सादर अभिवादन
लिखना तो कुछ चाहती हूँ
पर..लिखना कहना
नक्कारखाने की तूती
सुनेगा कौन
...
आज की पढ़ी सुनी रचनाएँ...
"दिनभर की भाग-दौड़ में..
उग आते हैं..
नाराज़गी के छोटे-छोटे फ़ाये..
बनते-बिगड़ते काम में..
झुलस जाते हैं..
मासूमियत के प्यारे साये..
आइये, सुबह ५ बजे उठकर, नजदीक के पार्क में, अपने आपको फिजिकल एक्टिव बनाने का प्रयत्न शुरू करें ! हलके हल्के दौड़ते हुए,
खुलते, बंद होते फेफड़े, शुद्ध ऑक्सीजन को शरीर में पम्प करते,
शरीर का कायाकल्प करने में पूरी तौर पर सक्षम हैं !
विश्वास रखें ये सच है ...
सुनो !!
कुछ नया गढ़ूं?
नया विस्तार पाने की एक कोशिश
क्यों? है न संभव?
हरे पेड़ और
मिट्टी की खुश्बू
से ज्यादा
रेलगाड़ी की पटरियों सी
जिंदगी
अच्छी होती हैं......।
टूट जाएगा मिरा दिल गर अधूरी रह गयी
आप के तर्ज़े तकल्लुम से तो लगता है यही
रह गयी बाक़ी अभी कुछ सरगिरानी और है
एक साल पहले ..
हिम्मत सच के
लिये खड़े होने
के लिये हर कोई
सच को झूठा
बनाना चाहता है
‘उलूक’ के साथ
कोई भी नहीं है
ना होगा कभी
पागलों के साथ
खड़ा होना भी
कौन चाहता है ।
......
इज़ाज़त चाहती है यशोदा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ।
एक से एक अच्छी लिंकों का चयन
सुन्दर बुधवारीय हलचल अंक। आभारी है 'उलूक' सूत्र 'पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है' को आज की चर्चा का शीर्षक देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति विरम सिंह
जवाब देंहटाएंBahut sundar halchal..meri rachna ko sthan dene ke liye shukriya.
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