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विचारणीय भूमिका , पर यदि जनता को पर्दाफ़ाश करने आता ही तो अब तक एक और क्रांति जन्म ले चुकी होती, न की यह दिल्ली दंगा.. ?
जवाब देंहटाएंयदि जनता को पर्दाफ़ाश करने आता , तो राजनेताओं का काला धन बाहर आ चुका होता..।
यदि जनता को पर्दाफ़ाश करने आता तो वह समझ चुकी होती कि सत्ता के लिए नेता पाला बदलते रहते हैं और वह ( जनता ) है कि दलगत आस्था में लिपटी पड़ी है। आपसी भाईचारे को कलंकित कर स्वयं अपने लिए भय का वातावरण उत्पन्न कर रही है। दंगा रचने वालों को अपना मसीहा समझ उसके पीछे दौड़ रही है।
इसी संदर्भ में मेरे सृजन " भाईचारा " को पटल पर स्थान दिए जाने के लिए आपका अत्यंत आभारी हूँ रवींद्र भैया। एक बात तो है रचना चयन करते समय आपकी निष्पक्षता सराहनीय है। जिसकारण मेरे जैसे साधारण लेखक को भी सम्मान मिल जाता है।
सभी रचनाकारों को प्रणाम।
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
सादर...
बेहतरीन प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंचुनिन्दा सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को आपने आज के इस संकलन में सम्मिलित किया आपकी हृदय से बहुत बहुत आभारी हूँ रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंयदि जनता पर्दाफाश करने पर उतर आयी तो पक्ष विपक्ष सब एक रंग में दिखेंगे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
सुंदर प्रस्तुति संग सभी चयनित रचनाएँ भी बहुत उम्दा। सभी को खूब बधाई।
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंछोटी पर सटीक भूमिका ।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक चयन ।
सभी रचनाकारों को बधाई।