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शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

1183....लिखा हुआ पढ़ते पढ़ते, नहीं लिखा पढ़ने से रह गया था


भारतीय दर्शन में देवी को शक्ति का दिव्य रुप माना गया है।  
सृष्टि के सृजन में परम तत्व शक्ति ही है।
भारतीय अध्यात्म के अनुसार मन-बुद्धि में व्याप्त अज्ञान,काम,क्रोध, लोभ,मोह को नाश करने हेतु मातृ शक्ति का आहृवान किया जाता है 
मन में स्थित ज्ञान ज्योति को शक्ति का सकारात्मक रुप मानकर 
जगाया जाता है ताकि मन के सारे विकारोंं से मुक्त होकर जीवन 
लोक कल्याण के लिए कर्म को तत्पर हो सके।
★★★
साहित्य सिंधु से निसृत जलधारा से कुछ बूँद अमृत का रसपान आप भी करिये पढ़िये स्मृतिशेष केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएँ
1934-2018
दुख हूँ मैं एक नये हिन्दी कवि का
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छन्द में?
जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
साँसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिये?
पर, एक नन्हा-सा
किलकता प्रश्न आकर
हाथ मेरा थाम लेता है,
कौन जाने क्या लिखा हो?

किसी को प्यार करना 
तो चाहे चले जाना सात समुंदर पार 
पर भूलना मत 
कि तुम्हारी देह ने एक देह का 
नमक खाया है।
आदमी के जनतंत्र में 
घास के सवाल पर 
होनी चाहिए लंबी एक अखंड बहस 
पर जब तक वह न हो 
शुरुआत के तौर पर मैं घोषित करता हूं 




चलिए अब आज की नियमित रचनाएँ पढ़ते है

★★★
आदरणीय अमित निश्छल जी

सरल हृदय के हर कोने को, नंदन वन महकाते देखा
मैंने चंदा को रातों में, हँसकर नीर बहाते देखा।

तारों के दीपित शिविरों में
रातों के तिरपाल तले,
विदा हुआ जब अर्क डूबता
अंधकार फुफकार चले।
वीर वेश में खद्योतों को, तंतु-तंतु हर्षाते देखा
मैंने चंदा को रातों में, हँसकर नीर बहाते देखा।
★★★★★
आदरणीया अनिता जी की लेखनी से
न  जाने  कब  तू   दरवाजे  पर दस्तक दे,
इसी   बहाने  कुंडी   हटाये    बैठा,

बातें  करता  तेरे  जाने  पर  सूकून  से  जीने  की,
यादों  को  सीने  से  लगा, अश्को में  डूबा बैठा,
★★★★★

आदरणीया अपर्णा जी की कृति
My photo
वासना की लपलपाती जीभ
भस्म कर देती है सारे नैतिक आवरण,
आवाज़ तेज कर लड़की,
बाज़ार के ठेकेदार,
भूल रहे है तुम्हारी कीमत
डरना गुनाह है,
★★★★★

नवरात्र-व्रत मौसम बदलने के अवसरों पर किए जाते हैं। एक बार 
जब ऋतु सर्दी से गर्मी की ओर और दूसरी बार तब जब ऋतु गर्मी 
से सर्दी की ओर बढ़ती है। साधारणतः यह देखा जाता है कि ऋतु परिवर्तन के इन मोड़ों पर अधिकतर लोग सर्दी जुकाम, बुखार, 
पेचिश, मल, अजीर्ण, चेचक, हैजा, इन्फ्लूएंजा आदि रोगों से पीडि़त 
हो जाते हैं। ऋतु-परिवर्तन मानव शरीर में छिपे हुए विकारों 
एवं ग्रंथि-विषों को उभार देता है। 
★★★★★★
कुछ था जरूर उन सब जगहों पर जहाँ से गुजरा था मैं एक नहीं 
हजार बार जमाने के साथ साथ और कुछ नहीं दिखा था कभी भी ना मुझे ना ही जमाने को कुछ दिखा हो किसी को ऐसा जैसा ही कुछ लगा भी नहीं था अचानक जैसे बहुत सारी आँखे उग आई थी शरीर में और बहुत कुछ दिखना शुरु हो गया ...




★★★★★★
आज यह अंक आपको कैसा लगा?
कृपया अपनी प्रतिक्रिया के द्वार अपने सुझाव अवश्य दीजिए

हमक़दम के विषय के लिए 

कल आ रही आदरणीय विभा दी अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ
आज के लिए इतना ही
है सारे नैति★★क आवरण,

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन अंक
    आभार केदारनाथ सिंह की कविताएँ के लिए
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात,
    ग़ज़ब सकलं हैं,सभी रचनाये एक से बढ़कर एक लग रही हैं।प्रारंभ भी आने बहुत रोचक तरिके से किया है।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय श्वेता जी शुभ प्रभात केदारनाथ सिंह की रचनाओं के संयोजन से यह अंक विशिष्ट बन पड़ा है। सभी
    रचनाएँ उत्तम है चयनित रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन....
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय श्वेता जी शुभ प्रभात
    केदारनाथ सिंह की रचनाओं के संयोजन से यह अंक प्रारंभ विशिष्ट बन गया ।
    सभी रचनाएँ उत्तम है चयनित रचनाकारों को बधाई
    मेरी रचना को स्थान दिया, आपका अति आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर शुक्रवारीय हलचल प्रस्तुति। सुन्दर सूत्रों के साथ 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह बहुत सुन्दर श्वेता!!
    आपकी प्रस्तुति विहंगम, विचार शील और व्याख्यात्मक तो होती है साथ ही रोचक भी, बहुत शानदार प्रस्तुति ।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन अंक , केदारनाथ जी की कवितायें पढवाने के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर अंक है, भाव पूर्व रचनाओं की प्रस्तुति के लिये आपका आभार श्वेता जी।
    नश्छल जी की यह पंक्ति..

    मैंने चंदा को रातों में, हँसकर नीर बहाते देखा।
    भावनाओं से भरी है..
    शक्ति की बात करूँ, तो जब शिव ही इसके बिन शव हैं,तो इस सत्ता को सदैव नमन करना चाहिए। बालक जब माँ के गोद में होता यूँ कहे गर्भ में ही ... तभी से यह नारी रूपी शक्ति उसके रक्षक की भूमिका में प्रस्तुत रहती है।

    जवाब देंहटाएं

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