वैश्विक महामारी के इस संकटकालीन दौर में
समसामयिक परिस्थितियों के घबराहट से भर देने वाले
समाचारों से आशंकित होना, निरंतर बढ़ते बीमार और बड़ी संख्या में मरते बेबस लोगों की भयावह सच्चाई, भूख से जूझते गरीबों की दयनीय स्थिति से दुखित हृदय। जब चहुँओर नकारात्मकता और असंतोष का
वातावरण हो तो विषय से इतर
प्रकृति ही असीम शांति प्रदान करती है।
मन को ढ़ाढस देती है।
एक प्रयास हमारी ओर से
कुछ सकारात्मक ऊर्जा
बटोरकर
मन को शीतलता प्रदान
करने का
इस बार का हमक़दम
हमारे प्रतिभासम्पन्न रचनाकारों के
अभूतपूर्व सहयोग से
पढ़िये
पलाश
अभी मौसम तो नहीं
तुम्हारे खिलने का,
बसंत बीत रहा
पतझड़ की मायूसी में
तुम्हारी मुरझायी
पंखुड़ियाँ बिखरी है
उदास वृक्षों के
पाँव तले,
सुनो न !
खिल जाओ
फिर से पलाश
तुम्हारे
आकर्षक,नाजुक
फूलों को
निर्जन वनों से
चुनकर,उसके
पंखुड़ियों के सारे
रंग निचोड़कर
मन की विह्वलता
पर
मरहम लगाना
चाहती हूँ।
#श्वेता
★★★
सबसे पहले पढिये एक
सुंदर कालजयी रचना
अनुज लुगुन
यह पलाश के फूलने का समय है
यह पलाश के फूलने का समय है
उनके जूडे़ में खोंसी हुई है
सखुए की टहनी
कानों में सरहुल की बाली
अखाडे़ में इतराती हुई वे
किसी भी जवान मर्द से कह सकती हैं
अपने लिए एक दोना
हड़ियाँ का रस बचाए रखने के लिए
यह पलाश के फूलने का समय है ।
★
अब हमारे चिर-परिचित
ब्लॉगरों की साहित्यिक धरोहर
कालजयी रचनाएँ-
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फिर भी बुरा नहीं, कभी कभार,
रंगीन ख़्वाबों को यूँ बुनना,
अलसभरी निगाहों
में। न पूछ यूँ
घुमा फिरा
कर
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मन के पलाश खिल जायेंगे
सरसों झूमेगी अंग-अंग
चहुँ ओर बजेगी जल-तरंग
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रखता नैनों मे इसे हरपल,
परसा, टेसू, किंशुक, केसू, पलाश,
या प्यार से कहता दरख्तेपल....
फागुन सी होती ये पवन,
होली के रंगों से रंगते उनके गेेसू,
अबीर से रंगे होते उनके नयन.....
आइये अब विषय आधारित नियमित रचनाओं का
रसपान करते है-
★
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अपने ही दर्द को लपेटे है यहाँ सारा जमाना।
नैना रे अब ना बरसना।
देखो खिले खिले पलाश भी लगे झरने,
डालियों को अलविदा कह चले पात सुहाने।
नैना रे अब ना बरसना।
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दिखते कहां हो अब तुम शहरों में ?
चढ़ गए आधुनिकता की भेंट तुम,
अब तो शहरों में ईद का हो चांद तुम।
औषधीय गुणों के हो तुम स्वामी,
...... कोई नहीं थी तुममें खामी।
★
आदरणीय सुजाता प्रिया जी
डाल-डाल खिल गया पलाश
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लगता लाल चोंच के शुक।
इसलिए कहाता है किंशुक।
रंग फाग का लेकर आता है।
पर हाथ न किसी के आता है।
डालियाँ इसकी चूमे आकाश।
डाल-डाल खिल गया पलास।
★
आदरणीय अनुराधा चौहान
डाल-डाल फूले पलाश
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★
आदरणीय ऋतु आसूजा
पुष्पों में पुष्प पलाश
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पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज
पुष्प तुम प्रकृति के
अनमोल रत्न दिव्य आधार
★
आदरणीय ऋतु आसूजा
पलाश के पुष्पों का सुन्दर संसार
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टेसू के कानन में जब झांका
प्राप्त हुई शांत ,निर्मल सुन्दर
रक्तिम पलाश के पुष्पों
की चुनरिया ओढ़े
दुल्हन ,प्रकृति चित्रकार
वसुंधरा दुल्हन ,अम्बर दूल्हा
देख मेरा रूप चांद भी शर्माता.......
पलाश के पुष्पों ने मेरा मन मोह में बांधा।
★
आदरणीय कुसुम कोठारी
"पलाश "प्रेम के हरे रहने तक ..
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पलाश का मौसम अब आने को है।
जब खिलने लगे पलाश
संजो लेना आंखों में।
सजा रखना हृदय तल में
फिर सूरज कभी ना डूबने देना।
और चलते-चलते पढ़िये
सुबोध सर की रचना
मन के मलाल
आज का अंक कैसा लगा
आप ही बताएँगे
कल का अंक आ रहा है
नया विषय लेकर
-श्वेता
बिलकुल पलास के फूलों-सा रंगीन मनमोहक और सुंदर अंक श्वेता! बहुत ही सुंदर भावपूर्ण और सराहनीय प्रस्तुति। सभी रचनाकारों की रचनाएँ खिलखिलाती -मुस्कुराती हुई। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंपलाश...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
शुभकामनाएं सभी को
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर विशेषांक, बधाई इस संयोजन के लिए।
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
हटाएंमैं आज पहली बार आपको इस अंक में देखी
आभार,आभार और आभार
सादर
इस विपदा की घड़ी में पलाशमय करने वाले शीर्षक का चयन और उसके अनुरूप एक परिपक्व भूमिका के आगाज़ के साथ कई सारी पलाशमय रचनाओं के संगम संग प्रस्तुतीकरण .. और इन सब के बीच मेरी भी एक रचना/विचार ..सुप्रभातम् और आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंवाह!!बेहतरीन अंक ! सभी के जीवन में पलाश के फूलों सा रंग भरा रहे ..यही कामना है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया श्वेता जी, इस पुरानी रचना को मंच पर प्रस्तुत करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस विशेष अंक से जुड़े समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
कोरोना के विश्व-व्यापी संकट से अक्षुण्ण रहने में हमारी रचनात्मकता समाज के किसी काम आ जाय तो हम धन्य होंगे।
आभार।
विपदा की इस घड़ी में पलाश के फूल मन को बहुत सुकून देते हैं ! हर रचना विशिष्ट एवं शानदार ! मेरी रचना को आज के संकलन में सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंपलास की सुगंध बिखेरता सुंदर अंक श्वेता जी ,भूमिका और सभी रचनाएँ लाजबाब हैं ,सभी रचनाकारों को ढेरो शुभकामनाएं ,ऐसे माहौल में पलास की खुश्बू मन को थोड़ा तरो -ताज़ा कर रही हैं ,सादर नमन सभी को
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक सभी रचनायें अति सुन्दर l
जवाब देंहटाएंपलाश सा ही मनभावन अंक |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसमय कुछ देर चुप हो बैठ जरा देख कितने मनभावन पलाश शोभित हैं चहुं और...
सच सुंदर मनभावन पलाश खिल उठे पाँच लिंक पर सभी बनमाली बधाई के पात्र हैं जो यूं मोहक पलाश ले आते काल के विरुद्ध ।
बहुत बहुत साधुवाद।
मेरे पलाश को जमीं देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
देर से आने के लिए क्षमा🙏 बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएं