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गुरुवार, 29 सितंबर 2016

440...यही समय है आँखें खोलो

जय मां हाटेशवरी...

भारत का एक सैनिक...
पाकिस्तान को ललकारते हुए कहता है...
हम वो लोग नहीं है...
जो डर कर भाग जाते हैं...
हम तो वो लोग हैं...
मर कर भी आग में जल जाते हैं...
अब पेश है....
आज की चयनित कड़ियां...
पर सबसे पहले...

सुर, दानव, किन्नर, गन्धर्व, सबसे तट की शोभा बढ़ती
नागों, गन्धर्वों की पत्नियाँ, पावन जल में क्रीड़ा करतीं
देवों के भी क्रीड़ा स्थल हैं, देवपद्मिनी जानी जातीं
मानो करतीं उग्र अट्टाहस, टकराकर प्रस्तर खंडों से
दिव्य नदी का निर्मल हास, फेन प्रकट जो होता जल से
भंवर कहीं पड़ते हैं जल में, वेणी के आकार सा कहीं
निश्चल व गहरा कहीं पर, महा वेग से व्याप्त कहीं

एक फैसले से.........||
जो नमक खाकर नमकहरामी कर रहे हैं यहाँ
उन्हें बतानी है शैह औ मात,,मेरे इक फैसले से ||
दरकते दिलों में नफरत है अनजाना खौफ भरा
करना है उसका भी हिसाब ,,मेरे इसी फैसले से||
लहू में पानी मिलाऊ ,या प्यास का करूं हिसाब
बहीखाता भी करना है बराबर मेरे हर फैसले से ||

यही समय है आँखें खोलो (गीत)
मेरे पीछे तुम भेजोगे गुलदस्तों में फूल सजाकर
उनकी महक व्यर्थ जाएगी, छू न सकूंगा हाथ बढ़ाकर
बेहतर है तुम अभी यहीं पर फूलों वाली खुशबू घोलो
यही समय है आँखें खोलो
'
मुंगिया के सपने
अच्छा,तो स्कूल जाने का मन नहीं करता,मैंने पूछा.मन करता है न स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल जाने का. लेकिन माई जाने नहीं देती, कहती है, काम नहीं करेगी तो घर का
खर्च कैसे चलेगा.बाप अपाहिज है और दिनभर खाट पर पड़ा रहता है,मां कुछ घरों में चौका बर्तन कर घर का खर्च चलाती है.फिर पढ़ाई में खर्चा भी होता है.लेकिन सरकारी
स्कूल में तो फ़ीस नहीं लगता,इस पर वह चुप हो गई.स्कूल के सपने उसकी आँखों में तैरने लगे थे.जिन हाथों में किताबें होनी थीं उन हाथों में असमय ही घर चलाने की
जिम्मेदारी डाल दी गयी थी.

भारतीय रक्त ब्रिटेन के राजवंश तक -
यह रक्त शाही परिवार में शामिल हुआ. अब यह  ब्रिटेन के संभावित राजा की रगों में दौड़ रहा है.
¨प्रिंस विलियम के शरीर में भारतीयों में पाये जाने वाले खास तरह के माइटोकांड्रियल डीएनए है। इस डीएनए की खास बात यह है कि यह किसी भी बच्चे को अपनी मां से
मिलता है। यह पिता से बच्चे तक नहीं जाता। इसी वजह से यह डीएनए ¨प्रिंस विलियम और ¨प्रिंस हैरी तक ही रहेगा.
कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-29
तुम्हारे ही ख्वाब मेरी आँखों में बसते है...तुम्हारी ही बाते मेरे होंठो पर हँसती है..
जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है.....
मुझे और भी यकीन हो जाता है...
कि तुमने मुझे याद किया है.....
आज के लिये बस इतना ही...

मेहरबां सरस्वती मे'आर रखती क़ाइमो - दाइम
ग़ज़ल की ही मसीहाई पज़ीराई में कहता हूँ
नहीं राजेन्द्र चिल्लाता, ख़ुशगुलूई मेरा लहजा
बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीची में कहता हूँ

धन्यवाद।













8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    काफी अच्छी रचनाओं का चयन किया है आज
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर गुरुवारीय प्रस्तुति कुलदीप जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात, सुंदर सूत्रों से सजी हलचल..आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी लिंक्स रहीं -धन्यवाद कुलदीप जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं

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