सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
दिन में दो बार
गुड़ ,अदरक ,काला नमक/सेंधा नमक/सादा नमक ,हल्दी (ऐच्छिक बादाम ,छुहाड़ा) गर्म पानी में मिलाकर लेते रहने से स्वस्थ्य रहेंगे..
वैसे अभी वक़्त की मर्जी कि इंसान जैसे रहे.. गौर करें इंसान को इंसान से अलग-थलग कर प्रकृति सज रही बाकी सभी जीव-जंतु ,फूल-पत्ती संवर रहे हैं.. जैसे कशीदाकारी कर रहा हो...
मियाँ जब्बार हमें
समझाते जा रहे
काम की बारीकियाँ
ये जाने बगैर
कि तफ़़रीहन पूछा था हमने
कि कैसे बन जाती हैं
सुर्ख, चटख़, शोख़ रंगों वाली
जादूभरी नागपुरी साड़ियाँ
बुनकर
हिन्दुओं और पर्यटकों का केन्द्र अस्सी घाट पर कुदाल चला.
जयापुर गांव को गोद लिया गया तथा बुनकर व्यापार
सुविधा केन्द्र का प्रेमचन्द्र के गांव लमही से
कुछ ही दूरी पर बड़ा लालपुर में उदघाटन हुआ
बुनकर
ऐसा चमकीला परिधान क्यों बुनत हो ?
"जंगली हेलसियन पक्षी के पंखों सा नीला,
एक नवजात शिशु हेतु परिधान हम बुनते हैं।"
"दिवसावसान पर संध्या में बुनते बुनकरों,
ऐऐसा उल्लासमय वस्त्र क्यों बुनते हो ?"
बुनकर
जीवन की उथल पुथल भरी सरणियों में जो देखा सुना
और महसूस किया है उसे कविताओं में लगातार
कहने की कोशिश की है। हत्या रे उतर चुके हैं
क्षीरसागर में के बाद उन्होंने बेर-अबेर सतपुड़ा नामक
एक लंबी कविता लिखी है। यह उस नास्टैकल्जि्क गंध से
बुनी कविता है जिससे गुजरते हुए उनका बचपन बीता है।
बुनकर
जिसमें धागे निकलते हैं मष्तिष्क की
जो गाँस बना जाती है
हमारे सभ्यता और संस्कृति में
वह बनाता है कपड़ों पर रंग
और रख देता है मोहनजोदड़ों की ईंट
हुसैन की कलाकारी सा भरता है रंग
जैसे आँखों से उतरता है खून
जो वोदका के रंग सा दिखता है खूबसूरत
><><
पुन: मिलेंगे
><><
113 वाँ विषय
"काजल"
भेजने की अंतिम तिथि आज : 28 मार्च 2020
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंसदाबहार प्रस्तुति..
सादर नमन..
सुंदर रचनाओं के रेशमी धागों की मोहक बुनावट।
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत ,रंगीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन सूत्रों से सजी सराहनीय बुनावट दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएं