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मंगलवार, 19 सितंबर 2023

3885....मैं किसी के लिए बेशकीमती

 मंगलवारीय अंक में आप
 सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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सुकूनी चादर सा तुम्हारा अहसास,
आसमानी शाल सा तुम्हारा विस्तार,
ज़िंदगी यूँ नहीं गुज़र रही लम्हा-लम्हा,
कुछ तो अच्छा लिखा था मेरे खातों में …
जिनकी एवज़ में तुम मिलीं.


भजन न जोगी सारंगी कै
कुटिया, मठ सन्नाटा हौ 
पक्की सड़क बनल हौ लेकिन
कदम, कदम पर काँटा हौ
नेता डेंगूँ कहैँ धरम के
कवन देश कै हाल बा.



मैं निराकार मे भी आकार भर दूँ 
मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ 
मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं 
मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं
 
मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को 
हर पल रहता तैयार हूँ 
मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद 
किसी के लिए बेकार हूँ...


इस अजनबी दुनिया में अकेला ख़्वाब हूँ मैं
दूसरे से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझे न मुझे उनके लिए कौन समझा
जो समझ गया उनकी खुली किताब हूँ मैं..

और चलते-चलते

कभी पौधा उखाड़ो दिवस भी...

यह साधारण-सी दिखने वाली खरपतवार आज हमारे लिए और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी कई दशकों से एक जानलेवा समस्या बनी हुई है। परन्तु हमारी हर समस्या के लिए सरकार पर निर्भर रहना या उस पर दोषारोपण करना हमारी निष्क्रियता को उजागर करता है। हमारी अपनी समस्याओं के हल के निष्पादन के लिए हम सभी को जागरुक रहना है और दूसरों को भी समय-समय पर करते रहना चाहिए। जैसे भूकंप आने पर हम किसी की मदद के लिए आने की प्रतीक्षा किए बग़ैर फ़ौरन घर से निकल कर अपनी बचाव के लिए खुले स्थान की ओर तेजी से भागते हैं। .. नहीं क्या ? .. तभी तो हम, हम से हमारा समाज, हमारे समाज से हमारा देश .. एक उज्ज्वल भविष्य की कामना कर सकता है .. बस यूँ ही .. शायद

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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।






6 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी आज (शुक्रवार की जगह मंगलवार को ही) की अप्रत्याशित प्रस्तुति में शामिल करने हेतु .. बस यूँ ही ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सटीक रचनाएं
    अप्रतिम
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी इस रचना को आज के अंक मे जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. मस्त मस्त हलचल आज की … आभार मेरी रचना को शामिल किया आपने …

    जवाब देंहटाएं

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