एक बेटी ने अपने पिता से एक प्यारा सा सवाल किया कि पापा ये आंगन मे जो पेड़ है उसे पिछे वाले बगीचे मे लगा दे तो ? पिता असमंजस मे और बोले बेटी ये चार साल पुराना पेड़ है नई जगह , नई मिट्टी मे ढल पाना मुश्किल होगा । तब बेटी ने जलभरी आंखो से पिता से सवाल किया कि एक पौधा और भी तो है आपके आंगन का जो बाईस बरस पुराना है क्या वो नई जगह पर ढल पाएगा ?
पिता बेटी की बात पर सोचते हुए कहा कि यह शक्ति पुरी कायनात मे सिर्फ नारी के पास ही है जो कल्पवृक्ष से कम नही है । खुद नए माहौल मे ढलकर औरो कि सेवा करती है । ताउम्र उनके लिए जीती है
अब देखिये मेरी पसंद के कुछ चयनित लिंक....
अनादिकाल से सूर्य ओम (ॐ )का जाप कर रहा है
इसी भागवद पुराण के बारहवें स्कंध के ग्यारहवें अध्याय के श्लोक छ :,सात और आठ में भगवान के विश्वरूप का बखान करते हुए कहा गया है :ये पृथ्वी भगवान के चरण (पैर, पाद )आकाश उसकी नाभि (navel ),सूर्य उसके नेत्र ,वायु उसकी नासिका के छिद्र (nostrils ),सृष्टि करता देव उसके प्रजनन अंग ,मृत्यु उसकी गुदा ,तथा चन्द्रमा उसका मस्तिष्क हैं।
आकाशीय ग्रह उसका मस्तक (Head ) हैं . दिशाएं उसके दोनों कान हैं तथा विभिन्न ग्रहों के रक्षक देवगण उसकी भुजाएं हैं। मृत्युदेव उसकी भवें (eyebrows ), शर्म (शर्मोहया) उसका निचला होंठ तथा लोभ उसका ऊपरवाला औष्ठ (होंठ ) हैं। माया (delusion , God's illusory energy ) उसकी मुस्कान तथा चांदनी उसकी
मुक्तावली (teeth ) है। वृक्ष उसके शरीर का रोम (bodily hairs ) हैं । मेघ उसकी केशराशि हैं ।
अन्यत्र कई उपनिषदों में कहा गया है -वह कान भी कान है (श्रवण का भी श्रवण है )आँख की भी आँख है ,वाणी का सम्भाषण वही है। वही है जो मन को सोचने की क्षमता देता है जिसके द्वारा मन सोचता है विचार सरणी पैदा करता है। अनादिकाल से सूर्य ओम (ॐ ) का जाप कर रहा है
तो मैंने भी सोंचा ...
तो मैंने भी सोंचा
एक कोशिश हम भी कर लें
लोगों को जोड़ के देख लें !!
उन आँखों की अनकही....!!!
मुझे पता था ये नजरे मैंने तुमसे नही,
बल्कि अपनी जिंदगी से फेर रही हूँ...
तब से आज तक...
मैं उन आँखों की अनकही सुनने के लिए,
बेचैन हो भटकती रही हूँ...!!!
..वो आज भी लाचार हैं ...
हाँ , यह तय है की इस तरह की सोच वाले इस खुड -पेंच के चलते ज़िन्दगी भर न जाने किस झूठ के सहारे जीते है , दूसरों की ज़िन्दगी के साथ ये अपनी ज़िंदगी भी बर्बाद करते है। ये भूल जाते है की इनकी अपनी भी बेटियां हैं। भविष्य में इनके साथ भी यह हो सकता है। हालाँकि ये सामाजिक बुराई कोई नई नहीं। बस , दो दिन पहले की घटना से अजीब सा लगा। ..पर आज भी जो सभ्य , सच्चे अर्थों में शिक्षित लोग है वो इसके विपरीत है।
..और ऐसे ही लोग ज़िन्दगी को खुद भी जीते है और दूसरों को भी जीने देते है। क्योंकि शादी-ब्याह के समय जो लोग सिर्फ लड़के वाले होने के कारण लड़की , लड़की वालों का अपमान करने में कोई कसर नही छोड़ते , ज़िन्दगी में खुद भी कभी सम्मान नही पा सकते। .....ईश्वर करे ,इनके यहां कभी शादी-ब्याह न हों। रहें अपनी अकड़ के साथ।
बेपेंदी का लोटा-लघुकथा
“सच कहते हैं सर, जब उपस्थिति बन चुकी है तो जाने देना उचित नहीं| आप नियमानुसार ही काम करें,” दिनकर बाबू की यह बदली बदली भाषा देखकर सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे| जाते जाते सबने सुना,” पेंदी को जाँचे बिना विरोध...हहहहहह”
हमें अपनी संस्कृति को बचाना है ....!!
जो संरक्षण.... हम स्त्रियॉं को समाज से मिला था ,वही संरक्षण आज समाज को ही देने का समय आ गया है |समाज के लिए कुर्बानी देने का फिर वक़्त आ गया है |इस बार नारी को ही आगे आना है | |पुनर्जीवित करने हैं वो संस्कार जो क्षीण हो रहे हैं |संस्कारों की उर्वरक से विस्तार देना है प्रेम को ,रिश्तों को जो खोखले होते
जा रहे हैं ....!! आज सोचना है स्वतन्त्रता का अर्थ क्या है ?
नारी के लिए क्या हर बंधन तोड़ना स्वतन्त्रता है ... या उसी बंधन की सीमा में रहकर स्वयं को निखारना और देश व समाज के लिए कुछ सार्थक करना स्वतंत्रता है.…… !!
आज बस इतना ही...
कल 14 सितंबर है...
यानी हिंदी चर्चा दिवस...
कल भी वोही होगा, जो हर बार होता है...
पर हम तो लगे हुए हैं...
आप की लिखी हिंदी रचनाओं को...
अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में...
इस लिये हमारे लिये तो हर दिन ही...
हिंदी दिवस ही है...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सादर
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया , ..' पांच लिंकों का आनंद' के आज के चुनिंदा पांच लिंक में मेरे लिखे को शामिल किया गया .
जवाब देंहटाएंमैं उन आँखों की अनकही सुनने के लिए,
जवाब देंहटाएंबेचैन हो भटकती रही हूँ...!!!
वाह!!!!!
मैं उन आँखों की अनकही सुनने के लिए,
जवाब देंहटाएंबेचैन हो भटकती रही हूँ...!!!
वाह!!!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
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