।। प्रातः वंदन।।
' कठिन होगी राह मगर
कुछ नया सृजन होगा
विचारों का अतिरेक होगा
एक नया स्पंदन होगा !
प्रखरित होंगे नये कुसुम
दूर क्षितिज में
नए सूर्य का आगमन होगा
सुहानी-सी भोर होगी
देखो प्रस्फुटित फिर से जीत होगी..'
मनीष मूंदड़ा
इसी सुहानी भोर संग आनंद लीजिए 'एक बोर आदमी का रोजनामचा'से
जिसमे मै पड़ा रहना चाहता हूँ
किसी मगरमछ की तरह
या फिर बहता रहना चाहता हूँ,
चुपचाप, किसी टूटे पेड़ के तने
या लट्ठे जैसा
या फिर..
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घराना एक ही है हमारा, एक ही घर है हमारा
सजाना संवारना इसे ही है ,यही अपना ठिकाना
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वक्त मिला नहीं अकसर बहाना होता,
वक्त का आना-जाना तो रोजाना होता।
वक्त नहीं करता किसी का इंतजार,
पकड़ो तो याराना, छोड़ो तो वेगाना होता।
नहीं होती भेंट अकल और उमर की,
एक का आना तो, एक का जाना होता।
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क्या मिला....ये छोड़िये
आज दुपहरी क्रोशिया चलाते हुए एक पोडकास्ट सुना। इतना सकारात्मक कि मेरे पास शब्द नहीं है।
पोडकास्ट में एक व्यक्ति अपने साथ हुए एक दुखद हादसे को यह कहकर परिभाषित कर रहा है कि जो भी होता है अच्छे के लिये होता है ।
इंटरव्यू लेने वाली महिला..
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भ्रष्ट आचरण का लगा, नेताजी को रोग,
फल इनकी करतूत का, भुगतें बाकी लोग,
जंगल के इस राज में खुदगर्जी आबाद,
जनता भूखी डोलती, नेता छप्पन भोग...
दोहा मुक्तक के साथ ,आज यही तक मिलते कल फिर नये प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र जी के संग।
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
अप्रतिम अंक
जवाब देंहटाएंआभार उत्कृष्ट रचनाओं के लिए
सादर
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाएं
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