सियासी नाटक
सम्मोहित करता
अब तो रोज़-रोज़,
लोकतंत्र की आत्मा
कहाँ हुई है बंधक
कौन करेगा खोज?
-रवीन्द्र
गाँव मुझको अपने पास बुलाता।
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
मुझे याद आती है वो
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बहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंलता जी ने जब कोरोना के डर से रूबरू करवाया तो वही रेखा जी के सतरंगी आसमान में उड़ान भरी।
जवाब देंहटाएंशुभा जी की मिलावट अच्छी लगी। कहमुकरियों का जवाब नहीं। ऊपर से फ़ैज साहब... ओहोहो।
कतई स्वाद आ गए।
मेरी क़लम विशेष पंक्तियों से नवाज़ी गयी।
आभार आपका। ☺️
कोरोना पर हाईकू को शामिल करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही खूबसूरत अंक !!मेरी मिलावट को इस खूबसूरत अंक में शामिल करनें के लिए हृदयतल से आभार रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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