जय मां हाटेशवरी.....
ये जिन्दगी की पहली ऐसी दौड़ होगी...जिसमे रुकने वाला ही जीतेगा ....!!
Stay Home...
Save Yourself...
Save Others.......
अब पेश है....मेरी पसंद....
सुप्रभात
इंडिया लॉक डाउन डायरी ~ Day 3
समझ गया है इंसान भी
आंतरिक भक्ति का ज्ञान
मान कर घर को ही मंदिर
पढ़ रहा खुद देवी पाठ
माँग रहा जीवन की रोशनी
जला कर अखण्ड दीप
तो जिन के घर कोई जा नहीं सकता , वह कह रहे हैं कि अपने दरवाज़े पर फ्री फ़ूड लिख दें
जब जत्थे के जत्थे लोग सडकों पर पैदल जाते दिखने लगे , इस के पहले ही दिल्ली की सरकार को ऐलान कर देना था कि किसी को कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। जो भी कहीं
जाएगा , उस के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। और कि हर किसी के रहने , भोजन की ज़िम्मेदारी सरकार ही की होगी। भारत की बेलगाम पढ़ और अनपढ़ जनता कोई बात
कड़ाई और लाठी से जल्दी समझती है। तो यह कोरोना की चेन , देश भर में फैलती चेन , गांव-गांव फैलती चेन आसानी से रोकी जा सकती थी। यही काम सभी प्रदेश सरकारों को
सख्ती से करना चाहिए था। पर अफ़सोस कि अब बहुत देर हो चुकी है। जनता-जनार्दन जगह-जगह फ़ैल चुकी है। गरीब मज़दूरों के इस निरंतर प्रस्थान का जाने क्या नतीजा मिलेगा
, मैं नहीं जानता। पर खतरा तो सौ गुना बढ़ ही गया है। गांव-गांव इन पहुंचने वालों का विरोध भी शुरू हो चुका है। कहीं यह विरोध लोगों की मार-पीट में न बदल जाए।
नावेल कोरोना वायरस २०१९ और कोविड २०१ ९ :कुछ भी गोपनीय नहीं हैं यहां
जी हाँ !यही कहना है जॉन हॉप्किंज़ यूनिवर्सिटी के साइंसदानों का।जीवित जैविक इकाई नहीं है यह वायरस मात्र एक प्रोटीन है यह कोविड -२०१९ रोगकारक।कहो तो-महज़ एक डीएनए मॉलिक्यूल जो एक लिपिड(फ़ैट )से आच्छादित है यही इस प्रोटीन का सुरक्षा कवच है।
जब इस अणु को हमारे नेत्र ,नासिका या मुखीय म्यूकोसा (बलगम सेक्रेटिंग झिल्ली )की सेल्स (कोशिकाएं या कोशाएं )अवशोषित कर लेती हैं तब इनका आनुवंशिक कूट संकेत
कूट भाषा कूट लिपि कहो तो जेनेटिक कोड म्यूटेट (उत्परिवर्तित ) हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है ,ये तमाम कोशिकाएं बेहद की आक्रामक होकर मल्टीप्लायर सेल्स बन जाती है।
क्योकि यह वायरस एक लिविंग ऑर्गेनिज़्म ,अति सूक्ष्म जीव अवयव (जैविक जीव आवयविक संगठन )ना होकर एक प्रोटीन है इसलिए इसका क्षय समय के साथ अपने आप ही होता है। अलबत्ता इसका टूटकर क्षय होना होते रहना तापमान और हवा में नमी पर निर्भर करता है।जलवायु पर भी।
गम को आस-पास मत रखिये ...
हर जीव शरीक है आपकी गर्दिशी में
आप अकेले हैं अहसास मत रखिये -
दस्तक है अनजान छुपे दुश्मन की ,
छोटी जमीन छोटा आकाश मत रखिये -
कोरोना - ये भी, इक दौर है
विचलित है मन, ना कहीं ठौर है!
बढ़ने लगे है, उच्छवास,
करोड़ों मन, उदास,
और एक, गर्जना,
कोरोना (COVID-19) ने सिखाया हमें अहम सबक!!
• देश के 75 प्रतिशत मरीज प्राइवेट अस्पतालों पर ही निर्भर हैं और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने में इतना पैसा लगता हैं कि आम जनता की कमर ही टूट जाती
हैं।
• फिलहाल भारत में सिर्फ़ 9 एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) जैसे बड़े अस्पताल हैं।
• इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार देश में 1.3 अरब लोगों की आबादी के इलाज के लिए महज 10 लाख एलौपैथिक डॉक्टर हैं!
ये सब आंकडे बताने का उद्देश सिर्फ़ एक ही हैं कि देश की जनता का बहुत सारा पैसा मंदिरों और मस्जिदों पर व्यय होता हैं! और दूसरी तरफ़ हमें जो मुलभुत सुविधा मतलब
अच्छे अस्पताल और अच्छे डॉक्टर चाहिए वो ही बहुत कम हैं। अस्पतालों की कमी होने की वजह से ही फिलहाल अस्पतालों में सामान्य मरीज को देखा ही नहीं जा रहा हैं
केरल का स्वर्ग, मुन्नार
मुन्नार, जिसका अर्थ होता है तीन नदियों का संगम, केरल के इडुक्की जिले में स्थित है।हिमाचल के शिमला की तरह यह भी अंग्रेजों का ग्रीष्म कालीन रेजॉर्ट हुआ करता था। इसकी हरी-भरी वादियां, विस्तृत भू-भाग में फैले चाय के ढलवां बागान, सुहावना मौसम इसे स्वर्ग जैसा रूप प्रदान करते हैं।
हिन्दी ब्लॉगरों के लिए सुनहरा अवसर
सर्वप्रथम ब्लॉगर प्रतिभाग करने के लिए ब्लॉगर
https://www.iblogger.prachidigital.in/blogger-of-the-year/
पर जाकर सभी नियम एवं शर्तों का अवलोकन करें। उसके बाद ब्लॉगर ऑफ द ईयर के लिए iBlogger ब्लॉग पर आवेदन करें। उसके बाद ब्लॉगर को एक पोस्ट iBlogger पर प्रकाशित
करनी होगी, जिसमें प्रतिभागी को अपनी ब्लॉग यात्रा व अपने ब्लॉग से संबधित जानकारी देनी होगी।
लॉक आउट - देश कोई एमसीबी नहीं कि जब चाहे ऑन ऑफ किया जा सके. / विजय शंकर सिंह
एक ट्वीट पर राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन में दूध उपलब्ध करा कर अपनी पीठ थपथपाना और एक ट्वीट पर विदेशों में फंसे किसी को बुला लेना एक प्रशंसनीय कदम ज़रूर है पर अचानक लॉक डाउन करने के पहले, और वह भी महीने के अंत मे जब अधिकतर लोगों जेब खाली रहती है, उन कामगारों के लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था न करना और उन्हें उन्ही के हाल पर छोड़ देना, यह न केवल निंदनीय कदम है बल्कि क्रूर और घोर लापरवाही भी है। चुनाव के दौरान तैयारियां की जाती हैं। कुम्भ मेले के दौरान तैयारियां की जाती हैं। और वे शानदार तरह से निपटते भी हैं। सरकार की प्रशंसा भी होती है। ऐसा भी नहीं कि प्रशासन सक्षम नहीं है, लेकिन सरकार चाहती क्या है उसे वह स्पष्ट बताये तो ? लॉक डाउन निश्चित ही एक ज़रूरी कदम है पर, लोगो को कम से कम असुविधा हो यह भी कम ज़रुर्री नहीं है।
धन्यवाद।