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गुरुवार, 7 मार्च 2019

1329...रेत का दामन थाम बस गए हैं आंखों में....

सादर अभिवादन। 

है 
दौर 
अनोखा 
अविश्वास 
घनेरा तम 
रचा इतिहास 
हैं चीख़ते सबूत।

ले 
भागा 
बन्दर 
हल्दी-गाँठ 
कहता फिरे 
अब हूँ पंसारी 
  है नियति हमारी?  
-रवीन्द्र    

लीजिए पेश है आज के अंक में आपकी सेवा में कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
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उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी 
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया 

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई 
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया 


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जितनी कामना की पूर्ति होती है, उतनी यह अधिक बढ़ती है। कामना अभाव की स्थिति का अनुभव कराती है। जहां अभाव है, वहीं प्रतिकूलता है और प्रतिकूलता ही दुख है। कामना कभी पूर्ण होती ही नहीं, इसलिए मनुष्य कभी दुख से मुक्त हो ही नहीं सकता। इसलिए साधक को इन काम-क्रोध के मूल राग-द्वेष का त्याग करना है.




"मौके की नज़ाकत को तुम नहीं समझ रहे हो नामुराद... हम इसको दामाद की तरह वापस नहीं जाने दिए तो हम मिट जाएंगे... दुश्मन का हम कितना नष्ट कर सकते हैं ? उसके देश का एक चौथाई हिस्सा... उतने में ही हम नेस्तनाबूद हो जाएंगे... जिस देश के हम गुलाम रहें... आजादी के बाद भी उसीके मुंहताज हैं.. उसकी मध्यस्थता मान हम अपने 
वजूद को तो बचा लें..

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रेत का दामन थाम
बस गए हैं आंखों में,
लौट आने की उम्मीद में,
गायब हो रही हैं पगडंडियां,
उदास हैं अम्मी और अब्बू!


मेरी फ़ोटो

तो वर्तनी बदलने के बावजूद जब हम उसका उच्चारण पहले ही की तरह करते हैं तो ध्वनि तो वही ना रहती है जो पहले थी ! तो फर्क क्या पड़ा ?जिसको साधने के लिए इतना द्रव्य खर्च कर लिखावट बदली वह बदलाव क्या उसको उतनी दूर से नजर भी आएगा ? उस तक यदि कुछ पहुंचा भी तो वह नाम की पहले जैसी ध्वनि ही होगी !

चलते-चलते पढ़िए रिश्तों की गर्माहट और भावों से भरा एक लम्बा ख़त- 


 माँ के इजाजत देने के बाद मशीन की टिक-टिक आहिस्ता आहिस्ता कम होने लगी और आख़िरकार रात 8 बजे के करीब आप उस सड़े गले शरीर का साथ छोड़ उस परमधाम की ओर रवाना हो गये और छोड़ गये अपना ढेर सारा प्यार ,आशीर्वाद और यादें। वैसे तो आप की बहुत सारी बाते मुझे अच्छी नहीं लगती थी,आप का अपने पराये सब से लगाव  ,सब पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना ,आपकी क्षमाशीलता ,अपने बच्चो को बेइंतहा प्यार और भरोसा करना,मैं जानती थी आप की ये सब बाते एक दिन हमे बहुत रुलायेगी ,इसीलिए मुझे पसंद नहीं थी। माँ से तो प्यार के हद तक प्यार करना ,आप तो हमेशा कहते थे -माला जी मैं आप को छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा ,पर  वादा कीजिये हर जन्म में आप मेरी ही रहेगी।" माँ भी तो गुस्सा होती थी आप के इन सब बातो से। अब देखिये कहती है न आपको " धोखेबाज़ " ,कहे भी क्यों नहीं ,दो महीने में आनन -फानन चलते बने ,सोचने समझने का मौका ही नहीं दिया। 

हम-क़दम का नया विषय

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    मौके की नज़ाकत
    को देखते हुए शानदार
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार

    है दौर अनोखा
    अविश्वास का घना तम
    रचा इतिहास
    वे माँगते सबूत
    👆 सात पँक्तियों तब पूरी होंगी जब स्वतंत्र होंगी... सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमन दीदी।
      मार्गदर्शन के लिये सादर आभार।

      हटाएं
  3. बहुत शानदार प्रस्तुति शानदार संकलन के साथ सभी रचनाकारों को बधाई।
    सभी रचनाऐं बहुत गहरी अप्रतिम।
    भुमिका में वर्ण पिरामिड बहुत ही आकर्षक।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. वर्ण पिरामिडों से सजी प्रभावी भूमिका के साथ सुन्दर लिंक संयोजन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बन्दर हल्दी-गाँठ लेकर भागने पर अगर पंसारी बन गया तो उसे पुड़िया में सामान रखकर बेचने के लिए कागज़ भी तो चाहिए था. इसलिए वो बेचारा कुछ कागज़ लेकर भी भागा है. और ये कमबख्त देशद्रोही, उन कागजों की चोरी की तोहमत हमारे देशभक्तों पर लगा रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमन सर।

      ज्वलंत सन्दर्भों को जोड़कर आपने ने नन्हें पिरामिड को पर्वत बना दिया है।

      हटाएं
  6. अविश्वास के इस वातावरण में भी साहित्य के द्वारा आशा के दीप जलाती हलचल की सुंदर प्रस्तुति ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. फिर से एक बेहतरीन अंक पढ़ने को मिला ,मेरी रचना को मान देने के लिए दिल से शुक्रिया ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  8. रवीन्द्र जी, हार्दिक आभार ! पंचामृत में शामिल करने के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा पठनीय लिंक संकलन...।

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार संकलन के साथ वर्ण पिरामिड..
    बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन अंक
    बहुत ही सुंदर वर्ण पिरामिड
    जावेद जी रचना संकलित करने के लिए आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. लाजवाब ,शानदार प्रस्तुति ,पढ़कर खुशी मिली

    जवाब देंहटाएं

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