पुन: मिलेंगे
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अब बारी है विषय की
115 वाँ विषय
लघुकथा
आपको लघुकथा लिखनी है
प्रेरणा इस अंक की पहली रचना पढ़कर लें
अंतिम तिथिः 11 अप्रैल 2020
प्रकाशन तिथिः 13 अप्रैल 2020
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शब्दों में कहा करते थे
जवाब देंहटाएंसब प्राणी एक से हैं
लेकिन
जो जिस पद पर थे
उस हिसाब से मद में थे
प्रकृति समझा रही है
वक़्त है प्रायश्चित कर लो
प्रवृति बदल लो
निवृति के पहले
मनन योग्य पंक्तियाँ लिखी ह़ै दी।
सभी रचनाएँ सदा की तरह उत्कृष्ट है।
सराहनीय संकलन।
सुंदर प्रस्तुति।
प्रणाम दी।
आदरणीय शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार
सादर नमन...
वाह!बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहाँ तुम रहो
जवाब देंहटाएंकिसी डाल पर बसंत के जैसे
खिलो इसी ऋतु में
इस युग का ऋण चुकाने के लिए...
इस पंक्ति ने वस्तुतः मन को छू लिया है। यथार्थ में हमे अपने सामाजिक कर्ज का बोध ही नहीं होता और कर्म की खिल्ली तो हम अक्सर उड़ाते ही रहते हैं ।
- आँखें खोलती इस प्रस्तुति के लिए साधुवाद ।
प्रकृति समझा रही है
जवाब देंहटाएंवक़्त है प्रायश्चित कर लो
प्रवृति बदल लो
निवृति के पहले
शानदार प्रस्तुति उम्दा लिंको से सजी...।
हाँ तुम रहो
जवाब देंहटाएंकिसी डाल पर बसंत के जैसे
खिलो इसी ऋतु में
इस युग का ऋण चुकाने के लिए
करो सारे जतन
सबसे प्रेम करने के लिए
बनो परमात्मा
संत कबीर
बहुत सुंदर अंक आदरणीय दीदी | खेद है कल प्रतिक्रिया नहीं दे पायी | जब तक सब रचनाएँ पढ़ ना लूं लिख नहीं पाती | आपका संकलन हमेशा विशेष रहता है | इस बार भी बेमिसाल | सादर प्रणाम और आभार |