।।ऊषा स्वस्ति।।
"सुबह हो रही थी
कि एक चमत्कार हुआकिरण
आशा की एक किरण नेइ
किसी बच्ची की तरह
कमरे में झाँका---
कमरा जगमगा उठा !
"आओ अन्दर आओ, मुझे उठाओ"
शायद मेरी ख़ामोशी गूँज उठी थी !"
कुंवर नारायण
चलिए इसी आशा की किरण को बुनते गुनते हुए पढ़िये ..✍️
पुत्र का पिता से प्रतिद्वंद्विता का भाव होता है। तुम, हम भी कुछ हैं, यह जमाने को बताना चाहते हो। नीति-रीति की संकीर्णता तोड़कर समाज में विचार वैविध्य व उन्नन्ति के सोपानों की एक सीढ़ी अंतरजातीय विवाह भी है। प्रसन्न ही हूँ, चाहे चौंकाने के भाव से ही सही, मेरे भाव को ही तुम आगे बढाओगे। मैं तो कलम का सिपाही हूँ। चाहे कलम हो या कूंची-ब्रुश या चाकू -- सर्जना मेरा कर्म है, धर्म है। आशीर्वाद है।
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पर्वत गीत
वे नहीं समझते पर्वत को
जो दूर से पर्वत निहारते हैं,
वे नहीं जानते पहाड़ों को
जो पहाड़ पर्यटन मानते हैं।
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अदना सा ख्याल यूँ ही जाने क्यों मन को भा गया l
गुफ़्तगू इश्क की खुद से भी कर लिया करूँ कभी ll
गुजरु जब फिर यादों की उन तंग गलियों से कभी l
जी लूँ हर वो लम्हा उम्र जहां आ ठहरी थी कभी ll
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किसी से कही मन की बात
सोचा मन हल्का हो जाएगा
और हँसी का पात्र बनी
लोगों ने पीछे से मजाक बनाया उसका|
यही बात जब जानी मन को संताप हुआ
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अप्रतिम
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
सादर
सुंदर प्रस्तुति. शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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