सादर अभिवादन
"पाँच लिंकों का आनन्द"
प्रस्तुत करके मील का पत्थर स्थापित किया है।
आपका हार्दिक स्वागत ! अभिनन्दन !! हमारे नये मक़ाम पर !!!
नामचीन शायर मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने क्या ख़ूब कहा है-
"मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया"
आपके साथ आज ख़ुशियाँ साझा करते हुए मन आल्हादित है।
आपके सतत सहयोग,समर्थन और आशीर्वाद ने ही हमें
यह अवसर प्रदान किया है।
आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी के अनथक प्रयासों का सुखद परिणाम है आज के हज़ारवें अंक तक पहुँचने का चुनौतीभरा सफ़र। आदरणीया बहन जी के द्वारा रोपा गया एक नन्हा पौधा वटवृक्ष बनने की ओर अग्रसर है।
इस ब्लॉग की टीम के सदस्य श्रीमती यशोदा अग्रवाल ,
श्री दिग्विजय अग्रवाल , श्रीमती विभारानी श्रीवास्तव ,
श्रीमती पम्मी सिंह , श्रीमती श्वेता सिन्हा और श्री कुलदीप ठाकुर
अपनी दैनिक प्रस्तुति के साथ आपसे मुख़ातिब होते हैं।
आज "पाँच लिंकों का आनन्द" परिवार अपने सुधि पाठकों के प्रति कृतज्ञता के साथ शुक्राना अदा करता है।
आपका साथ यूँ ही बना रहे ऐसी दुआ करता है।
आइये अब कुछ बात हो साहित्यिक चिंतन की -
हमारी सामूहिक चेतना को कभी झकझोर दिया था कविवर भवानी प्रसाद मिश्र जी ने अपनी कविता "जाहिल मेरे बाने" में-
"आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य हैं क्योंकि जोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य हैं क्योंकिं आपके कपड़े स्वयं बने हैं
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं"
आज साहित्य और समाज के बीच कैसा रिश्ता है? इस मुद्दे पर हम विचार अवश्य करें जब आर्थिक समस्याओं की प्रधानता के चलते रचनाकार अपनी अंतर्दृष्टि के साथ कितना न्याय करे इस उलझन में उलझता जा रहा है......
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइये अब चर्चा करें आज की पसंदीदा रचनाओं की -
पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के इतिहास पर प्रकाश डालती एक प्रस्तुति -
श्रीमती यशोदा और कुलदीप के जूनून की हलचल
- iBlogger.in
आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी एवं आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी की पसंदीदा रचनाऐं -
स्त्री हूँ मैं
पर अबला नहीं हूँ
बंद कर दो मुझे
इस नाम से पुकारना
मुझे कमज़ोर लिखना,
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू ही जन्नत
तू खुदा है
तुझमें ही सारा जहाँ है
हाथ सिर पे जो फेरे तू
"मेरे जीवन का सार
सार.... मेरा जीवन"
आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी की पसंद की दो रचनाऐं -
सबसे पहले हरदोई के जमींदार अंग्रेजी सेना के कोपभाजन बने। एक दर्जन से अधिक क्रान्तिकारियों को खुलेआम पेड़ से लटका दिया गया। अंग्रेजों का नरसंहार जारी रहा। अन्ततः ताईबाई ने नरसंहार रोकने के लिए मई 1858 को अपने पति और पुत्र के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
राह भरी होगी, ऊँचे पत्थरों से तो क्या?
वहीं नज़र आएगी, एक छोटी सी गली।
बरसों बरस से पड़ी सूनी, बेज़ार सी,
जिसे रचा है उसने सिर्फ तेरे लिए।
आदरणीय कुलदीप ठाकुर जी की विचारणीय एवं सारगर्भित पसंद -
ममता ने आगे कहा, “ आप सभी से मैं एक ही बात कहना चाहूंगी कि क्या आपने जिस लड़की से ब्याह किया है, उसे क्या आपने राजकुमारी की तरह रखा, क्या उसे परिकथा जैसा
जीवन दिया. उसके साथ लड़ने झगड़ने में जीवन गुजारने के अलावा क्या आपने उसे वो सारी खुशिया दी, जिनकी कल्पना, उनके पिता ने आपके साथ उनकी शादी करवाते वक़्त की
थी या जैसे मेरे पिता इस वक़्त मेरे लिए कर रहे है, या दुसरे पिता अपनी बेटियों के लिए करेंगे.”
हाल में सन्नाटा छा गया था. ममता की माँ की आँखे मानो बारिश बरसा रही थी. हाल में मौजूद कई स्त्रियाँ रो रही थी, पुरुष चुप थे. शर्मा जी का सर झुक सा गया था.
ममता ने फिर कहा, “अब भी समय है, मेरे जाने के बाद या आपकी बेटियों की विदाई के बाद आप उस औरत के साथ वही व्यवहार करिए, जो आप अपनी बेटी के साथ उसके पति या
ससुराल के द्वारा होते देखना चाहते है. इससे उन औरतो को उनका खोया हुआ मान मिलेंगा, उनके पिता के चेहरों पर ख़ुशी आएँगी और आप सभी को जीने का एक नया सहारा मिलेंगा.
बस मेरी इतनी सी बात मान लीजिये, यही मेरी सच्ची विदाई होंगी.”
सुदूर जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाज मे कभी भी बलात्कार या दुष्कर्म जैसी घटनाएँ कभी भी नहीं होती हैं। हम तो सभ्य हैं, सुसंस्कृत हैं, हमारे बीच तो बलात्कारके विचार भी नहीं आने चाहिए। मगर जितने सभ्य, जितने सुसंस्कृत, उतना ज्यादा बलात्कार। आदिवासी जंगली हैं, मगर बलात्कार नहीं करते। क्या कारण होगा? कारण यह है
कि वे लोग प्रकृति के साथ जीते हैं, उनके भीतर नैतिकता द्वारा सिखाया हुआ दमन नहीं है। अब दमन की नैतिकता नहीं चलेगी। मनोविज्ञान को समझकर, प्रकृति के साथ जीकर बच्चों को पालना होगा, तब ही सुसंस्कृत और सभ्य समाज को इस बदनुमा दाग़ से निजात शायद मिल पाएगी और उस दिन के बाद ही पुरुष समाज जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों (लज्जा--कामायनी) पर गर्व कर सकेगा-
"नारी! तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत- नग- पगतल में।
पीयूष स्त्रोत-सी बहा करो,
जीवन के सुदंर समतल में।"
आदरणीया पम्मी सिंह जी अपनी पसंदानुसार चुनकर लायी हैं दो बेहतरीन लिंक -
उसके दीदार को ,अपने सच्चे प्यार को,
चाहूं पाना अपने,खोए वफ़ाए इज़हार को।
मुड़ के इक दिन फिर से ,मेरे हज़ूर आएंगे,
बागे गुलशन ज़िन्दगी के,मेरे महक जाएंगे।
सच को झूठ कह देने से
क्या सच में वह झूठ हो जाएगा ?
और तुम सच की तरफ मुड़कर सवाल करोगे ?
क्या कहेगा सच ?
सारे चश्मदीद गवाह ही थे
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी की लाजवाब पसंद का जाएज़ा लीजिये इन दो शानदार रचनाओं के ज़रिये-
ला, मेरा 'अंगूठा'
लौटा वो 'कुंडल'
चल फेंके वो कुंठा
वो 'मंडल' 'कमंडल'!
कर बुलंद हम खुदी को,
रोकेंगे भक्षण.
खुद का खुद ही हम
कर लेंगे रक्षण,
चल घटा ! ये 'आरक्षण'.
हटा ! ये 'आरक्षण'!!!
हम यूँ ही बस भले थे -
तन्हाइयों में जीते !
तुम आये किधर से राही -
ले रंग जिंदगी के ?
जीवन में वो कमी थी -
आँखों में बस नमी थी ,
पर तुम जो आये साथ --
तो हम मुस्कुरा दिए ! !
और अब मेरी पसंद के चार लिंक पेश-ए-नज़र हैं आपकी सेवा में -
"चाँद तन्हां है,आसमां तन्हां
दिल मिला है,कहाँ कहाँ तन्हां
रात देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे यह जहां तन्हां ---
चिड़िया चली शहर से दूर !....मीना शर्मा
नहीं सुरक्षित वन-उपवन,
देखूँ अब पर्वत प्रांगण,
चिड़िया पहुँची पर्वत पर,
वहाँ चल रहे बुलडोजर !!!
घूम रहे थे नर - नारी,
करते अपनी मनमानी !
भटकी इधर-उधर बेचारी
सुन लो उसकी करूण कहानी !
तो क्या हुआ जो होठ पे ताला लगा लिया
आँखों से आपके तो कई राज़ खुल गए
अल्जाइमर है या के तकाज़ा है उम्र का
कुछ ख़त हमारी याद के पन्नों से धुल गए
चलते-चलते आदरणीय राही जी की संदेशपरक प्रस्तुति,
एक डंडा सुरक्षा के लिए दूसरा हाँकने के लिए -
मीम (MEME).....राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
और अब बात हमारे नवीनतम प्रयास "हम-क़दम" की।
गत 15 जनवरी 2018 से आरम्भ हुआ यह सफ़र आपकी उत्साहपूर्ण सृजनात्मक भागीदारी के चलते अपने सोमवारीय अंक के साथ सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है।
कल के अंक में कुछ विशेष लेकर आ रही हैं
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी।
आज बस इतना ही।
मिलते हैं फिर अगले गुरूवार।
सादर।
रवीन्द्र सिंह यादव
आभार भाई रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ..
आभार
शुभ प्रभात
इस माकूल मुकाम को मुकम्मल करने का मुबारक!!!!
जवाब देंहटाएंवाह!!!बहुत ही शानदार प्रस्तुति रविन्द्र जी ....ये कारवाँ बस यूँ ही चलता रहे ..शुभेच्छा .।
जवाब देंहटाएंहलचल के हजारवें अंक की यह प्रस्तुति बहुत मन भाई ! इस कीर्तमान को स्थापित कर लेने के लिए हलचल की समस्त टीम का हार्दिक अभिनन्दन एवं सभीको बहुत बहुत बधाई ! आज की सभी रचनाएं अत्यंत सुन्दर ! सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंक्या बात है। जैसा सोचा था वही कलेवर।हलचल के सभी चर्चाकारों, पाठकों को बधाई और शुभकामनाएं। आओ अब चलें दो हजार की ओर।
जवाब देंहटाएंआमीन
हटाएंसादर
हजारवें अंक की बहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई और शुभकामनाएं
शुभप्रभात.....
जवाब देंहटाएंहजारवें अंक की बहुत ही शानदार प्रस्तुति पेश की है आपने......
आदरणीय रविंद्र जी......
हम चलते रहेंगे,
आप साथ देते रहिये.....
कांरवा चलता रहेगा.....
रवींद्र जी, आभार और आज आपको "पांच लिंकों का आनंद" के 1000 वें चर्चा को प्रस्तुत करने मौका मिला उसके लिए बधाई। मैं विशेषकर यशोदा बहन और कुलदीप ठाकुर जी के जज़्बे को सलाम करता हूँ कि इन दोनों ने अपनी लेखनी से अपनी शारीरिक तकलीफों एवं कमियों के बारे में किसी भी पाठक को महसूस नहीं होने दिया। सौभाग्य से मैं "पांच लिंकों का आनंद" से जुड़ा और पूरे टीम ने मेरी कमियों को नज़र अंदाज कर सदा प्रोत्साहित किया है इसके लिए पूरे टीम का मैं शुक्रगुजार हूँ। "पांच लिंकों का आनंद" का नया कलेवर मनमोहक है। इस चर्चा से जुडे सभी सदस्य ( पाठक, रचनाकार एवं सहयोगी टीम ) को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंशब्दों की सराहना हर कमी और अक्षमता पर लेप रख देती है।
हटाएंयशोदा दी, हर सफर में हम सब साथ-साथ हैं बस स्नेहाशीष बनाये रखिए।
बहते पानी में ही लहरों की हलचल होती है ।
जवाब देंहटाएंसंवाद की लहरें उठती रहें । नदिया बहती रहे ।
मुबारकबाद !
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पांच अंकों तक पहुँचे बस इतनी सी शुभकामना है। नन्हा सा पौधा पुष्पित-पल्लवित होकर आज एक वृक्ष के रूप में अपनी जड़ें जमा चुका है।
माननीय रविन्द्र जी हृदय से आभार कि आपने मुझे इस ऐतिहासिक अंक में स्थान दिया।
लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ उत्क्रष्ट हैं
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आदरणीय यशोदा जी और आदरणीय रवीन्द्र जी और आप सभी को धन्यवाद
पाँच लिंको के आनंद को उसकी सफलता की बधाई और शुभकामनाएँ
आभार सुप्रभात
Proud of Paanch link ki tem , especially leader Yashodha ji Prrthn yeh blogorr nveen kirtiman bnaye Aap ke aur pathko ke beech shbdo ka antral ik mehkati hui si saans hota hai . ek udta hua intezar sa hota he , evm kitna khubsoorat ho jta he jub naya nlog mil jata hi Ishwer ki kripa se oonchi udan bharti jao BLESSINGS CREATIVE Klakar Yashoda Agarwal Didi
जवाब देंहटाएंलाजवाब ऐतिहासिक प्रस्तुति ... ऐतिहासिक दिन पे ...
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स ज़ोरदार ...
आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए ...
आदरणीय रवीन्द्र जी -- नयी साज - सज्जा के साथ अनमोल जानकारियां समेटे आज का अंक बहुत ही ज्ञान वर्धक भी है और विस्मय भरा भी | आदरनीय यशोदा जी और अन्य संस्थापक सदस्यों के बारे में जानकर बहुत ही आश्चर्य भी हुआ और उन के हौसले पर गर्व भी हुआ | हौसलों से भरे इन्सान के साथ कारवां बनते देर नहीं लगती | नमन और आभार जिन्होंने साहित्य पथ के पथिकों के लिए सरल मार्ग तैयार किया और उनकी रचनाओं को बड़े पाठक वर्ग तक पहुंचाया | पाठकों में पढने का जज्बा तो लिखने वाले को प्रोत्साहित कर उनका मनोबल ऊँचा किया | कमियों को दरकिनार कर रचनाकारों के गुणों में चार चाँद लगाये , बिना कोई भेदभाव किये | अपरिचितों को उदारता से अपनाया | बस आभार और अनंत शुभकामनायें | ये मंच सजा रहे - इसका कारवां विस्तार पाए और इसकी बदौलत साहित्य जगत शब्द - सम्पदा से मालामाल रहे | सभी संस्थापक सदस्यों को सादर , सस्नेह नमन और और उन सहयोगियों का भी सहयोग सराहनीय है जिन्होंने अपने अतुलनीय सहयोग और नये चिंतन से इस यात्रा को और रोमांचक बनाया उनका भी आभार | मंच से जुड़े सभी सहयोगी रचनाकारों और साहित्य प्रेमियों को शुभकामनाये और हार्दिक बधाई | यूँही साथ - साथ नई मंजिलों की और अग्रसर हों | इस अंक की प्रशंसनीय प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंमुझे इस खास अंक का हिस्सा बनाने के लिए विशेष आभार |
हटाएंआदरणीय रवींद्र जी द्वारा प्रस्तुत आज का विशेष अंक बेहद शानदार बन गया है। अतीत और वर्तमान के सुंदर मिश्रण के साथ सारगर्भित संदेश और एक सार्थक चिंतन भी। चर्चाकारों की पसंद की रचनाओं ने चार चाँद लगाया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सारी शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुये आपका भी तहेदिल से.धन्यवाद करते है।
लिंकों का यह सुंदर सफ़र चलता रहे कभी न खत्म होने के लिए यही कामना करते हैं।
आभार
सादर।
हलचल का हजारवाँ अंक विशेष विशेषांक है। सारी टीम की लगन, मेहनत, कार्यशैली, जोश और जुनून का प्रतिफल है ये मील का पत्थर, जो मुझ जैसे कितने ही और नए रचनाकारों का पथ प्रशस्त करता रहेगा....
जवाब देंहटाएंआप सभी के जज़्बे को मेरा सलाम !!!
आज की विशेष प्रस्तुति में पढ़ने के लिए इतनी सारी सुंदर, रोचक, प्रेरक, ज्ञानवर्धक रचनाएँ मिलीं जिसके लिए आप सभी चर्चाकारों का हृदयतल से आभार । बेजोड़,यादगार अंक में मेरी रचना को शामिल करने हेतु आदरणीय रवींद्रजी का सादर धन्यवाद। इसी तरह साथ साथ चलते रहें, सफलता के और ऊँचे सोपान चढ़ने बाकी हैं अभी....शिखर हमारा ही होगा !!!!!
शुभकामनाओं के साथ ।
आदरणीय रविंद्र जी की ये 1000वीं प्रस्तुति मील का पत्थर है सुंदर सौहार्द पूर्ण बातचीत करते कैसे सरलता से आगे बढते कैसे अनुपम धरोहर को सरसता से सहेज कर पेश किया है सब कुछ तारिफे काबिल है पर हम निशब्द हैं उन्हें आभार प्रकट करने मे । अविश्वमरणीय शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी वरिष्ठ संयोजकों को सादर आभार एंव बधाई।
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंचर्चाकारों की अभूतपूर्व उर्जा से अभिभूत हूँ । सौभाग्य है कि आपसे जुड़ने का मौका मिला । इस विशेष अंक में स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।पाँच लिंको के आनंद को सफलता की बधाई....
क़दम दर क़दम जुड़ते जुड़ते
यह कारवाँ बढ़ता ही जाए।
सार्थक हो हर कदम इतना
हर कदम इतिहास बन जाए।
सादर ।
शानदार,लाजवाब प्रस्तुतिकरण.....
जवाब देंहटाएं1000वें विशेषांक की विशेष प्रस्तुति के लिए आदरणीय रविन्द्र जी एवं टीम के सभी चर्चाकारों को ढ़ेरों शुभकामनाएं एवं बधाइयां....
चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं...
विशेष दिन था विशेष अनुभूति भी बटोर लिए हम सभी
जवाब देंहटाएंनन्हें नन्हें पग से शिखर ओर चले
कल नहीं उपस्थित हो सकी अफसोस रह गया
दिमागी तौर पर थी लेकिन
हलचल के हजारवें अंक की यह प्रस्तुति अपने आप में बेमिसाल और अद्भुत .....,हलचल के सृजनकर्ताओं को, सभी चर्चाकारों को हार्दिक बधाइयाँ.
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