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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

3530...वही पाना चाहे मन! जो हाथों से परे...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में ताज़ा-तरीन प्रकाशित पॉंच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।  आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

अज्ञात स्वर्ग--

हम
बहुधा उसे
पा कर भी खो देते हैं, बहुत कठिन है अग्नि
वलय से हो कर गुज़रना, हर हाल में तै
है मुट्ठियों में बंद, मोह माया का

एक दिन बिखरना,

जो हाथों से परे

पूर्ण, अतृप्त चाह कहां,

आस लिए, यह मानव, मरता यहाँ,

पाने को, दोनो जहां,

मानव, घृणित पाप करता यहां,

स्वार्थ पले,

वही पाना चाहे मन!

जो हाथों से परे...

जय मैया चंद्रघंटा

पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ जग में विचरण करती।

उग्र कोप और रौद्र रूप में सबका चिंतन करती।

अपने भक्तों के अनुरूप,सबको भाये तेरा रूप।

मैया चंद्रघंटा...

समीक्षा : एक विमर्श

अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है रिपोर्ट इसे हिंदी शब्दकोश में रपट के रूप में भी स्वीकार किया गया है और ग्रामीण अंचल में लोग बहुतायत में रिपोर्ट के स्थान पर रपट शब्द ही प्रयोग करते हैं जो स्वीकार्य है।जैसे थाने में रपट लिखाना,रपट करना आदि। लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा का थोड़ा-बहुत भी जानकार है वह रपट के स्थान पर देवनागरी में भी रिपोर्ट ही लिखना पसंद करता है।

मरीचिका

माँ छोरी न बाप न मिला, प्रेमी बहुत मिले।

कहते हुए माँ से लिपट कांता रोने लगती है। गाँव की सबसे होनहार ज़िद्दी,पढ़ी-लिखी लड़की कांता उस समय की पाँचवी पास। दुनिया से टकराने का जुनून,विधवा हो दूसरा विवाह रचाकर निकली थी गाँव से।

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सार्थक सूत्रों से परिपूर्ण अंक।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    सभी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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