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बुधवार, 7 सितंबर 2016

418..अर्जुन को नहीं छाँट कर आये इस बार गुरु द्रोणाचार्य सुनो तो जरा सा फर्जी ‘उलूक’ की एक और फर्जी बात

शुभ प्रभात
सादर अभिवादन...
इस बार 
शिक्षक-दिवस और श्री गणेश चतुर्थी दोनों एक साथ आए
शिक्षक भी गुरु और श्री गणेश भी प्रथमपूज्य
सुना है कुछ वर्षों से शिक्षक, शिक्षक न रहकर शिक्षा-कर्मी बन गया है
कारण ज्ञात है..पर सरकार की आलोचना
उचित नहीं है

काल पुरातन से आज तक 
कोई भ्रमित न इससे हुआ 
जैसे पहले महत्त्व  था इसका
आज भी वह कम न हुआ 


उग रहे बारूद खन्जर इन दिनों
हो गए हैं खेत बन्जर इन दिनों

चौकसी करती हैं मेरी कश्तियाँ
हद में रहता है समुन्दर इन दिनों


तेरे घर का आईना तुम्हारा न होगा
भले तोड़ दोगे , बेचारा न होगा -
पलकों को आँसू भिगो कर चले  हैं
कभी लौट आना दुबारा न होगा -


महबूब के कदमों में है
जन्‍नत 
पुरानी कहानी कहती है
यादों के सूत पि‍रो हरदम
न जा, रूक जा


फेसबुक-डिबेट और फेसबुकिया सपने....प्रतीक्षा रंजन
पिनाकी ने क्रोध में हुंकार भर ली। कुछ मन्तर पढ़ने लगे
घोर गर्जन। आसमान का रंग खालिस लाल हो गया।बादल फट पड़ा, और पिनाकी के हाथ कलयुग का ब्रम्हास्त्र आ गया - ब्लॉकास्त्र ।



आश्चर्य है..इन दिनों
महीने में पन्द्रह दिन छपने वाला अखबार
लगातार छप रहा है... लगता है सरकारी कागज का
कोटा धोखे से दो बार मिल गया है
बहरहाल देखिए आज का शीर्षक क्या कह रहा है


एकलव्य 
मान गये 
तुझे भी 
निभाया 
तूने इतने 
गुरुओं को 
अँगूठा काटे 
बिना अपना 
किस तरह 
एक साथ । 
......
सादर
........
आज के रचनाकार

आशा सक्सेना, दिगम्बर नासवा, उदयबीर सिंह, 
रश्मि शर्मा, प्रतीक्षा रंजन, डॉ. सुशील कुमार जोशी


4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'अर्जुन को नहीं छाँट कर आये इस बार गुरु द्रोणाचार्य' को शीर्षक और स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्‍यवाद यशोदा जी, बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति‍

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर लिंक हैं आज के ...
    आभार मुझे भी शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं

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