सादर अभिवादन
अभी-अभी भाई कुलदीप जी ने फोन पर सूचना दी
वे यक-बयक शहर से बार जा रहे हैं
एक तरफ सूर्यास्त की लालिमा के साथ हरे-काले से लाल रंग में परिवर्तित होता समुद्र अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था वहीं दूसरी तरफ विवेकानन्द रॉक मेमोरियल में चमकता प्रकाश उसकी गरिमा को और बढ़ा रहा था. हम लोग तो नहीं थके थे मगर लगने लगा था कि समुद्रतट से रॉक मेमोरियल की, समुद्र की, लहरों की, लहरों के साथ उछलती-कूदती डोंगियों-नौकाओं की फोटो खींचते-खींचते कैमरा थक गया था. लो बैटरी के सिग्नल के द्वारा उसने खुद को कभी भी पूरी तरह से बंद हो जाने का संकेत कर दिया था.
*व्यक्तिगत रूप से चाहे आप जितने बड़े खिलाड़ी हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते अगर लगातार जीतना है तो आपको संघठन में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी परिस्थिति हो, उसके हिसाब से संगठन की ताकत का उपयोग करना होगा*
पर कुछ पल ही रह पाया
सभी यत्न असफल रहे
जीवन पुनः देने के
यह भाग्य न था
तो और क्या था
शहादत देने वालों में
एक नाम और जुड़ गया |
कौन कहता है फ़ासले दूरी से होते हैं
फ़ासले वहीं होते हैं जहाँ दूरी नहीं होती
दुनियादारी के फैसले तो ज़ेहन से होते हैं
इनमें दिल की रजामंदी ज़रूरी नहीं होती
चंदा ने आज लजाते हुए
सुनाई मुझे
अपनी चाँदनी से हुई मुलाकात........
पुर्णिमा कि हर रात
चंदा और चाँदनी की
इन सांप सीढ़ियों के खेल का कोई यक़ीन नहीं,
कब, किसे और कहाँ, नाज़ुक ताश के मकान मिले।
बेशक़, तुम मुमताज महल से ज़रा भी कम नहीं,
ये ज़रूरी नहीं कि तुम्हें असल कोई शाहजहान मिले।
पाँच लिंकों का आनन्द में
आज उल्लूक टाईम्स की एक भी कतरन न हो
ऐसा न कभी हुआ है...और न होगा
एक साल पहले कुछ न कुछ तो जरूर हुआ होगा
दी जाती है हमेशा
हरी मिर्च खाने को
माना कि उल्लू को
कोई नहीं देता है
तू भी कभी कभी
कुछ ना कुछ इस
तरह का खुद ही
खरीद कर क्यों
नहीं ले लेता है
मिर्ची खा कर
सू सू कर लेना
ही सबसे अच्छा
और सच में बहुत
अच्छा होता है।
आज्ञा दें...
फिर मिलते हैं अगर मौका मिला
सादर
हा हा बहुत सुन्दर चार सौ बीसवीं प्रस्तुति में चार सौ बीस 'उलूक' उसके गुनाहों को बखान करती एक साल पुरानी बकवास को शीर्षक पर देख कर उसी तरह खुश हुआ जैसे मौगैम्बो हुआ करता है । आभार दिग्विजय जी इस सम्मान के लिये ।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर अपर्णा त्रिपाठी की हिंदी पर कही गई पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं. उलूक तो हमेशा की तरह नटखट है पर यह अपना राग कुछ ज़्यादा ही अलापता है. इसको तोते की तरह मिर्ची खिलाई जाए तो शायद यह रट्टू तोता बनकर वही बोलेगा जो हम इसे सिखाएंगे.
हटाएंजी आदरणीय Gopesh जी। कुछ तो सिखाइये। अभी तो पढ़ना शुरु ही किया है। ज्ञानियों का दिया ज्ञान ता उम्र चाहिये होता है। स्वागत है आपकी मिर्ची का ।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी
बढ़िया संयोजन लिंक्स का |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |