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बुधवार, 25 मार्च 2020

1713....घर के दर-ओ-दीवारों में, आगे खुशी के साये हैं..

।। भोर वंदन ।।
लोग अकेलेपन की शिकायत करते हैं ।
मैं समझ नहीं पाता ,
वे किस बात से डरते हैं ।
अकेलापन तो जीवन का चरम आनन्द है ।
जो हैं निःसंग,
सोचो तो, वही स्वच्छंद है ।
अकेला होने पर जगते हैं विचार,
ऊपर आती है उठकर
अंधकार से नीली झंकार ।
~ डी० एच० लारेंस

अनुवाद:- रामधारी सिंह "दिनकर"

 आशावादी कलमकार की तरह कि..घर के दर-ओ-दीवारों में, आगे खुशी के साये हैं..
और इसी एहतियात के साथ नजर डालें आज के लिंकों पर...✍
🤝🏠🤝



आ०  संजय कौशिक 'विज्ञात' जी..

स्वप्न वो आकर जगाता।
ये खुशी किसको गई चुभ, 
हर्ष भी कितना रुलाता॥

1

आज कण्टक क्षण प्रफुल्लित, 
और पुलकित वेदनाएं।
शूल उपवन में खिले से, 
पुष्प रज-कण में समाएं

🤝🏠🤝





******
सन्नाटे के गाल पर 
मारो नहीं चांटा
गले लगाओ इसे

घबड़ाहट में यहां वहां

भाग रहे मौसम को

🤝🏠🤝



इतिहास दोहराता है स्वयं को बार-बार 
महामारी का दंश झेला है 
 पहले भी, दुनिया ने कई बार
शायद हम ही थे... 
जब अठाहरवीं शताब्दी में प्लेग फैला था 
या उन्नीसवीं शताब्दी में दुर्भिक्ष... 
हम लौटते रहे हैं बार-बार 

🤝🏠🤝


कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?

राग अनुराग का गाऊँ कैसे?-2

आँगन पड़ी दरार है,

बँटता मेरा परिवार है,
झूठी धरम की रार है,
कैसा ये व्याभिचार है!
तम कर रहा अधिकार है,

🤝🏠🤝


आ० आकिब जावेद जी के विचारपूर्ण लेख के साथ आज की प्रस्तुति यहीं तक..

हम जागरूक क्यों नही?
हमारा देश इस समय कोरोना की वजह से भारी टेंशन में है 
लेकिन आम जनमानस को कोई फर्क ही नही पड़ रहा है।
जब प्रथम स्टेज था तो विदेशी नागरिक आराम से देश में इंटर हो गया।
जबकि हम सभी दो महीने से चीन की तरफ नज़रे गडाये बैठे हुए थे..
🤝🏠🤝

कुछ इस अंदाज में वक्त गुजारे...


-*-*-*-*-
हम-क़दम का नया विषय

यहाँ देखिए
-*-*-*-*-
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍


11 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दू नववर्ष के प्रथम दिन पहली बार सड़कों पर बिल्कुल सन्नाटा है। माँ विंध्यवासिनी मंदिर क्षेत्र जहाँ आज लाखों भक्त जुटते, वहाँ कोई नहीं है।

    21 दिनों लॉक डाउन में सबसे बड़ी समस्या रोज कमाने और खाने वालों के समक्ष है ।होली पर्व के कारण जेब सबका बिल्कुल खाली है । लोगों ने सोचा था चलो मेहनत -मजदूरी कर अथवा जिस दुकान पर वे काम कर रहे हैं ,उसके सेठ से कुछ पैसे उधार ले लिए जाएंगे। पर्व के कारण बजट तो उनका गड़बड़ा गया है, लेकिन किसी तरह से पटरी पर आ जाएगा , परंतु कोरोना का कहर विदेश से शुरू होकर अपने देश में महानगरों से होते हुए जैसे ही आसपास के जनपदों में पहुंचा सब कुछ गड़बड़ हो गया। अब तो श्रमिक और निम्न मध्य वर्ग के लोग ठन- ठन गोपाल हैं। पैसा क्या मिलना विभिन्न प्रतिष्ठानों के संचालक अपने कर्मचारियों को घर बैठा दिया था , क्योंकि जब ग्राहक ही नहीं है, तो फिर उनकी क्या जरूरत। फिर बेचारे क्या करें, कहां से खाना खाएं और कहां से दवा आदि की व्यवस्था करें । ऐसे वर्ग में कोरोना की पहली मार बच्चों के दूध पर पड़ी है । अनेक लोगों ने दूध बंद करवा दिये है। स्कूल भले ही बंद हैं। लेकिन प्राइवेट स्कूल संचालक इन महीनों के पैसे भी अभिभावकों के गला दबा कर लेंगे यह तो तय है। किसी प्राइवेट स्कूल के संचालक ने यह नहीं कहा है कि बच्चों का एक माह का फीस वे माफ करेंगे। ऐसा वह कहेंगे भी वे क्यों, क्योंकि उनका तर्क होगा कि स्कूल के कर्मचारियों को भी पैसा देना है और दूसरी ओर जैसे ही मालवाहक वाहनों का आना- जाना नहीं है । कालाबाजारी करने वालों के चेहरे की रौनक बढ़ गई है ।उनमें तनिक भी मानवता नहीं है और प्रशासन भी सुस्त है । जनता कर्फ्यू के बाद अचानक सब्जियों के दाम में भारी उछाल आ गया है ।अब तो दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ की डफली बजाने को कहा जा रहा है। परंतु दाल निम्न मध्यवर्ग के घर में अब कहां रोज बनता है। हां नमक रोटी खाओ, यह जरूर नया जुमला हो सकता है गरीबों के लिए।
    क्यों कि आलू 50 रुपये और प्याज भी उसी भाव में बिका है।

    ऐसी स्थिति में नववर्ष की क्या शुभकामनाएं दूंं।
    बस प्रणाम।
    इस समय तो रचनाएँ नहीं, कल की कालाबाजारी देख, बस गरीबों का दर्द दिख रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन..
    शशि भाई को आभार..
    दीन-दुनिया की खबर के लिए
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार..

      अभी बाहर से लौट के आया हूँ।
      कम से कम हमलोग नवरात्र व्रत में कुछ कम भोजन ग्रहण उस धनराशि से किसी एक पात्र व्यक्ति को ब्रेड अथवा कोई अन्य खाद्य सामग्री दे, ऐसा करने का प्रयास कर रहा हूँ, क्यों कि पचास रुपये से अधिक का सहयोग मैं भी 21 दिन नहीं कर सकता हूँ, परंतु इतने से आत्मसंतुष्टि अवश्य मिलेगी।
      और व्रत का फल भी, जो बाजारों में मिलने वाले महंग फल से कहीं अधिक मीठा होगा।

      हटाएं
    2. उत्तम विचार आदरणीय सर। यही उत्तम व्रत है। सादर प्रणाम 🙏

      हटाएं
  3. उम्दा लिंक्स से सजा आज का अंक |नव वर्ष की शुभ कामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  4. कोरोना की मार से बचाने के लिए सरकार जो कुछ कर रही है उसके बाद हम नागरिकों की जिम्मेदारी बनती है,कि कोई भी भूखा न रहे, समाज उनके लिए अवश्य आगे आएगा, हमें अपना मनोबल बनाये रखना है. आभार आज के अंक में मुझे भी शामिल करने के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    आदरणीया मैम सादर प्रणाम 🙏 भूमिका के ज़रिये उचित संदेश दिया आपने। अकेले रहना इतना भी बुरा नही। हाँ पर जैसा आदरणीय शशि सर ने कहा आज उन लोगों की स्थिति,उन लोगों की समस्याएँ,उन लोगों की पीड़ा ज्य्दा चिंताजनक है जो रोज़ कमाते और खाते हैं। उनकी समस्याओं के आगे यह एकांतवास तो कुछ नही। इनके लिए घर पर रहना कहाँ तक संभव होगा। सरकार ने तो कह दिया कि हम व्यवस्था करेंगे किंतु हमारा भी दायित्व है कि हम अपनी ओर जो बन पड़े करें।
    सुंदर प्रस्तुति आदरणीया मैम। सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा। सभी को हार्दिक बधाई। मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. अकेलापन तो जीवन का चरम आनन्द है ।
    सही कहा पर आजकल लोगों के लिए सजा बन गया अकेलापन...।अब सजा ही सही देहांत से तो एकांत भला...है न...।
    शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत भावपूर्ण अंक प्रिय पम्मी जी | एकांत सृजनशील और मननशील लोगों के लिए वरदान है पर आम तौर पर ये एक यंत्रणा है | भगवान् करे एकांतवास किसी के लिए कारावास सरीखा ना बन जाए | बहुत ज्ञानवर्धक लेख जिससे बहुत अच्छी जानकारी मिली | और काव्य रचनाएँ भी लाजवाब हैं | सस्नेह आभार और शुभकामनाएं इस सार्थक अंक के लिए | सभी रचनाकारों और पाठकवृन्द को नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संंयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    आपको साधुवाद
    मुझे सम्मिलित करने आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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