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शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

413...ब्लॉग लेखन की बाध्यतायें

जय मां हाटेशवरी...

आज की प्रस्तुति में आप का स्वागत है...
देखिये मेरी पसंद...

महिलाओं को इतनी तो आजादी दो कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!!

जब भी कहीं महिलाओं के साथ बर्बरता की कोई खबर सुर्खियों में आती है, तो बिना किसी शुरवाती जानकारी के लोगों की पहली प्रतिक्रिया यहीं होती है कि यह सब आधुनिकता का तकाजा है, महिलाएं भड़काऊ कपड़े पहनती है इसलिए...! क्या वास्तव में छेड़खानी, बलात्कार की सभी घटनाएँ सिर्फ छोटे और आधुनिक कपड़े पहनने से ही होती है? हाल ही में हुए बुलंदशहर गैंगरेप में क्या उन माँ-बेटी ने भडकाऊं कपड़े पहन रखें थे? सादे कपड़े में और परिवारवालों के साथ रहने पर भी क्यों हुआ उनके साथ गैंगरेप? दो-तीन साल की मासूम बच्चियों पर क्यों होते है बलात्कार? दरअसल नारी अपना कितना शरीर दिखाएं या कितना छिपाएं, यह महत्वपुर्ण नहीं है, क्योंकि कामभावना मस्तिक में जन्म लेती है और तरंगे सारे शरीर को झंकृत कराती है। बलात्कार या छेड़खानी की घटनाएँ कपड़ों की वजह से नहीं होती, वो होती है गंदी, बीमार और विकृत मानसिकता के कारण।

 शबनम...
दर्द की मिट्टी का घर  
फूलों से सँवरा  
दर्द को ढ़कती रही पर  
दर्द बनी शबनम !  

सात फेरे....!!!

मुझे गुमान था उन सात फेरो पर,
वचन दिया था तुमने मुझे,
मंजिल पर पहुचँगे हम साथ-साथ,
मुझे गुमान था कि...
तुम जब मेरे माथे पर सजते रहे होंगे,
मैं सारी दुनिया को हरा सकती थी,
जब से तुम्हे जीत लिया था मैंने,...
फिर भी तुमने छोड़ा है साथ मेरा,

शाम जब बारिश हुई....
झर रही हर बूँद की स्वर लहरियों में डूब जाऊँ----
टरटराऊँ
फुदक उछलूँ
खेत की नव-क्यारियों में
कुहुक-कुहकूँ बन के कोयल
आम की नव-डालियों में
झूम कर नाचूँ कि जैसे नाचते हैं मोर वन में
दौड़ जाऊँ
तोड़ लाऊँ
एक बादल
औ. निचोड़ूँ सर पे अपने

शीलहरण पे पढ़ रही, भीड़ व्याह के मन्त्र
घटना घटती घाट पे, डूब गए छल-दम्भ।
होते एकाकार दो, तन घटना आरम्भ।।
हीरा खीरा रेतते, लेते इन्हें तराश।
फिर दोनों को बेचते, कर दुर्गुण का नाश।।
तनातनी तमके तनिक, रिश्ते हुवे खराब।
थोडा झुकना सीख लो, मत दो उन्हें जवाब।।

ब्लॉग लेखन की बाध्यतायें
प्रतिभा को सही मान न मिले तो वह पलायन कर जाना चाहती है, अमेरिका भागते युवाओं का यही सारांश है। स्थापित तन्त्रों में मान के मानक भी होते हैं, बड़ा पद रहता है, सत्ता का मद रहता है, और कुछ नहीं तो वाहनों और भवनों की लम्बाई चौड़ाई ही मानक का कार्य करते हुये दिखते हैं। समाज में बुजुर्गों का मान उनकी कही बातों को मानने से होता है। भौतिक हो या मानसिक, स्थापित तन्त्रों में मान के मानक दिख ही जाते हैं। ब्लॉग जगत में मान के मानक न भौतिक हैं और न ही मानसिक, ये तो टिप्पणी के रूप में संख्यात्मक हैं और स्वान्तः सुखाय के रूप में आध्यात्मिक। ज्ञानदत्तजी यहाँ पर अनुपात के अनुसार प्रतिफल न मिलने की बात उठाते हैं जो कि एक सत्य भी है और एक संकेत भी। ब्लॉग से मन हटाकर फेसबुक पर और हिन्दी ब्लॉगिंग से अंग्रेजी ब्लॉगिंग में अपनी साहित्यिक गतिविधियाँ प्रारम्भ करने वाले कई ब्लॉगरों के मन में यही कारण सर्वोपरि रहा होगा।

धन्यवाद।









4 टिप्‍पणियां:

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