूत
धन देती है,,,,और
यही हमारा चारा-पानी है
गर ये खतम हो गए तो हम
भूखे मर जाएँगे..
.....
चलिए चलें आज की रचनाओॆ की ओर.....
..पहली बार..
साथ तुम्हारा...........जयश्री वर्मा
साथ तुम्हारा पा के,ये जीवन,यूं खिल सा गया है,
जैसे ठहरी तंद्राओं को,इक वज़ूद सा,मिल गया है।
तुम्हारे इन हाथों में,जब भी कभी,मेरा हाथ होता है,
तो जैसे कि,मेरी खुदी का एहसास,तुम में खोता है।
परजीवी............आशा सक्सेना
इस जिन्दगी का लाभ क्या
जो भार हुई स्वयं के लिए
हद यदि पार न की होती
भार जिन्दगी न होती
लग गया झटका 440 व्होल्ट का
कुछ नामी-गिरामी लोगों से
आत्मीयता हो गई
वो कुछ इतनी हुई
कि मैं क्या बताऊँ
उनका कहना था...
ये नक्सली और आतंकवादी
है क्या चीज..इन्हें तो हम
चुटकियों में मसल देंगे..पर
नहीं न चाहते कि ये खत्म हो जाए
???? सोच में पड़ गया मैं..
सामने उसके ये प्रश्न उछाला
??
उसने मेरे कान में कहा...
इनके उन्मूलन के लिए सरकार अकूत
धन देती है,,,,और
यही हमारा चारा-पानी है
गर ये खतम हो गए तो हम
भूखे मर जाएँगे..
.....
चलिए चलें आज की रचनाओॆ की ओर.....
..पहली बार..
साथ तुम्हारा...........जयश्री वर्मा
साथ तुम्हारा पा के,ये जीवन,यूं खिल सा गया है,
जैसे ठहरी तंद्राओं को,इक वज़ूद सा,मिल गया है।
तुम्हारे इन हाथों में,जब भी कभी,मेरा हाथ होता है,
तो जैसे कि,मेरी खुदी का एहसास,तुम में खोता है।
परजीवी............आशा सक्सेना
इस जिन्दगी का लाभ क्या
जो भार हुई स्वयं के लिए
हद यदि पार न की होती
भार जिन्दगी न होती
जिन्दों की क्या कहें
वे मुर्दों को नहीं छोड़ते
हर चीज को वे अपनी
तराजू पर तोलते हैं।
वो सबको भुना लेते हैं
वेे शख्स लाजबाब है
लोग भुन जाते हैं
दूर खड़ा शैतान हँस रहा है
मुस्कुरा रहा है
एक बार फिर
वो अपने मक़सद पर कामयाब रहा
इंसानियत को तार –तार कर गया
मतदाता...गोपेश जायसवाल
‘मतदाता,
खुद अपना भाग्य मिटाता,
इस लोकतंत्र की बलिवेदी पर,
स्वयं दौड़, चढ़ जाता,
सब काम छोड़,
मतदान केंद्र पर आता,
ऊँगली, स्याही से, स्याह करा,
मतदाता-धर्म, निभाता.
मतदाता...गोपेश जायसवाल
‘मतदाता,
खुद अपना भाग्य मिटाता,
इस लोकतंत्र की बलिवेदी पर,
स्वयं दौड़, चढ़ जाता,
सब काम छोड़,
मतदान केंद्र पर आता,
ऊँगली, स्याही से, स्याह करा,
मतदाता-धर्म, निभाता.
निर्मल गुप्ता, रवि रतलामी,
हिंदी साहित्य में व्यंग्य को लेकर बहुत ज्यादा प्रयोग देखने को नहीं मिलते है और जो अभी तक हुए है उनका भी सही से मूल्याकन नहीं हो पाया है . लेकिन फिर भी व्यंग्यकारों ने से एक अनोखा प्रयोग किया - व्यंग्य की जुगलबंदी .
एक गीत..........जयकृष्ण राय तुषार
उत्सवजीवी लोग यहाँ
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है |
आज का ज्वलन्त शीर्षक....
आओ बिटिया
आज तुम्हारे
जन्मदिन
के साथ सारी
बिटियाओं
का जन्मदिन
मनायें
बिटिया के
जन्मदिन
को इतना
यादगार
बनायें
आज्ञा दे दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी...
एक बहुत ही सस्ता हेलीकॉप्टर
आप भी देखिए..ये उड़ता भी है..
एक गीत..........जयकृष्ण राय तुषार
उत्सवजीवी लोग यहाँ
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है |
आज का ज्वलन्त शीर्षक....
आओ बिटिया
आज तुम्हारे
जन्मदिन
के साथ सारी
बिटियाओं
का जन्मदिन
मनायें
बिटिया के
जन्मदिन
को इतना
यादगार
बनायें
आज्ञा दे दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी...
एक बहुत ही सस्ता हेलीकॉप्टर
आप भी देखिए..ये उड़ता भी है..