जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।
अब पेश है.....
कुछ चुनी हुई रचनाओ के अंश.....
तुम्हारे बंद दरवाज़े पर❣️
दस्तक देते हुए इंटरव्यू लेने वाली महिला अभिभूत है और प्रश्न पुछती है कि आप इतने पॉजिटिव कैसे है ? सामने वाला व्यक्ति बोलता है कि अपनी माँ की वजह से
आत्मीय जन और मित्रों की
कई दुआएं,पूजा, भक्ति मुझे छीन कर मृत्यु मुख से
फिर से वापस ले आई थी
और चिकित्सक की मेहनत भी
धीरे-धीरे रंग लाई थी
रूखी सूखी में कटे, जिनके बीते साल,
सत्ता मिलते ही हुए, कैसे मालामाल,
नेता बनते ही हुए, तेवर बड़े अजीब, कुर्सी पाते ही चलें, ये शतरंजी चाल
सब करते हैं जग में अपने ही मन की
कोई किसी का यहाँ गुनहगार नहीं है तुम जीयो, मरो या पा जाओ पुरस्कार कोई
हमें रत्ती भर भी तुमसे कोई सरोकार नहीं है
मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।* कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।
पीते हैं जब चाय तब कहीं।*
कहते हैं आराम बहुत है।।*
बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*
फोनों पर पैगाम बहुत है।।
धन्यवाद....
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
हार्दिक धन्यवाद कुलदीप भाई ! अपनी रचना का अंश यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई ! दिल से आभार आपका एवं सादर वन्दे !
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