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मंगलवार, 31 मार्च 2020

1718 ..कभी-कभी नहीं मिलते शब्द लिखने के लिए

सादर अभिवादन..
कभी-कभी नहीं मिलते शब्द
लिखने के लिए
अब उसे भी 
क्या समझना 
जिसे एक बेवकूफ 
तक समझता है

अब रचनाएँ....

मैं वो औरत हूँ
जिसने की है
एक मर्द से दोस्ती
जिसमें पाया है मैंने
अच्छा पक्का दोस्त
जिसे मैं अपने दिल की
हर बात साझा कर
सकती हूँ


तुमसे मिलते ही
मैंने पहला शब्द ब्रह्मांड बोला था
और तुमने असुर
तुम अविश्वास के अनुच्छेद में टहलते रहे
और मैं विश्वास की सूची में
तुमने पलाशों का झड़ना देखा
और मैंने गुलमोहर का खिलना


मैं जनता हूँ जो तुम्हारे दिल में,मेरी सांसो में हैं,
मुझे अब और दुनियादारी का सबक सिखाओ नही,

उसने बादलों की ओट में एक सूरज छुपा के रखा हैं,
इत्मीनान रखो इतनी जल्दी घबराओ नही,


दीवारों के आज अश्रु को 
शुष्क धरा ने बहते देखा। 
चीख दरारों से भी निकली। 
पीर मौन की लांघे रेखा।। 


चमगादड़ की तरह,
उलटा लटका हुआ है,
आज का इन्सान,
मात्र रोटी के टुकड़े के लिए,
दर-दर की ठोकरें झेलता है,
मात्र दो जून रोटी के लिए,


वही और वही
बस बताना और
समझाना होता है
“उलूक” दूर रखना
होता है तेरे जैसे
समझने समझाने
वालों को हमेशा
जब भी कोई
पंडाल कोई मजमा
तेरे अपने ही
घर पर लगता है
समझ में आ गया
...
विषय
क्रमांक 114
पलाश
उदाहरण

सुनो, तुम आज मेरा आंगन बन जाओ,
और मेरा सपना बनकर बिखर जाओ।
मैं...मैं मन के पलाश-सी खिल जाऊं, 
अनुरक्त पंखुरी-सी झर-झर जाऊं।

सुनो, फिर एक सुरमई भीगी-भीगी शाम, 
ओढ़कर चुनर चांदनी के नाम ।
मैं....तुम्हारी आंखों के दो मोती चुराऊं

और उसमें अपना चेहरा दर्ज कराऊं।
रचनाकार निशा माथुर


अंतिम तिथिः 04 अप्रैल 2020
प्रकाशन तिथिः 06 अप्रैल 2020
ब्लॉग संपर्क फार्म द्वारा
सादर



सोमवार, 30 मार्च 2020

1717....हम-क़दम का एक सौ तेरहवाँ अंक.. काजल

सोमवारीय विशेषांक 
--------
वैश्विक महामारी,मानो जीवन-मृत्यु के मध्य की
काली लकीर मिटाने, जिद पर उतर आयी है।
देख रहे हो न मानुष प्रकृति मरम्मती के लिए
काल पर सवार हो यम के रुप में घर आयी है,
माँ धरणी के कोख के मृत बीजों के शाप से
सृष्टि सामूहिक संहार का ये कैसा वर लायी है?


काजल पर आज की पंक्तियाँ
प्रिय कामिनी जी की रचना से 
उद्धत है-

काजल " गोरी के आँखों को सजाये  तो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता हैं.... नन्हे शिशु के नैनो में  जब माँ काजल भर के उसकी बलाएँ लेती हैं तो ....वही काजल उस शिशु के लिए नजरबटु बन शिशु की हर बुरी नजरों से रक्षा करता हैं लेकिन ......वही काजल जब दामन पर लग जाएँ तो दाग बन जाता हैं।
   हमारे भारतीय संस्कृति के  श्रृंगार में काजल का एक खास स्थान हैं। यदि आँखें काजल बिना सुनी हो तो श्रृंगार अधूरा ही रहता हैं। काजल ने  गोरी के आँखों में ही अपनी  खास जगह नहीं बनाई बल्कि कवियों की कविताएं हो या गीतकारों के गीत या शायरों की शायरी काजल ने सबके दिलों और कलम पर भी अपना हक जमा रखा हैं


★★★

कालजयी रचनाएँ इस बार हम हमारे प्रिय ब्लॉगर 
रचनाकारों के ब्लॉग से लेकर आये है।
आखिर इनकी रचनाएँ भी तो अनमोल
साहित्यिक धरोहर है।



आदरणीया प्रीति अज्ञात जी
इन दिनों

जो सुबह के रेशमी तकिये पर 
रोशनी का स्नेहिल स्पर्श पाकर 
ढुलक जाती है अनायास
स्वप्न..है दमित इच्छाओं की आतिशबाज़ी
उम्मीद...अलादीन का खोया चिराग़



आदरणीय दिगंबर नासवा जी
सफ़र जो आसान नहीं

चुभने के कितने समय बाद तक
वक़्त का महीन तिनका 
घूमता रहता है दर्द का तूफानी दरिया बन कर
पाँव में चुभा छोटा सा लम्हा
शरीर छलनी होने पे ही निकल पाता है।


आदरणीय ज्योति खरे सर
वक्ष में फोड़ा हुआ है

जानते हैं इस बात को
वक्ष में फोड़ा हुआ
तरस इनकी देखिये
वह अंग छोड़ा हुआ


रोटी नुमा चाँद भी
अब दे रहा है गाली--

★★★★★

नियमित रचनाएँ
आदरणीय साधना वैद जी
काजल की कोठरी

भ्रष्टाचार का क्षेत्र और विस्तार इतना व्यापक और संक्रामक है कि कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि ऐसे तथ्य सामने आयें कि भारत की आबादी का एक बहुत बड़ा प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त है ! भारत के संविधान के अनुसार रिश्वत लेना और देना दोनों ही दंडनीय अपराध हैं ! इस तरह रिश्वत माँगने वाला भी अपराधी है और रिश्वत देने वाला भी अपराधी है !



आदरणीय आशा सक्सेना जी
कोठरी काजल की

दूरदर्शन पर भी बहस ऐसे दीखती है
मानो शेर अभी  झपटेगा  शिकार पर
दूसरा मैमने सा गिडगिडा रहा हो
बच्चे तक कहने लगते हैं
क्या इन में तमीज नहीं
इनकी मम्मीं ने क्या
कुछ नहीं सिखाया इनको
सियासत का गलियारा
काई से भरा हुआ है
जितना भी सम्हल कर चलो
पैर फिसल ही जाते हैं
गिरने पर सहारा दे कर
उठाने वाला कोई नहीं होता
सियासत है कोठारी काजल की
कोई न बचा इससे
जो भी भीतर  गया
बच  न पाया  कालिख  से




★★★★★★

आदरणीय आशा सक्सेना
जब भी कोरा कागज़ देखा ...

जब भी कोरा कागज़ देखा
पत्र तुम्हें लिखना चाहा
लिखने के लिए स्याही न चुनी
आँसुओं में घुले काजल को चुना
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा

★★★★★

आरणीय राधा तिवारी जी
कुण्डलिया " काजल " 
Image result for आँख का काजल फोटो
काजल आँखों पर लगा, नैन रही मटकाय।
देख सजन को सामने, गोरी भी इठलाय।।
गोरी भी इठलाय, झुका वो नैना बोले।
मुस्काती वो आय, सजन सम्मुख वो डोले।
कह राधे गोपाल, सजन को देखे हरपल।
नैन रही मटकाय, लगाकर वो तो काजल।।

★★★★★

आदरणीय कामिनी सिन्हा जी
काजल से अथाह प्रेम

" काजल " 
गोरी के आँखों को सजाये  तो 
उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता हैं.... 
नन्हे शिशु के नैनो में  
जब माँ काजल भर के 
उसकी बलाएँ लेती हैं तो ....
वही काजल उस शिशु के लिए 
नजरबटु बन शिशु की 
हर बुरी नजरों से रक्षा करता हैं 
लेकिन ......
वही काजल जब दामन पर लग जाएँ 
तो दाग बन जाता हैं।




★★★★★

आदरणीय शुभा मेहता
काजल
सखी री.....
मेरा काजल बह-बह जाए 
कब से बैठी आस लगाए 
बैरी पिया ना आए ....
सखी री ......
ना चिठिया ना कोई संदेसा 
इतना काहे... तरसाए ---

★★★★★★

आदरणीय पुरुषोत्तम कु. सिन्हा जी
नैन किनारे

बगैर आग, ये धुआँ कब उभरे!
चराग बिन, कब काजल ये सँवरे!
कोई आग, जली तो होगी!
हृदय ने ताप, सही तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ बहते हैं जल-धार, नैन किनारे!

★★★★★★

आदरणीय अमित  श्रीवास्तव जी
लॉक डाऊन
लॉक डाउन होंठों पे क्यों,
लबों पे हँसी आने दो,
लफ़्ज़ों को आपस मे,
 घुल जाने दो।

लॉक डाउन निगाहों में क्यों,
नज़रों में शोखी आने दो,
नज़र से नज़र मिलाने दो,
काजल को बादल में घुल जाने दो।

★★★★★

आदरणीय उर्मिला सिंह
हम होंगे कामयाब एक दिन

देश गुलजार होगा, 
हंसेगा नयन काजल, 
बजेगी पांव की पायल..... 
'माता की स्नेह वर्षा,
तन मन आल्हादित कर जाएगा ! 

हिम्मत  देंगी  हमें  "माँ दुर्गा" , 
आस्था विश्वास राहें दिखाएंगी... 
इस विषम घड़ी से भी हम , 
एक दिन निकल जाएंगे!! 

आदरणीय सुजाता प्रिय
काजल

अखियों में काजल भर,
मुझको जादू न कर ,बृजबाला !
तेरा काजल है मतवाला।

काले-मेघों से काजल चुराकर।
तूने अखियों में रख ली बसाकर।
अब मुझे न चुरा,
मुझको दिल में बसा,सुरबाला!
मै हूँ मोहन बाँसुरीवाला।





आज का अंक कैसा लगा
आप ही बताएँगे
कल का अंक आ रहा है
नया विषय लेकर
-श्वेता

रविवार, 29 मार्च 2020

1717....*ये जिन्दगी की पहली ऐसी दौड़ होगी...जिसमे रुकने वाला ही जीतेगा ....!!*


जय मां हाटेशवरी.....
ये जिन्दगी की पहली ऐसी दौड़ होगी...जिसमे रुकने वाला ही जीतेगा ....!!

Stay Home...
Save Yourself...
Save Others.......
अब पेश है....मेरी पसंद....

सुप्रभात


इंडिया लॉक डाउन डायरी ~ Day 3
समझ गया है इंसान भी
आंतरिक भक्ति का ज्ञान
मान कर घर को ही मंदिर
पढ़ रहा खुद देवी पाठ
माँग रहा जीवन की रोशनी
जला कर अखण्ड दीप



 तो जिन के घर कोई जा नहीं सकता , वह कह रहे हैं कि अपने दरवाज़े पर फ्री फ़ूड लिख दें
जब जत्थे के जत्थे लोग सडकों पर पैदल जाते दिखने लगे , इस के पहले ही  दिल्ली की सरकार को ऐलान कर देना था कि किसी को कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। जो भी कहीं
जाएगा , उस के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।  और कि हर किसी के रहने , भोजन की ज़िम्मेदारी सरकार ही की होगी। भारत की बेलगाम पढ़ और अनपढ़ जनता कोई बात
कड़ाई और लाठी से जल्दी समझती है। तो यह कोरोना की चेन , देश भर में फैलती चेन , गांव-गांव फैलती चेन आसानी से रोकी जा सकती थी। यही काम सभी प्रदेश सरकारों को
सख्ती से करना चाहिए था। पर अफ़सोस कि अब बहुत देर हो चुकी है। जनता-जनार्दन जगह-जगह फ़ैल चुकी है। गरीब मज़दूरों के इस निरंतर प्रस्थान का जाने क्या नतीजा मिलेगा
, मैं नहीं जानता। पर खतरा तो सौ गुना बढ़ ही गया है। गांव-गांव इन पहुंचने वालों का विरोध भी शुरू हो चुका है। कहीं यह विरोध लोगों की मार-पीट में न बदल जाए।

नावेल कोरोना वायरस २०१९ और कोविड २०१ ९ :कुछ भी गोपनीय नहीं हैं यहां
Cell Cycle - How Cells Multiply! - YouTube
जी हाँ !यही कहना है जॉन हॉप्किंज़ यूनिवर्सिटी के साइंसदानों का।जीवित जैविक इकाई नहीं है यह वायरस मात्र एक प्रोटीन है यह कोविड -२०१९ रोगकारक।कहो तो-महज़ एक डीएनए मॉलिक्यूल जो एक लिपिड(फ़ैट )से आच्छादित है यही इस प्रोटीन का सुरक्षा कवच है।
जब इस अणु को हमारे नेत्र ,नासिका  या मुखीय म्यूकोसा (बलगम सेक्रेटिंग झिल्ली )की सेल्स (कोशिकाएं या कोशाएं )अवशोषित कर लेती हैं तब इनका आनुवंशिक कूट संकेत
कूट भाषा कूट  लिपि कहो तो जेनेटिक कोड म्यूटेट (उत्परिवर्तित ) हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है ,ये तमाम कोशिकाएं बेहद की आक्रामक होकर मल्टीप्लायर सेल्स बन जाती है।
क्योकि यह वायरस एक लिविंग ऑर्गेनिज़्म ,अति सूक्ष्म जीव अवयव (जैविक  जीव आवयविक संगठन )ना होकर एक प्रोटीन है इसलिए इसका क्षय समय के साथ अपने आप ही होता है। अलबत्ता इसका टूटकर क्षय होना होते रहना तापमान और हवा में नमी पर निर्भर करता है।जलवायु पर भी।



गम को आस-पास मत रखिये ...
हर जीव शरीक है आपकी गर्दिशी में
आप अकेले हैं अहसास मत रखिये -
दस्तक है अनजान छुपे दुश्मन की ,
छोटी जमीन छोटा आकाश मत रखिये -



कोरोना - ये भी, इक दौर है
विचलित है मन, ना कहीं ठौर है!
बढ़ने लगे है, उच्छवास,
करोड़ों मन, उदास,
और एक, गर्जना,

कोरोना (COVID-19) ने सिखाया हमें अहम सबक!!
कोरोना (COVID-19) ने सिखाया हमें अहम सबक!!
• देश के 75 प्रतिशत मरीज प्राइवेट अस्पतालों पर ही निर्भर हैं और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने में इतना पैसा लगता हैं कि आम जनता की कमर ही टूट जाती
हैं।
• फिलहाल भारत में सिर्फ़ 9 एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) जैसे बड़े अस्पताल हैं।
• इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार देश में 1.3 अरब लोगों की आबादी के इलाज के लिए महज 10 लाख एलौपैथिक डॉक्टर हैं!
ये सब आंकडे बताने का उद्देश सिर्फ़ एक ही हैं कि देश की जनता का बहुत सारा पैसा मंदिरों और मस्जिदों पर व्यय होता हैं! और दूसरी तरफ़ हमें जो मुलभुत सुविधा मतलब
अच्छे अस्पताल और अच्छे डॉक्टर चाहिए वो ही बहुत कम हैं। अस्पतालों की कमी होने की वजह से ही फिलहाल अस्पतालों में सामान्य मरीज को देखा ही नहीं जा रहा हैं


केरल का स्वर्ग, मुन्नार
मुन्नार, जिसका अर्थ होता है तीन नदियों का संगम, केरल के इडुक्‍की जिले में स्थित है।हिमाचल के शिमला की तरह यह भी अंग्रेजों का ग्रीष्म कालीन रेजॉर्ट हुआ करता था। इसकी हरी-भरी वादियां, विस्तृत भू-भाग में फैले चाय के ढलवां बागान, सुहावना मौसम इसे स्वर्ग जैसा रूप प्रदान करते हैं।


हिन्दी ब्लॉगरों के लिए सुनहरा अवसर

सर्वप्रथम ब्लॉगर प्रतिभाग करने के लिए ब्लॉगर
https://www.iblogger.prachidigital.in/blogger-of-the-year/
पर जाकर सभी नियम एवं शर्तों का अवलोकन करें। उसके बाद ब्लॉगर ऑफ द ईयर के लिए iBlogger ब्लॉग पर आवेदन करें। उसके बाद ब्लॉगर को एक पोस्ट iBlogger पर प्रकाशित
करनी होगी, जिसमें  प्रतिभागी को अपनी ब्लॉग यात्रा व अपने ब्लॉग से संबधित जानकारी देनी होगी।




लॉक आउट - देश कोई एमसीबी नहीं कि जब चाहे ऑन ऑफ किया जा सके. / विजय शंकर सिंह
एक ट्वीट पर राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन में दूध उपलब्ध करा कर अपनी पीठ थपथपाना और एक ट्वीट पर विदेशों में फंसे किसी को बुला लेना एक प्रशंसनीय कदम ज़रूर है पर अचानक लॉक डाउन करने के पहले,  और वह भी महीने के अंत मे जब अधिकतर लोगों जेब खाली रहती है, उन  कामगारों के लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था न करना और उन्हें उन्ही के हाल पर छोड़ देना, यह न केवल निंदनीय कदम है बल्कि क्रूर और घोर लापरवाही भी है। चुनाव के दौरान तैयारियां की जाती हैं। कुम्भ मेले के दौरान तैयारियां की जाती हैं। और वे शानदार तरह से निपटते भी हैं। सरकार की प्रशंसा भी होती है। ऐसा भी नहीं कि प्रशासन सक्षम नहीं है, लेकिन सरकार चाहती क्या है उसे वह स्पष्ट बताये तो ? लॉक डाउन निश्चित ही एक ज़रूरी कदम है पर, लोगो को कम से कम असुविधा हो यह भी कम ज़रुर्री नहीं है।



धन्यवाद।

शनिवार, 28 मार्च 2020

1716... बुनकर


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
दिन में दो बार
गुड़ ,अदरक ,काला नमक/सेंधा नमक/सादा नमक ,हल्दी (ऐच्छिक बादाम ,छुहाड़ा) गर्म पानी में मिलाकर लेते रहने से स्वस्थ्य रहेंगे.. 
वैसे अभी वक़्त की मर्जी कि इंसान जैसे रहे.. गौर करें इंसान को इंसान से अलग-थलग कर प्रकृति सज रही बाकी सभी जीव-जंतु ,फूल-पत्ती संवर रहे हैं.. जैसे कशीदाकारी कर रहा हो...



मियाँ जब्बार हमें
समझाते जा रहे
काम की बारीकियाँ
ये जाने बगैर
कि तफ़़रीहन पूछा था हमने
कि कैसे बन जाती हैं
सुर्ख, चटख़, शोख़ रंगों वाली
जादूभरी नागपुरी साड़ियाँ

बुनकर



हिन्दुओं और पर्यटकों का केन्द्र अस्सी घाट पर कुदाल चला.
जयापुर गांव को गोद लिया गया तथा बुनकर व्यापार
सुविधा केन्द्र का प्रेमचन्द्र के गांव लमही से
कुछ ही दूरी पर बड़ा लालपुर में उदघाटन हुआ

बुनकर

Rajasthan History

ऐसा चमकीला परिधान क्यों बुनत हो ?
   "जंगली हेलसियन पक्षी के पंखों सा नीला,
    एक नवजात शिशु हेतु परिधान हम बुनते हैं।"
             "दिवसावसान पर संध्या में बुनते बुनकरों,
          ऐऐसा उल्लासमय वस्त्र क्यों बुनते हो ?"

बुनकर



जीवन की उथल पुथल भरी सरणियों में जो देखा सुना
और महसूस किया है उसे कविताओं में लगातार
कहने की कोशिश की है। हत्या रे उतर चुके हैं
क्षीरसागर में के बाद उन्होंने बेर-अबेर सतपुड़ा नामक
एक लंबी कविता लिखी है। यह उस नास्टैकल्जि्क गंध से
बुनी कविता है जिससे गुजरते हुए उनका बचपन बीता है।

बुनकर

वस्त्र उद्योग से जुड़ कर बुनकर समाज ...

जिसमें धागे निकलते हैं मष्तिष्क की
जो गाँस बना जाती है
हमारे सभ्यता और संस्कृति में
वह बनाता है कपड़ों पर रंग
और रख देता है मोहनजोदड़ों की ईंट
हुसैन की कलाकारी सा भरता है रंग
जैसे आँखों से उतरता है खून
जो वोदका के रंग सा दिखता है खूबसूरत
><><
पुन: मिलेंगे
><><
113 वाँ विषय
"काजल"
भेजने की अंतिम तिथि आज : 28  मार्च 2020
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020



शुक्रवार, 27 मार्च 2020

1715....अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण

स्नेहिल अभिवादन
गौरी तृतीया, गणगौर उत्सव,
सौभाग्य सुंदरी पर्व 
चैत्र शुक्ल तृतीया, 27 मार्च 2020 के 
दिन मनाया जा रहा है।
‘गण’ का अर्थ है शिव और ‘गौर’ का अर्थ पार्वती है। 
इस दिन इस दिव्य युगल की 
महिलाओं द्वारा पूजा की जाती है। 
इस दिन को सौभाग्य तीज 
के नाम से भी जाना जाता है।

अब आज की रचनाएँ देखें ....

संसार के सबसे सुंदर पक्षियों में से एक
नक़ल के हुनर में पारांगत लायर बर्ड के नर की सोलह हिस्सों वाली बेहद लंबी और बहुत ही  खूबसूरत पूंछ होती है। जिसके फैलाए जाने पर उसका आकार वाद्ययंत्र वीणा की तरह का हो जाता है। इसके शरीर का रंग तकरीबन भूरा तथा गले का कुछ लालिमा लिए हुए होता है।स्वभाव से बहुत ही शर्मिला होने के कारण यह आसानी से दिखाई नहीं पड़ता ! इसकी आवाज से ही इसकी उपस्थिति का अंदाज लगाना पड़ता है।  मादा पक्षी भी आवाज की नकल करने में बहुत कुशल होती है पर महिलाओं के स्वभाव के विपरीत वह बहुत कम बोलती है...........!


खंडित बीणा स्वर टूटा
राग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया ।
मूक हो गया मन सागर
शब्द लुप्त है सारे।
क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे।।


दीनबंधु जाने को होता है, 
तो मुन्ना के बहाने से वह झोला वहीं छोड़ जाता है, 
ताकि रामू काका के आत्मसम्मान को ठेंस न पहुँचे।
झोले में वह सबकुछ होता है। जिसकी सख़्त ज़रूरत 
रामभरोसे के परिवार को इस समय थी।


अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
ना क्षण में भंगुर, ना क्षण में विहंगम
कदम धीरे-धीरे चले लक्ष्य के पथ
सहम कर ठिठक कर थोडा-सा रुक कर 
सभी के नज़रिए पर खुद को खड़ा कर
भींगे नयन और होठों पे मुस्कान
दिल में लिए दर्द के दासता को




कल रात 10:45 पर सोने जा रहा था। उत्तमार्ध शोभा सो चुकी थी। मैं शयन कक्ष में गया, बत्ती जलाई। पानी पिया और जैसे ही बत्ती बन्द की, कमबख्त   पंखा भी बन्द हो गया। गर्मी से अर्धनिद्रित उत्तमार्ध को बोला -पंखा बन्द हो गया है। मुझे जवाब मिला - मैने पहले ही कहा था, बिजली मिस्त्री को बुलवा कर पंखे वगैरा चैक करवा लो।


मैं...............
.......नहीं हम 
.......नहीं सब 
बंद है घरों में 
अब जाना इस सच को 
जब तक बाहर से घर और घर से बाहर
आने जाने की ना हो सुविधा
घर भी घर नहीं रह जाता 
बन जाता है पिंजरा

आज बस इतना ही
हम-क़दम का नया विषय

कल मिलिए
आदरणीय विभा दीदी से
फिर मिलेंगे
सादर

गुरुवार, 26 मार्च 2020

1714...विश्वास और अंधविश्वास के बीच...


सादर अभिवादन।

               21 दिन की तालाबंदी (लॉक डाउन) का पहला दिन गुज़रने को है। लाचार एवं साधनहीन वर्ग की कुछ परेशानियाँ मीडिया के माध्यम से बाहर आ रहीं है जिन्हें सरकार अपनी क्षमता और कौशल के अनुसार नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। चीन,इटली,स्पेन,ईरान,अमेरिका के बाद अब भारत में कोरोना वायरस के विस्तार की संभावना और आशंका चिंताजनक है। सरकारी प्रयासों में हरेक नागरिक सहयोग करे और अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार पीड़ित मानवता की सेवा में योगदान करे तो यह भयावह महामारी भारत से भी गुज़र जाएगी। 
राहत की बात है अब भारत में कोरोना वायरस की जाँच किट समस्त तकनीकी एवं प्रशासनिक मानदंडों को पास करते हुए मरीज़ों की जाँच के लिये पिछले 6 हफ़्तों के अथक प्रयासों से तैयार कर ली गयी है जिसकी क़ीमत विदेश से आयातित किट से मात्र एक चौथाई है अर्थात यदि विदेशी किट की क़ीमत 100 रूपये है तो हमारी स्वदेशी किट 25 रूपये में उपलब्ध है। 
इस समय अंधविश्वास और पाखंड को पूरी तरह नकारा जाना चाहिए क्योंकि देश की धर्मभीरु जनता को ठगने और डराने का कुछ स्वार्थी तत्त्व भरसक प्रयास कर रहे हैं। 
गौ-मूत्र और गोबर को मैं ज़्यादा अच्छी तरह समझता हूँ इनकी सामाजिक उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता किंतु हर मर्ज़ की दवा के रूप में इन्हें प्रस्तुत करने वाले नोबेल पुरस्कार समिति को अपनी उपलब्धि बतायें और विश्व कल्याण के लिये इनकी उपयोगिता सिद्ध करें। मैंने इंसानी मल-मूत्र के अलावा पशुओं के मल-मूत्र को भी जाँचा है। इनमें बीमार इंसान या पशु के मल-मूत्र में अनेक जानलेवा बैक्टीरिया, वायरस, कृमि, पस, यूरिया, क्रिएटिनिन, प्रोटीन्स, यीस्ट आदि पाये जाते हैं। अब ज़रा सोचिए आपको किस गाय का मूत्र उपलब्ध कराया गया है सेवन के लिये। कितनी मात्रा में सेवन करना है कुछ नहीं पता। शायद पहली बार किसी अत्यंत प्यासे व्यक्ति ने जान बचाने के लिये गौमूत्र का सेवन किया हो और उसे कोई विशेष राहत मिली होगी तो सामने ऐसे उदाहरणों को देखकर लोग उन्हें अपनाने लगते हैं। मैं गौमूत्र पर 2017-2018 में अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से अध्ययन कर रहा था। उनका लिवर 85% ख़राब हो चुका था। पेट में पानी भर जाता था। हर महीने पेट का पानी (Ascetic Fluid) निकलवाते और एल्ब्यूमिन के इंजेक्शन लगते रहते। उन्होंने लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह को नकार दिया, दवाएँ लेना भी बंद कर दीं और एक छोटी बछिया का मूत्र एकत्र करते; दिन में दो बार ताज़ा गौमूत्र का सेवन करते। आश्चर्यजनक रूप से उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ। पेट में पानी भरना बंद हो गया और वे सामान्य जीवन जीने लगे। मुझे उत्सुकता हुई तो उनसे मिलने दिल्ली से इटावा पहुँचा तो उनके शरीर में हुए परिवर्तन देखकर मुझे गौमूत्र की चिकित्सीय उपयोगिता पर अध्ययन करने का ख़याल आया। उन्होंने ताज़ा एकत्र हुआ गौमूत्र और बाज़ार में मिलने वाले पैक गौमूत्र में अंतर भी बताया कि ताज़ा गौमूत्र बहुत तीखा होता है जबकि बाज़ार में मिलने वाला पानी की तरह। लगभग दो साल में केवल गौमूत्र के सेवन से वे सामान्य जीवन बिता रहे थे कि घर के बाहर हाई-वे पर खड़े थे वहाँ एक वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी और वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। बहुत अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे पूछा था कि आप कैसे गौमूत्र पी जाते हो तो उन्होंने कहा था- इंजेक्शन, पानी निकलवाना और दवाइयों से बेहतर इसी को हलक से उतार लेता हूँ।
मेरा यह प्रसंग अंधविश्वास को पुष्ट करने के लिये नहीं है बल्कि गौमूत्र पर एक व्यापक वैज्ञानिक शोध का आग्रह करता है ताकि स्पष्ट हो सके कि गौमूत्र में ऐसे कौन-कौन से तत्त्व हैं जो लिवर को स्वस्थ बना देते हैं। 
2010 में जर्मनी में जानलेवा डायरिया के मामले ज़्यादा बढ़े तो वहां वैज्ञानिकों ने पाया कि खीरा उगाने वाले किसान ताज़ा गोबर खेतों में डालते हैं जिससे उसमें उपस्थित ई.कोलाई बैक्टीरिया खीरों पर चिपका हुआ घर / होटल / रेस्त्रां तक पहुँच रहा था।
-रवीन्द्र सिंह यादव 
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
लोग स्वस्थ होने लगे
उनके बिना जो थे नासमझ
ख़तरनाक़, अर्थहीन, बेरहम
और समाज के लिए खतरा।
फिर ज़मीं के जख्म भी भरने लगे
और जब खतरा खत्म हुआ
लोगों ने एक दूसरे को ढूँढा
मिलकर मृत लोगों का शोक मनाया 







श्वास रहित है तन पिंजर
साथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।

बिना चाँद चातक तरसे





हवा शुद्ध होगी परिसर की 
धुँआ छोड़ते वाहन ठहरे,
पंछी अब निर्द्वन्द्व उड़ेंगे 
आवाजों के लगे पहरे !




रांड़  ,सांड़ 
सीढ़ी ,सन्यासी 
सबको यह अपनाती है,
शंकर को 
अद्वैतवाद का 
अर्थ यही समझाती है,



21 days lock down

एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा। एक हफ्ते से अवसाद ग्रस्त 2020 के कबीर सिंह बने मिश्रा जी, घर आने वाला गाना सुनकर और भड़क गए। धर्मपत्नी के फोन उठाते ही उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया। 
"ये क्या गाना लगा रखा है तुमने, सब कुछ बंद है तो कैसे घर आऊँ।"
"अरे खिसिया काहे रहे हैं, हम थोड़े ना बंद किये हैं। हमरे दिल के दरवाजा आपके लिए हरदम खुला है।"


हम-क़दम का 113 वाँ विषय
'काजल'
रचना भेजने की अंतिम तिथिः  28 मार्च 2020
प्रकाशन तिथिः 30 मार्च 2020

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव

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