जैसा कि आप सभी को विदित है कि.....
ये हमारा प्यारा ब्लॉग "पांच लिंकों का आनंद" 1000 अंक पूरे करने वाला है.....
आज इसके अनुसरणकर्ताओं की संखया (175) है....
आप सब के सहयोग से कल हम-क़दम का तेरहवाँ पड़ाव भी पार कर लिया है.....
279,000 से अधिक बार ये ब्लॉग देखा जा चुका है.....
आज हमारे पास सातों दिनों के लिये सात चर्चाकार है.....
मैं आभारी हूं आप सब पाठकों का.....
जो एक परिवार की तरह हम से बंधे हुए हैं.....
आज व कल के अंक में स्मरण करेंगे हम आप सब पाठकों का,
आप की लिखी कृतियों द्वारा.....
क्योंकि आप सब इस लंबे सफर में हमारे साथ जुड़े रहे.....
सूची काफी लंबी है....संभव है कोई नाम छूट भी जाएं.....
वो हमारी भूल समझकर हमे क्षमा करें....
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर!
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।...
-शिवमंगल सिंह सुमन
प्रतीक्षा में हूँ
उन सर्द
हवाओं की
जो मेरी
अन्तरज्वाला
को शांत करें ।
प्रतीक्षा में हूँ
उन गरम
फिजाओं की
जो मेरे
ठंडेपन को
कुछ गरम करें ।
सदियों से
मेरी गर्मी
मेरी सर्दी
से राजनीति
कर रही है ।
पांच लिंकों के आनंद का कोई ऐसा अंक नहीं होगा.....
जिस में आप की उपस्थिति न हो....
आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी...
जो की हमारे इस ब्लॉग के मार्गदर्शक भी है.....
हम इन के इस अटूट सहयोग के लिये सदा आभारी रहेंगे....
क्योंकि पता है अगर विफलता हाथ लगे
तो प्रेरणा भी तुझसे ही पाया करता हूँ।
माँ तेरे ममता के आँचल में
अपने को सही और दुनिया को गलत पाया करता हूँ
माँ तेरे ममता के आँचल मे
सुकून मै पाया करता हूँ ।
आदरणीय विरम सिंह जी.....
एक अच्छे पाठक के साथ साथ .....
चर्चाकार भी रहे हैं.....
हम उमीद करते हैं की....
अपनी शिक्षा संपूर्ण होने पर आप पुनः इस ब्लॉग पर चर्चा करेंगे......
जो कुछ नहीं जानता वह किसी बात में संदेह नहीं करता है।
जो अधिक जानता है वह काम पर भी विश्वास कर लेता है ।।
जो जल्दी विश्वास कर लेता है वह बाद में पछताता है ।
समझदार आदमी हर मामले में समझदार नहीं होता है ।।
कमजोर काठ को अक्सर कीड़ा जल्दी खा जाता है ।
दरिया जिधर बह निकले वही उसका रास्ता होता है ।।
आदरणीय कविता रावत जी की भारतीय पर्वों पर रचनाओं से
पर्व विशेष की चर्चा में उस पर्व के बारे में पाठकों को संपूर्ण जानकारी मिल जाती है।
हमारे इस ब्लॉग पर आप की नियमित उपस्थिति के लिये आप का बहुत बहुत आभार....
आज पुरुष केंद्रित समाज ने अपने इस महत्वपूर्ण हिस्से को इतना चौंधिया दिया है कि कुछेक को छोड़, वे अपने प्रति होते अन्याय, उपेक्षा को न कभी देख पाती हैं और न कभी महसूस ही कर पाती हैं। दोष उनका भी नहीं होता, आबादी का दूसरा हिस्सा इतना कुटिल है कि वह सब अपनी इच्छानुसार करता और करवाता है। फिर उपर से विडंबना यह कि वह एहसास भी नहीं होने देता कि तुम चाहे कितना भी चीख-चिल्ला लो, हम तुम्हें उतना ही देगें जितना हम चाहेंगे। जरूरत है महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की....और यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो पड़ेगा ही.......!
कुछ अलग सा लिखने वाले....आदरणीय गगन शर्मा जी का भी मैं आभारी हूं.....
धर्म युद्ध तो लड़ना होगा
पाप धरा का हरना होगा
आज हुवा नारायणी उदघोष
जाग तूं और जगा जन मन मे जोश ।
सुंदर लेखनी की प्रतिभा आदरणीय कुसुम कोठारी जी का भी आभार व्यक्त करता हूं....
पंखुरी खोलते फूलों जैसे,
अनकहे, अनसुने बोलों जैसे,
रेत की तरहा फिसलते लम्हे,
बंद हैं वक्त के पिटारे में !
रेशमी सलवटों को छूते हुए,
जैसे खुशबू की फसल बोते हुए,
मिलती नज़रों से सिहरते लम्हे,
बंद हैं वक्त के पिटारे में !
ये भाव है....आदरणीय मीना शर्मा जी का......
हम आप के भी आभारी हैं....हमारे साथ साथ चलने के लिये....
शायद अब चेहरे से ही , हम पढ़े-लिखे दिखते हैं
तभी तो हमको मालिक , काम देने में झिझकते हैं .....
कहते ; "दिखते हो पढ़े-लिखे, कोई अच्छा सा काम करो !
ऊँचे पद को सम्भालो,देश का ऊँचा नाम करो" !!!
कैसे उनको समझाएं? हम सामान्य जाति के ठहरे,....
देश के सारे पदोंं पर तो अब, हैं आरक्षण के पहरे.!!!
अपनी इस नयी सोच.....के साथ भविष्य में भी हमारे इस ब्लॉग के साथ स्नेह बनाए रखें.....
हम आदरणीय सुधा देवराणी जी के भी बहुत आभारी हैं.....
कोई आहट आज भी दस्तक देती है
जब भी फुर्सत होती है वीरानों मैं ।
अन्दर अन्दर धीरे धीरे कुछ दरक रहा
हर लम्हा खटका करता अनजाने मैं ।
इस लाजवाब रचना की रचियता.....
आदरणीय डॉ. इन्दिरा जी के भी हम बहुत आभारी है.....
✍️आवेदन की अंतिम तारीख
लगी कतारें लंबी लंबी
मै भी उनमे जूझ रहा हूं
बेमतलब् सा!
ना कंही पंहुचा,
ना कंही जाना
फ़िर भी मीलों दौड़ रहा हूं
बेमतलन सा !
भूख लगी तो दाल पकाइ
भात पकाया
आलू संग संग खुद को भी मै;
छील रहा हूं
मैं आभार व्यक्त करता हूं....आदरणीय अपर्णा वाजपेई जी का.....
जो हमारा प्रत्येक अंक नियमित पढ़ते हैं....
और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में बसन्त का उतरना।
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज-रोज एक अनन्त शव
ले जाते हैं कन्धे
अन्धेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ
जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर शब्दों से मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश :) करने वाले आदरणीय संजय भाई भास्कर.....जो पहले हमारे चर्चाकार व हमारे नियमित पाठक हैं, का भी में आभार व्यक्त करता हूं.....
जो गिनते थे मेरी रोटी के टुकड़े
मेरे कपड़ों के एहसान और
खिदमत में गुजारी ज़िंदगी के बदले में
दिया तुम्हारा नाम
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर....
आदरणीय नीतू ठाकुर जी....आप का बहुत बहुत आभार.....इस सफर में हमारे साथ चलते रहिये.....
देखती हूँ झरोखे से उन्मुक्त गगन ।
करती हूँ उसका खूब जतन
एक ओर टिमटिमाता दिया ,
भीनी सी खुशबू स्नेह भरी ।
वो गमलों से आती मिट्टी की सौंधास,
खिले हुए हैं फूल गुलाब ,मोगरा ,जूही ,
वो बेल चमेली की है मेरी सहेली ,
वो फूल सूरजमुखी का
दिलाता है अहसास सूर्योदय का
ये अभिव्यक्ति है.....आदरणीय शुभा जी की...., के भी हम बहुत आभारी हैं.....
चाहत नहीं है पास आने को तेरे,
चाहत नहीं पा जाने को तुझको,
इक आस में ज़िंदगी गुज़ारता हूँ,
कभी हँस कर, बिहँस कर,
खिलखिलाते हुए,
मुस्कुरा कर एक नजर तो देखेगा मुझको,
चाँद, तू गैर है, ये जानता हूँ...।
ले लगन ओर विश्वास साथ
हम आभारी हैं.....आदरणीय अमित निश्छल जी
साहस अभी भी बाकी है
आशा की किरण देती दिखाई
सफल भी होना चाहां
पर इतना अवश्य जान गया हूँ
है दुनिया एक छलावा
वह किसी की नहीं होती
जब भी बुरा समय आये
वह साथ नहीं देती |
हम आभारी हैं.....आदरणीय आशा सक्सेना जी
तुझको तेरे अपनों का वास्ता
जो हुये न अपने उनसे क्या वास्ता
भीड़ या महफ़िल से क्या वास्ता
जो अकेला न तय कर सके रास्ता
धूप और छाँव का कब हुआ है मिलन
वैसे भी अब किस्मत पे अपनी हैं न आस्था
शिक्षा अगर सही मिलती तो भ्रष्टाचार नहीं होता।
नेताओं, अधिकारीगण का ये व्यवहार नहीं होता।
भ्रूण के अन्दर कोई कन्या मारी कभी नहीं जाती।
जलती हालत में मुर्दाघर नारी कभी नहीं जाती।
आदरणीय शकुन्तला साकु को भी हमें सहयोग देने के लिये आभार.....
जो टूटे को जोड़ दे
और जुड़े को पल में तोड़ दे
ऐसी दोधारी तलवार सा
धारदार विश्वास
कभी विश्वास में होता था
विश्व का वास
आज---
विश्वास में हो रहा
विष का वास
आदरणीय पूजा जी को भी हमें सहयोग देने के लिये आभार.....
ये कशिश, ये खुमारी और ये दयार
कानों में चुपके से कुछ कहती फिर
सर्रर् ... से बह जाती ये मतवाली बयार
तुम्हारी गर्म साँसों की ये मदमस्त खुशबू
मुझे बेखुद- सी किए जाए..
मेरी जुल्फों से खेलती ये उंगलियाँ तुम्हारी
तुम्हारी मोहब्बत में दरकती ये साँसे हमारी
बस.. मैं, और तुम, और उफ्फ...
इस खूबसूरत तन्हाई का ये आलम
डर है कहीं हमारी जान ही न ले जाए...
आदरणीय सुधा सिंह का भी मैं पांच लिंकों का आनंद के साथ चलने के लिये आभार व्यक्त करता हूं....
पत्तों की खड़खड़ाहट के
सन्नाटे में बदल जाने से
तेरे कहीं रुक जाने की
बदख्याली का डर रहता था।
और आज जब आँखें खोल
भूलना चाहती हूँ तुझको
तेरी यादों के ठहर जाने से
खलल पड़ता है।
आदरणीय पल्लवी जी मैं पांच लिंकों का आनंद के साथ चलने के लिये आभार व्यक्त करता हूं....
गम मे हँसने वालो को कभी रुलाया नही जाता !
लहरों से पानी को हटाया नही जाता !
होने वाले हो जाते हैं ख़ुद ही दिल से अपने !
किसी को कहकर अपना बनाया नही जाता !!
आदरणीय सवाई सिंह राजपुरोहित जी का भी आभार.....
थी नींद कैद, आंसुओं की ज़द में रात भर
आँखों में चंद ख़्वाब बेक़रार बहुत थे
झुलसे मेरी वफ़ा के पांव आख़िरश नदीश
या रब तेरे यक़ीन में शरार बहुत थे
आदरणीय लोकेश नदीश जी का भी आभार.....
सत्य, अहिंसा और धर्म की अन्तिम पौधें,
नीलामी के लिए धरा पर, बिछी हुई थीं।
बोली खातिर,
नेता, अफ़सर औ व्यापारी, तने खड़े थे।
सबसे ऊँची कीमत बोली,
एक उभरते जननायक ने।
आदरणीय गोपेश जसवाल का भी आभार व्यक्त करता हूं....
यहां से आगे......
कल के अंक में.....जारी रहेगा...........
..................................................
अब बारी है हम-क़दम की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम चौदहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: डर ::::
:::: उदाहरण ::::
यहाँ हर व्यक्ति है डर की कहानी
बड़ी उलझी है अन्तर की कहानी
शिलालेखों को पढ़ना सीख पहले
तभी समझेगा पत्थर की कहनी
..........................................
आप अपनी रचना शनिवार 14 अप्रैल 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 16 अपैल 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
धन्यवाद।
शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक संयोजन
शुभकामनाएँ
सादर
शानदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर रचनाओ का संकलन ।
"पाँच लिंको का आनंद" के साथ तो दिल का नाता है जो कभी अलग नही हो सकता ।
बस अपनी पढाई लिखाई के कारण नियमित नही आ पाता हू ।
सुन्दर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक व् सहेजा जाने योग्य अंक। एक से रचनाओं से रूबरू करवाया भाई कुलदीप जी ने। मेरी रचना को भी स्थान देने के बहुत आभारी हूँ। हलचल का कारवां यूं ही बढ़ता रहे और उसके कदम नित नयी ऊंचाइयों को छुएं इसी कामना के साथ असीम बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही खूबसूरत ,भिन्न-भिन्न रंगों और खुशबुओं के फूलों को एक सुंदर माला में पिरोया है आज के अंक को आदरणीय कुलदीप जी नेंं ...मेरी रचना को भी इस माला मेंं जुड़ने का सौभाग्य मिला ,हृदय से आभार ....।देर से ही सही मुझे भी इस कारवाँ मेंं जुड़ने की बहुत खुशी है ..ये कारवाँ बस यूँ ही चलता रहे ...।
जवाब देंहटाएंअतुल्य आभार कुलदीप जी और सखी यशोदा जी का ...इतने खूबसूरत गुणी जनों के काव्य गुच्छ मैं मेरे काव्य को स्थान दिया हृदय से आभारी हूँ ! 🙏
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक संयोजन...स्थान देने के बहुत आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएं998 वें अंक मे कुलदीप जी के संयोजन हेतू सराहना के लिये कोई शब्द नही है मेरे पास हर पुराने नये रचनाकार को ससम्मान प्रस्तुत करना और ये आभास दिलाना कि इस महा सृजन के वो सक्रिय सापेक्ष हिस्से दार हैं एक सुहृदय विशाल व्यक्तित्व ही ऐसा
जवाब देंहटाएंकर सकता है।
साधुवाद!!
सभी सह रचनाकारों को आह्वान है कि सदा ब्लॉग की गरिमा और उन्नति मे यथा योग्य तत्पर रहें सभी संयोजकों को नमन।
अभिनव अभिराम प्रस्तुति।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु अतुल्य आभार कुलदीप जी और यशोदा जी का..."पाँच लिंको का आनंद" के साथ तो दिल का नाता है जो कभी अलग नही हो सकता ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण एवं बहुत ही उम्दा लिंक संकलन...मेरे ब्लॉग के नॉटिफिकेशन में गड़बड़ी के कारण मुझे पता नहीं था कि आज के विशेषांक मेरी रचना भी सम्मिलित है...देखकर कुछ अलग ही खुशी का एहसास हुआ....मेरी रचना को स्थान देने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार....
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुलदीप जी का बहुत-बहुत आभार। हमारे प्रिय पाठकों का धन्यवाद तो सबसे पहले है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन,सराहनीय रचनाओं का शानदार अंक।
धन्यवाद
सादर।
आदरणीय कुलदीप जी बहुत बहुत ही सुंदर संकलन प्रस्तुत किया है आपने
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल किया आपने बहुत धन्यवाद
खुद ही के मार्ग के दर्शन नहीं होते हैं कुलदीप जी। इतना भारी सम्मान को सम्भालना भी मुश्किल है। आभारी हूँ उस चीज के लिये जिस लायक नहीं हूँ। दूर से बहुत सी चीजें धुँधली नजर आती हैं सच पास जाकर ही पता चल पाता है। फिर भी अभिभूत हूँ आप सभी के स्नेह से। दो चार लाईने यहीं बन गयी शायद कुछ समझ में आये
जवाब देंहटाएंदोस्त
गली मुहल्ले के
शहर के लोग
पूछते हैं अक्सर
ये 'उलूक' क्या बला है
किस लिये बकवासों
को इक्ट्ठा कर
एक जगह पर
ये दरबार खोला है
पता नहीं कौन और
किस तरह के लोग होते हैं
जो समझ लेते हैं कुछ भी
समझदारों की समझ में
नहीं आता ऐसा कुछ भी
ऐसी ही कुछ उलझी हुई
लकीरों का लगाया एक मेला है।
पुन: आभार।
आदरणीय कुलदीप जी ------सुंदर भावपूर्ण भूमिका के साथ आज अंक भी बहुत भावपूर्ण हो गया है | ''सुमन '' जी की कालजयी पंक्तियाँ पढ़कर बहुत मन भावुक हो गया | हर समय की अपनी खूबी होती है और उस दिव्य समय में नये लोगों का साथ चलना बहुत ख़ुशी देता है | ब्लॉग जगत से जुड़कर हर मन यही पंक्तियाँ दोहराता होगा | पांच लिंकों के विस्तार से साहित्य प्रेमियों की सुंदर , स्नेहिल कम्युनिटी तैयार हुई है | इस से जुड़ना हर रचनाकार का सौभाग्य है और इसके लिंकों का हिस्सा बनना परम सौभाग्य | मुझे भी पिछली जून से इससे जुड़कर अनेक लिंकों से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | उन सभी को नमन जिन्होंने किसी ना किसी रूप में मुझे और मेरे जैसे नव आंगतुकों को प्रोत्साहन दिया | आदरणीय सुशील की पंक्तियाँ ह्रदय तल की गहराइयों से उमड़े उदगार हैं | वे लोग कौन हैं जो उलूक को समझते है जो समझ लेते हैं उस के प्रतिउत्तर में दोहराना चाहूंगी कि यदि उलूक दर्शन के रूप में बकवास का दरबार ना सजता तो साहित्य जगत एक अनोखे दर्शन से वंचित रह जाता | आज के सभी लिंकों का अवलोकन किया | सभी लिंक सार्थक हैं हमेशा की तरह | आज के सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाये | और सुंदर लिंक संयोजन के लिए आपका आभार और आदरणीय सुशील का भी सादर आभार |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही श्रेष्ठ और गरिमामय मंच है "पाँच लिंकों का आनंद"... जब पहली बार अपनी रचना को यहाँ पाया था तब तुरंत अपने मार्गदर्शक और अपनी रचनाओं के पहले पाठक आदरणीय रंगराज अयंगर जी को मैसेज किया था -
जवाब देंहटाएं"सर मेरी रचना आज पाँच लिंकों में आई है"
और उन्होंने आशीर्वचनों की झड़ी लगा दी थी.....
तब से आज तक मेरी बहुत सी रचनाओं को इस गौरव की प्राप्ति हुई....मैं इसे अपना सौभाग्य ही समझती हूँ कि आप सबने मुझे अपने पथ का साथी माना। तहेदिल से आप सभी चर्चाकारों का शुक्रिया....
स्नेह बनाए रखें । सादर ।
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति । हमकदम परिवार का हिस्सा बनाकर आपने रचनात्मकता लिए जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए हृदय से आभार । सभी रचनाकार बंधुओं को हमकदम के लिए कलम सतत् चलाते रहने की शुभकामनाएँ । चर्चाकारों का आभार ।
सादर ।
बहुत-बहुत शुक्रिया मेरी पोस्ट को यहां शामिल करने के लिए पहली बार आया हूं आपके ब्लॉग पांच लिंकों आनंद में.....
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