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सोमवार, 12 सितंबर 2016

423..‘उलूक’ का बुदबुदाना समझे तो बस बुखार में किसी का बड़बड़ाना है

सादर अभिवादन
भगवान गणेश का अंतिम सत्र
पितृ-पक्ष..दशहरा..दीपावली
देखते ही देखते लगभग
.......पूरा निगल गया
साल सत्रहवें ने.........
साल सोलहवें को

देर नहीं लगती.....हम भी बढ़ चलें आगे

आज पहली बार तिरछी नजर.. 
अगर तालीम से, पीछा छुड़ा पाओ, तो उल्फ़त हो,
गुनहगारों में, अपना नाम कर पाओ, तो उल्फ़त हो.

अगर अन्त्याक्षरी में, मात दे पाओ, तो उल्फ़त हो,
पहनकर शेरवानी, शेर कह पाओ, तो उल्फ़त हो.

आज पहली बार साहित्य शिल्पी... 
बदली छायी...डॉ. महेन्द्र भटनागर
सहधर्मी / सहकर्मी
खोज निकाले हैं
दूर-दूर से
आस-पास से
और जुड़ गया है
अंग-अंग
सहज
किंतु / रहस्यपूर्ण ढंग से


जियो तो ऐसे जियो.........साधना वैद
चाँदी से बाल
झुर्रीदार चेहरा
मीठे ख़याल
गुदगुदाती हँसी
बचपन कमाल !


मैं सेकेण्ड की सूई की तरह 
तेज़-तेज़ घूमता रहता हूँ,
पर हर बार ख़ुद को वहीँ पाता हूँ,
जहाँ मंथर गति से घूमनेवाली 
मिनट और घंटे की सूइयां होती हैं.


दुनिया देखी लाेग देखे।
राक्षस देखे फ़रिश्ते देखे।

रिश्ते देखे दोस्त देखे।
हर कही पर मिलावट देखी।



देशभक्तों ने किया खाली,खजाना देश में !
धनकुबेरों को बिका, शाही घराना देश में !

बेईमानों और मक्कारों की छबि अच्छी रहे,
जाहिलों पर मीडिया का,मुस्कराना देश में !


एक साल पहले की रचना
जो अधिक नहीं पढ़ी गई

छोटी सी बात 
घुमा फिरा कर 
टेढ़े मेढ़े पन्ने पर 
कलम को भटकाना है 
हिंदी का दिन है 
हिंदी की बात को 
हिंदी की भाषा में 
हिंदी के ही कान में 
बस फुसफुसाना है 
आशा है आशावाद है .
........................
इज़ाज़त दें यशोदा को
फिर मिलते हैं


10 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की हलचल में बहुत सुन्दर सूत्र समायोजित किये हैं यशोदा जी ! मरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    सादर प्रणाम
    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर प्र्स्तुति । आभार यशोदा जी 'उलूक' को सम्मान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उलूक हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े की प्रतीक्षा कर रहा है. कुछ नया कहने को कुछ बचा तो नहीं है, वही भारतेंदु का 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल' गा दिया जाएगा और कुछ विद्वान अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने की 'हिंदी हैं, हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा' दोहरा देंगे, वो भी बिना यह जाने हुए कि इक़बाल ने 'हिंदी' शब्द हमारी अपनी 'हिंदी भाषा' के सन्दर्भ में नहीं बल्कि 'हिन्द अर्थात हिंदुस्तान के बाशिंदों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया था.

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं

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