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शनिवार, 24 सितंबर 2016

435 .... यात्रा




यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष

हर की पौड़ी
हर बार नया अनुभव
अभी हम यहाँ हैं

आप आनंद लें .... दूसरों के यात्रा वर्णन का



ई हालत में जब ‘दुख ने दुख से बात की’ तब ऊ लड़की को समझ में आया
कि ऊ फरसाण बेचने वाला गूँगा है. ऊ लगभग रोते हुये उसको इसारा से बताई
 कि उसका ई दुनिया में कोई नहीं है. एक मिनट सोचने के बाद ऊ गूँगा
उसको अपने साथ अपना घरे ले गया अऊर अपना माँ को सब बात बताया.
 ऊ लड़की रोते हुये अपना पूरा कहानी बताई.
बूढ़ी माँ उसको अपना गले से लगा ली



इसी बीच एक आदमी भीड़ का फायदा उठाते हुए
पिताजी के ज़ेब में हाथ डालकर उनका पर्स चुराने की कोशिश करने लगा
पर भीड़ में धक्का लगने से उसके हाथ से पर्स निचे गिर गया ।
मैंने पर्स उठाकर पिताजी को दिया और उस जेबकतरे से अवगत करवाया ।
फिर तो अन्य यात्रियों ने मिलकर उसको जमकर सबक सिखाया,
अगले स्टेशन पर उस जेबकतरे को पुलिस के हवाले कर दिया ।




नदी, पहाड़, झरने, तालाब, समुद्र, आकाश, पंछी, हवा ये सभी प्रकृति के अंग हैं
और मुझे ये काफी हद तक प्रभावित करते हैं। हवा कम हो चुकी थी
अब मैं भी बिलकुल तैयार था किसी नये नजारे को देखने के लिए
और उसमें से कुछ अच्छाईयां ग्रहण करने के लिए।
 या यूं कहें अपनी मां की गोद में जाने के लिए।



पर क्यों ऐसे जाना पसंद करते है,
पसंद करते है या उनकी मजबूरियाँ है,
या उनके अपने लोगों से जो दूरियाँ है,
उसी दूरी को मिटाने के लिए इतना दर्द सहते है,
यह उनके प्यार को दर्शाता है,
की आदमी परेशान तो होता है,
पर जनरल यात्रा करने से नही घबराता है.


पहले जब भी जाता तब सेकेंड क्लास स्लीपर में होता था,
 मगर इस बार मैं सेकेंड क्लास ए.सी. में था.. मुझे एक एक करके
सारे अंतर पता चल रहे थे जो मैं पहले बस दूसरों के
अनुभव से ही जान पाता था.. स्लीपर में जहां गरमी और पसीने कि
 बदबू होती थी वहीं यहां ए.सी. का सूकून था.. मगर जहां स्लीपर में
एक अपनापन होता था वहीं यहां आत्मकेन्द्रित लोग थे
जो ऐसा लग रहा था जैसे अपने ही अहम में सिमटे जा रहें हों..




सच ही किसी ने कहा है – जितना हम प्रकृति के करीब रहते हैं,
उतना ही संस्कृति से, अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं औऱ जितना हम
प्रकृति से कटते हैं, उतना ही हम खुद से और अपनी संस्कृति से भी दूर होते जाते हैं।
रास्ते का यह विचार भाव रांची पहुंचते-पहुंचते सघन हो चुका था
 और स्टेशन से उतर कर महानागर की भीड़ के बीच मार्ग की
 सुखद अनुभूतियाँ धुंधली हो चुकीं थीं।






फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए

आखरी सलाम

विभा रानी श्रीवास्तव 




3 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    यात्रा विशेषांक जम के पसंद आया
    कमोबेसी सब के साथ
    यही कुछ तो होता है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. यात्रा वृतांत की लिंक प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी .. धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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