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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

434....भरमाती-भुलाती सभी भान डुबा लेती..

सादर अभिवादन..

लगता है..
जाग गया हिन्दुस्तान
गतिविधियाँ जारी हो गई..
गर.. सच मे जारी हो गई तो जारी रहे..
इच्छा है करांची घूमने की
वो भी बिना पासपोर्ट...
सादर..

चनिए चलें आज की चयनित रचनाओं की ओर..


अग्रलेख....
एक खत... साधना वैद
कुछ करिये मोदी जी ! अब तो कुछ करिये !
करोड़ों भारतवासियों की नज़रें आप पर टिकी हैं !
यह चुप्पी साधने का नहीं हुंकार भरने का समय आया है !
इस एक पल की निष्क्रियता सारी सेना का मनोबल
और सारे भारतवासियों की उम्मीदों को तोड़ जायेगी !
इतने वीरों के बलिदान को निष्फल मत होने दीजिये !
शान्ति और अहिंसा के नाम पर कब तक
हमारे वीर जवान अपनी जानें न्यौछावर करते रहेंगे




अमृत सा उसका पानी....रेखा जोशी
हिमालय पर्वत से
लहराती बलखाती
रवानी जवानी सी
उफनती जोशीली
बहती जा रही
अमृत सा उसका पानी



अच्छे दिनों की गज़ल....निखिल आनन्द गिरि
छप्पन इंची सीने का क्या काम है सरहद पर,
मच्छर तक से लड़ने में नाकाम है, अच्छा है।
बिना बुलाए किसी शरीफ के घर हो आते हैं
और ओबामा से भी दुआ-सलाम है, अच्छा है।



हो गई पूजा.........दिलबाग विर्क
कहीं न गया
तुझे याद किया है
हो गई पूजा ।



कविता महिलाओ से....विरम सिॆ़ंह
हर दिन सड़को पर मचली जाती हो ।
सिर्फ सिसकियाँ भर रह जाती हो ।।
फिर भी कहती अबला नही, हम है सबला ।
क्यों ओढ रखा है कायरता पर वीरता का चोला ।।

एक साल पहले..पाँच लिंकों का आनन्द में..
शिप्रा की लहरें..
अनंग गंध..प्रतिभा सक्सेना
गंध-मुग्ध मृगी एक निज में बौराई,
विकल प्राण-मन अधीर भूली भरमाई .
कैसी उदंड गंध मंद नहीं होती,
जगती जो प्यास ,पल भर न चैन लेती .

आज्ञा दें यशोदा को..
फिर मिलते हैं..

आज एक फ्राँसिसी जादू दिखाती हूँ
"Where Did She Go?"




5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्र संकलन आज का ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति , हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई
    रचनाएं! भररात जगाती नीद न आती "
    रात गुनगुनाकर कह जाती वही कहानी अपनी !
    चार दिसंबर दो हजार सत्तरह लहुरावीर की बातें |
    लोगों में भरा कितना कलियुगी असंख्य जीवन इतिहास
    इठलाते - बलखाते व्यंग बराबर कसते करते उपहास |
    इसे विडम्बना ही मानोप पर सच्चाई रातें सपने में करतीं बात
    वह दिन भी देखा- सूना होगा ,छूटी वस्तु लोग लौटाते ...
    पर देशों की परम्परा को राष्ट्र में हम नहीं ला पाते
    और दक्षिण भारत की सभ्यता को भी हम नहीं अपनाते |
    भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को भी बतलाऊं
    उस गाथा को कैसे गाऊं अंधियारी वह रात सुनाऊं |
    नहीं -नहीं खिलखिली धुप में घुप हंसता हुआ मित्र एक आता
    अपनी वह पाथेय एकसौ छत्तीस रचना का साथ लेकर जाता |
    सुनकर क्या कर सकते हो मेरी यह अमृत बीती गाथा
    पर अभी समय है सोई नहीं वह मेरे परीश्रम की मौन व्यथा |
    साइट पर मेरे विद्यमान है लेकर एक सुनहरी आभा
    पर उसने व्यसन में अपने साथियों के साथ छाया गांठा |
    कुतूहल थी जिन आँखों में उस दिन पानी भर मेरे आया
    स्वच्छंद सुमन जो खिले थे कल तक प्रतिभा छाया गुनगुना उठी |
    कहती ! ठहरो कुछ सोचो -विचार करो ,अपने भी घातक होते लहरी
    हो चकित निकल आई सहसा ,कोमल पंखुड़ियां आँखों में गहरी |
    'मंगल' सौन्दर्य जिसे कहते हैं ,अनंत अभिलाषा के सपने तुझमें
    सुन्दरता मेरी आँखों को रह- रहकर समझा जाती है, और बताती !
    हलकी सुशान की भाषा में मित्रों की दुर्बलता को भी गाती जाती है |
    तुम्हें स्मित रेखा खींच कर एक संधिपत्र अभी से लिखना ही होगा
    सदा उस अंचल मन पर उन्हीं मित्रों से भी कुछ - कुछ सीखना होगा |
    नित्य विरुद्ध संघर्ष सदा विश्वास संकल्प अश्रु जल से !
    आसमान में पक्षी उड़ती समंदर में तुझे उतरना होगा |
    'मंगल' कहदो अपनी यादों को मुझे जलाना छोड़ दें
    आंसूं बहाना व्यर्थ है रक्त बहाना छोड़ दें |
    बहुत पहेलियाँ सुलझाया होगा अपने इस जीवन पल में !
    सद्भाव - प्रेम पोथी पढाओ अपने उन विछुरे साथियों में ||

    जवाब देंहटाएं

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