आत्महत्या कर ली।
आइये अब चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -
सूरज की रोशनी को वो बांटेंगे किस कदर
कसम…….. ऋता शेखर 'मधु'
काला पूरा काला सफेद पूरा सफेद अब कहीं नहीं दिखेगा…प्रोफ़ेसर डॉ.सुशील कुमार जोशी
बड़े- बड़े महारथी
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंसही व सटीक रचनाओं का चयन
आभार..आज यहा मेरा भी ब्लॉग है
सादर
नमस्ते, आदरणीय भाई जी आज आपका नाम आगे के लिए मेरी स्मृति में सुधर गया। आभार सादर।
हटाएंशुभ प्रभात आदरणीय रवींद्र जी
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति कुछ अलग है
अच्छे लिंक संजोये हैं आपने
विचारणीय मुद्दे !
आभार,
"एकलव्य"
सुन्दर प्रस्तुतिकरण,
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक संकलन.....
आदरणीय रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही गंभीर बात रखी है, बच्चों के संवेदनशील मन को सँभालने की जिम्मेदारी सभी माता पिता पर तो है किंतु समाज का भी उतना ही योगदान होता है।
आधुनिकता की होड़ और चारदीवारी की बंद संस्कृति में, निरर्थक खेलों मे अपना समय गुजारते बालमन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ध्यान देना आवश्यक है।
बहुत सुंदर लिंकों का प्रस्तुतिकरण रवींद्र जी।
बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करे।
शुभ प्रभात आदरणीय रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंकों का विचारणीय प्रस्तुतिकरण..
धन्यवाद।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधारदार लिंक ... सामाज से जुड़े विषयों का संकलन ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे आज जगह देने का ...
तकनीकी की अच्छाइयों के साथ बुराइयां भी दखल दे रहीं हैं जीवन में, बड़ों को बच्चों पर नज़र रखने के साथ-साथ समझाना भी जरुरी है ! पर विडंबना यह है कि बड़े भी इस लत के शिकार हो रहे हैं !!
जवाब देंहटाएंस्तरीय संकलन। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति रवीन्द्र जी 'उलूक' उवाच कहिये या 'उलूक' बकवास कहिये बस कहने के लिये है क्योंकि कहना जरूरी है। विचारशील भारी शब्द है। आपने आज के उम्दा सूत्रों के बीच जगह दी उसके लिये दिल से आभार।
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