।।प्रातःवंदन।।
धुंध में लिपटी सर्द सुबह
बीते समय की देहरी पर ठहरी है,
कल भी सब अस्पष्ट था
आज भी वही धुंधली कहानी है।
सड़कें, रास्ते, चौखटें
अब भी तुम्हारी आहट की आस में,
मौन होकर इंतज़ार करती हैं।
(अनाम)
समयानुकूल रचना पढकर ब्लॉग पर भी आप सभी के लिए शेयर कर रही, चयनित रचनाए कुछ इस तरह है..✍️
होना चाहिए इस बात का जिक्र कि
साल के बदल जाने के बाद
क्या क्या बदलेगा
और क्या क्या रह जायेगा
पहले जैसा? .
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जीवन में हमारे साथ कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं जिनसे मिलकर मन विश्राम पाता है । आज अनीता निहलानी जी जिनके ब्लॉग से ही यह शीर्षक लिया है , ग्वालियर भ्रमण पर हैं और मेरा सौभाग्य के उनके..
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सपने भी देखना चाहिए
क्योंकि सपने—
ज़िंदा रहने का सबूत होते हैं।
कुछ सपने
मैं रिकमेंड करता हूँ
ज़रूर देखना—
“बिना साम्प्रदायिकता भड़काए”..
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सर पर प्रभु का हाथ
हिम्मत भी दे साथ
कोई न देगा मात !
मेरे मन के मीत..
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तुझको नम न मिला
और तू खिली नहीं
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '✍️
Bahut सुन्दर
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