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मंगलवार, 12 सितंबर 2023

3878....सर्वे भवन्तु सुखिनः

 मंगलवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
इतिहास साक्षी है हम उन्हीं को महान मानकर सम्मान देते हैं और.पूजते हैं जिन्होंने भावनाओं से ऊपर उठकर कर्म को सर्वोपरि माना।
महर्षि वेदव्यास ने तो स्पष्ट कहा कि 'यह धरती हमारे कर्मों की भूमि है।' कर्तव्य मनुष्य के संबंधों और रिश्तों से ऊपर होता है।
परंतु मनुष्य का जीवन भावनाओं के स्निग्ध स्पर्शों से 
संचालित होता है। भावनाएँ ही हैं जो सामाजिक रिश्तों का कारक है,जीवन के सुख-दुख की मूल धुरी भावनाएँ ही हैं।
भावनाओं के प्रवाह में बुद्धि या तर्क का कोई स्थान नहीं होता।
भावनाओं के संसार में जन्मे अनेक रगों में सबसे सुंदर है
शब्दों की कलाकारी का रंग,जो मन को उसकी कोमलता और स्पंदन का एहसास दिलाता है।

आइये आज की रचनाओं का आस्वाद करें-

प्रवाहमान

जाएगा बंद ख़्वाबों का आसमान,
पुनः लगेंगे नदी किनारे मेले,
बूढ़े बरगद की शाखों में
फिर सजेंगे नए घरौंदे,
ऋतु चक्र कभी
रुकता नहीं,
किसी
के रहने या न रहने से कारोबार ए
दुनिया थमता नहीं




काम निकाल कर मिलने के जो बहाने बना रहे हैं
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।
नजरें चुरा रहे हैं वो जिस बेचैनी को छिपा रहे हैं 
कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।



तज दे सारे दुख, भय, विभ्रम 

मुक्त गगन में विहरे खग सा, 

मन को यह निर्णय करना है 

जंजीरों से बंधा रहे या ! 


जहाँ न कोई दूजा, केवल 

धारा इक विश्वास की बहे,

सुरति निरंतर वहीं हृदय की 

कल-कल स्वर में सहज ही कहे !


प्रेम



पर प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई वो लकीर है 
जो मेरे अंतिम यात्रा तक रहेगी 
और दाह की भूमि तक आकर
मेरे देह के साथ मिट जायेगी
और हवा के तरंगों पर सवार हो
आसमानी बादल बनकर 

किसी तुलसी के हृदय में बूंद बन समा जाएगी 


और चलते-चलते
पुस्तक समीक्षा

स्वतंत्रता एक बाह्य तंत्र का अपना होना है, जबकि स्वाधीनता  अधिभौतिक, अधिदैविक और आध्यात्मिक स्तर पर किसी भी बाह्य सत्ता से पूर्ण मुक्त होकर हमारे उस आत्मिक स्वरूप को पा लेना है जिसका विस्तार सूक्ष्म से विराट और व्यष्टि से समष्टि की ओर जाता है।  इसीलिए, भ्रातृत्व-भाव से भरी  भारत-भूमि में समता और समानता के करुण भाव की सुधा से सिंचित लोकतंत्र के कल्पतरु का फलना-फूलना स्वाभाविक है। एक ऐसा कल्पतरु जो सबको गले लगाए, सबको छाँह दे और सबकी आकांक्षाओं की पूर्ति करे। ‘सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया:’। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में...।

-श्वेता




8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भूमिका और सराहनीय रचनाओं का चयन, आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत धन्यवाद सुन्दर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद मेरी रचना प्रेषित करने के लिए।आभार आदरणीय

    जवाब देंहटाएं

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