अभिसार...
'अभिसार' भारतीय साहित्यशास्त्र का एक मान्य पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ है- "नायिका का नायक के पास स्वयं जाना" अथवा "दूती या सखी के द्वारा नायक को अपने पास बुलाना"। अभिसार में प्रवृत्त होने वाली नायिका को 'अभिसारिका' कहते हैं। दशरूपक के अनुसार जो नायिका या तो स्वयं नायक के पास अभिसरण करे अथवा नायक को अपने पास बुलावे वह 'अभिसारिका' कहलाती है- 'कामार्ताभिसरेत् कांतं सारयेद्वाभिसारिका'। कुछ आचार्य अभिसारण का कार्य वाकसज्जा का ही निजी विशिष्ट व्यापार मानकर इसे अभिसारिका का व्यापक लक्षण नहीं मानते, परंतु प्राचीन आचार्यों के मत के यह सर्वथा विरुद्ध है। भरत मुनि ने तो कांत के अभिसाररण को ही अभिसारिका का प्रधान लक्षण अंगीकर किया है। 'भावप्रकाश' का भी यही मत है। कवियों की दृष्टि में अभिसारिका ही समस्त नायिकाओं में अत्यंत मधुर, आकर्षक तथा प्रेमाभिव्यंजिका होती है।...और आगे की जानकारियाँ...
आज रविवार को महिला दिवस के चक्कर में
हम भूल ही गए कालजयी रचनाओं को
उदाहरणार्थ दी गई रचना
कविवर नरेश मेहता जी की रचना-
यह सोनजुही-सी चाँदनी
नव नीलम पंख कुहर खोंसे
मोरपंखिया चाँदनी।
नीले अकास में अमलतास
झर-झर गोरी छवि की कपास
किसलयित गेरुआ वन पलास
किसमिसी मेघ चीखा विलास
मन बरफ़ शिखर पर नयन प्रिया
किन्नर रम्भा चाँदनी।
मधु चन्दन चर्चित वक्ष देश
मुख दूज ढँके मावसी केश
दो हंस बसे कर नैन-वेश
अभिसार रंगी पलकें अशेष
मन ज्वालामुखी पर कामप्रिया
चँवर डुलाती चाँदनी।
गौरा अधरों पर लाल हुई
कल मुझको मिली गुलाल हुई
आलिंगन बँधी रसाल हुई
सूने वन में करताल हुई
मन नारिकेल पर गीत प्रिया
वन-पाँखी-सी चाँदनी।
रचनाकार श्री नरेश मेहता
आदरणीय कुसुम कोठारी
ऐसा अभिसार चातकी का ..
तिमिरावगूंठित थी त्रियामा ,
आकाश के छोर अर्ध चंद्रमा।
अपनी निष्प्रभ आभा से उदास कहीं खोया,
नीले आकाश के विशाल प्रांगण में जा सोया।
तारों की झिलमिलाहट उसे चुभ गई ,
उसकी ये पीड़ा चातकी के हृदय में लग गई ।
चल पड़ी अभिसार को वो, पंख फैलाकर अपने,
आदरणीय मीना शर्मा
शब्दों में प्यार कहूँ कैसे
प्रेम नहीं, शैय्या का सुमन,
वह पावन पुष्प देवघर का !
ना चंदा है ना सूरज है,
वह दीपक है मनमंदिर का !
है प्यार तो पूजा ईश्वर की,
उसको अभिसार कहूँ कैसे ?
सुजाता.
अभिसार के पल
आदरणीय विश्वमोहन कुमार
पुरुष की तू चेतना ...
छवि अगणित,
कंदर्प का,
शतदल सरसिज,
सर्प-सा.
काढ़े कुंडली,
अधिकार का,
अभिशप्त मैं
अभिसार का.
मैं छद्म बुद्धि विलास वैभव
मनस तत्व, तू वेदना.
....
आज इतनी ही रचनाएँ
कल मिलेंगी
सखी श्वेता..
विषय के साथ
सादर
सुंदर रचनाओं का संगम।बेहद खुबसुरत प्रस्तुति। मेरी छोटी-सी रचना को साझा के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार दीदीजी।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।सभी को होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंअभिसारिका–
ताजमहल बने
रेजा की ज़िद।
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
होली की हार्दिक शुभकामानायं |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आज की | मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका!
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल प्रस्तुति
रचनाएं बहुत कम आई है शायद सभी होली में व्यस्त हैं पर जो भी आई है सभी उत्कृष्ट है।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सुंदर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं सभी सखियों, साथियों एवं पाठकों को ! आज की हलचल में सभी रचनाएं बहुत सुन्दर ! मेरी रचना को आज के इस संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सरस संकलन। आपके स्नेहाशीष का हृदयतल से आभार।
जवाब देंहटाएंआदरणीया दी, रचनाओं की चंद पंक्तियाँ ही बता रही हैं कि वे खूबसूरत होंगी। आज कुछ तो त्योहार के काम और कुछ अस्वस्थता के कारण पढ़ नहीं पाई हूँ। कभी कभी लगता है कि खुद को इतना थकाकर सारे रीतिरिवाज कर रहे हैं पर कब तक कर पाएँगे, कब तक बचा पाएँगे अपनी संस्कृति? सभी को होली पर्व की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए सादर आभार दी।
अभिसार की महिमा जताता सुंदर अंक आदरणीय दीदी। भूमिका शानदार और रचनाएँ जानदार 👌👌👌👌हार्दिक शुभकामनायें।रंगोत्सव सबके लिए शुभ हो
जवाब देंहटाएंयही कामना है। 🙏🙏🙏 . सादर