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शनिवार, 21 मार्च 2020

1709.. पल

गुनाह करने वाले पल में भी
यकीन होता है विजेता होने का
किसी पल पर भरोसा कम नहीं होता
जंग लड़ने वालों को

"सुनो ! मेरे लैपटॉप में वार्निग आ रहा है..,"
"किस तरह का वार्निग ?"
"एंटी वायरस का मियाद खत्म हो जाने वाला है..,"

"अभी कितना दिन बाकी है?"
"सत्ताईस दिन,"
"हद है! मुझे लगा इस पल... तुम भी न!"

जब जब सोचता वो सामने आ जाता है,
तब सामने होकर भी सामना न होता था।
डर डर के दिल वो डर खत्म करना चाहता है,
जिस डर से इस जीवन ने तुम्हे खोया था।
पल पल अब उस पल को जीना चाहता है,
जिस पल एक दूसरे को पल भर देखा था।
पल पल तरसती है नजर मेरी
बस तेरे दीदार को
जुस्तजू है या बेताबी है
खुली है पलके तेरे आने के इंतजार को
जिनको जल्दी थी,
         वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,
मैं समन्दर से राज,
         गहराई के सीखता रहा..!!
पल पल पलकों में समाये रहते हो
अपने तो अपने होते है
मीठे फल देने वाले वृक्ष हो तुम
आँखों में मिठास का स्वाद बना रहता है
पल पल हरपल नया पल पालता है
मुक्ति द्वार का पालना

><><
पुनः मिलेंगे..
><><

एक सौ बारहवाँ विषय
मिलावटउदाहरण

मिलावट ही मिलावट..
रिश्तों मे भी प्यार मिलावट,
सुख के साथी यार मिलावट,
दुख मे साथ कुछ ही चलते हैं,
बाकी सब संसार मिलावट.

संसद मे भी बात मिलावट,
वादों के हालात मिलावट,
सत्ताधारी,निज हितकारी,
नेताओं की जात मिलावट.
- विनोद कुमार पांडेय

अंतिम तिथिः 21 मार्च 2020
प्रकाशन तिथिः 23 मार्च 2020
माध्यमः सम्पर्क फार्म




16 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाह...
    प्यारा पल..
    सदा की तरह बेहतरीन..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. पल-पल पल को चुनता रहा और इस सुंदर संकलन को बुनता रहा।

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर , भावों से भरी बहुत ही सार्थक प्रस्तुती हमेशा की तरह आदरणीय दीदी | पल यानि समय ई सबसे छोटी इकाई | जिसके बढ़ते बढ़ते जीवन का आकर घटता जाता है | पल की परिभाषा पर समग्र दृष्टिपात करती रचनाओं के लिए कोटि आभार और नमन | श्रमसाध्य अंक में जो लिंक संजोये गये हैं सभी सराहनीय और पठनीय हैं | पल पर चंद पंक्तियाँ मेरी भी --
    सुख- दुःख का ताना बाना है ,
    कहीं गुलशन कहीं वीराना है ;
    तन , मन और जीवन ,
    पल - पल बदले इनका मौसम ;
    कहीं हंसी कहीं रोदन बिखरे
    नियत जन्म के साथ मरण ;
    नित गतिमान यायावर का -
    जाने कहाँ ठौर ठिकाना है ? --
    सदर प्रणाम और शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार आपका
      आपकी प्रतिक्रियों की प्रतीक्षा रहती है

      हटाएं
    2. आपकी ऐसी अनूठी प्रस्तुति सदैव विशेष है दी।
      ऐसे लिंक संयोजन में आपकी रचनात्मकता साफ दृष्टिगोचर होती है। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
      सादर।

      हटाएं
    3. प्रणाम और आभार आदरणीय दीदी

      हटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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