जय मां हाटेशवरी.......
कोई देश पराधीन नहीं होना चाहिये......
क्योंकि हमने प्राधीनता का जहर चखा है.....
आक्रमणकारियों का सबसे पहला लक्ष्य.....
पराधीन देश की महिलाएं व बच्चियां होती है.....
तभी तो रानी पद्मनी ने हजारों क्षत्रानियों के साथ......
जौहर करना ही उचित समझा था......
....
हे कृष्ण
तुम्ही अफगानी महिलाओं व बच्चियों की
इन दरिंदों से रक्षा करो......
अब देखिये मेरी पसंद.....
बंधन मुक्त प्रभात - -
हमने देखा है निरीह
लोगों का महा
निष्क्रमण,
रेल की
पटरियों में बिखरे हुए अंग प्रत्यंग,
गंगा के किनारों पर उभरी हुई
क़ब्रें,
जली हुई झोपड़ियां,
टूटी हुई हांड़ी,
बिखरे
हुए अध पके
चांवल,
अब इस शब्द पर प्रतिबंध तो लग गया ! पर देखना यह है कि वर्षों से कव्वालियों और भजनों में प्रयुक्त होता आया यह शब्द, अपने सकारात्मक अर्थ को कब फिर से पा सकेगा
! क्या लोग इस शब्द के सही अर्थ को समझ इसे फिर से चलन में ला सकेंगे ! गुरु गोरखनाथ जी के ही शब्दों में, कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद
ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !
आज भी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरख-धंधा नाथ, योगी, जोगी, धर्म-साधना में प्रयुक्त एक पावन
आध्यात्मिक मंत्र योग विद्या है जो नाथ-मतानुयायियों की धार्मिक भावना से जुडी हुए है !
हर शाम यादों को लाती और न चाहते हुये भी उदासी मुझे घेर लेती।बिल्कुल अकेला खड़ा मै अपने जीवन के वीरान राहों पे बड़ा उदास हो जाता।आँखे कभी कभी ढ़ुँढ़ती तुम्हें
यहाँ वहाँ पर फिर बेचारी थक कर सो जाती।सुबह से रात तक कितने ख्वाब संजोता मै परन्तु फिर रात का डरावना ख्वाब सब चकनाचूर कर देता।चाहता मै कुछ प्रणय गीत लिखूँ
आज पर क्या करुँ उदासी भरे नगमें ही बना पाता।चाहता आज लिखूँ उस क्षण के बारे में जब तुम मिली थी मुझे पहली बार,पर हर बार वो आखिरी रात ही याद आता मुझे और उदास
जिंदगी की तन्हा राहों पर फिर अकेला बेसुध सा मै चल पड़ता ढ़ुँढ़ने तुम्हें।
भाई भतीजा वाद बहुत है
भ्रष्टाचार आबाद बहुत है
मानवता ईमान नहीं
कुछ
धर्म के नाम पे
फसाद बहुत है
ऐसा देश है मेरा ऐसा देश है मेरा
कहा था तुमने
असंभव शब्द
सिर्फ
डिक्शनरी में होता है
हक़ीकत में तो
हम
लड़ना जानते हैं
चाँदनी में झूमती,
मुस्कुराती टहनी,
रातें भी थी रंगीन......
आते-जाते पंथी भी मुदित होते,
खूबसूरत फूलोंं पर.....
कहते "वाह ! खिलो तो ऐसे जैसे ,
खिला सामने गुलमोहर"......
विशाल गुलमोहर
हर्षित हो प्रसन्न,
देखे अपनी खिलती
सुन्दर काया,
नाज किये था मन ही मन......
धन्यवाद
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
शुभ प्रभात..
मुस्कुराती टहनी,
रातें भी थी रंगीन......
आते-जाते पंथी भी मुदित होते,
खूबसूरत फूलोंं पर.....
कहते "वाह ! खिलो तो ऐसे जैसे ,
खिला सामने गुलमोहर"......
विशाल गुलमोहर
सादर..
आभार यशोदा जी!🙏🙏
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंअफगान के प्रति संवेदनशील भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सार्थक रचनाओं का संकलन।
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