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रविवार, 7 अक्टूबर 2018

1178.....नेह आँच में ही गलना सीखो

सादर अभिवादन
ज़नाब लिंक चुनकर रख गए
कह गए लगा देना
सूचना हम आकर दे देंगे
अब भुगतो....

पिघल धूप में जाते हो 
क्यों फूलों सा मुरझाते हो
सुनो मोम नहीं फौलाद बनो
नेह आँच में ही गलना सीखो

सलवटों में उमर की छुपी हुई
दबी घुटी हुई कुछ निशानियाँ 
पूरा करना हो स्वप्न अगर 
गले हौसलों के मिलना सीखो

जिंदगी ने जो दी सज़ा क्या है...
हम भी समझें....ये माज़रा क्या है...?

अब वो रहते हमारे पहलू में..
बात बस इतनी सी...ख़ता क्या है..?

हम समझते हैं उसकी मज़बूरी...
अब समझने को कुछ रहा क्या है...?

विलख-विलख कर जब कोई रोता है,
क्यूँ मेरा उर विचलित होता है?
ग़ैरों की मन के संताप में, 
क्यूँ मेरा मन विलाप करता है?
औरों के विरह अश्रुपात में,
बरबस यूँ ही क्यूँ....
द्रवित हो जाती हैं ये मेरी आँखें.....

जिनके बिगड़े रहते हैं बोल,
बातों में विष देते घोल।
वे सोच समझ कर नहीं बोलते,
नहीं जानते शब्दों का मोल।
आपे में वे नहीं रहते हैं,
जो मुँह में आता है कहते हैं।
वे नहीं जानते छिछली बातों से,
खुल जाती है उनकी पोल।

मैं शब्द किसानी करता हूँ, कहो किसी से भी क्या डरना?
भावों से सिंचित करता हूँ, जिसमें अपना सा इक झरना
ना साहित्यिक ज़मींदार हूँ, खेती कितनी? बस है रोड़ी
बोता हूँ उनमें शब्दों को, नियमित ही मैं थोड़ी-थोड़ी;
श्रम उसमें मिल जाने से फिर, मिट्टी उर्वर सी हो जाती

ये रजत बूंटों से सुसज्जित नीलम सा आकाश
ज्यों निलांचल पर हिरकणिका जडी चांदी तारों में

फूलों  ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
आई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के

विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
छूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित  धरा को है

घाव से रिस्ते खून से एक धब्बा रहा
हुआ नासूर तो ना कोई  धब्बा  रहा।

निकला   हर  रोम  से  खून  अपने
उसका ऐसा निकाला कसीदा रहा।

उसी कूचे में जाते  रहे हैं  हम  मगर
इंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।

जख्म  दिल  का  रहा,  आँखें  बरस  गई !
मुहब्बत  रही  वो  मेरी,  क्यों  खामोश   रही ?

ज़ज्बात  दिल  के  सीने   में   दफ़न  हुयें,
आँखों में तैरते  सपनें एक पल में ओझल हुयें,

आभार, आपने हमारा मान रखा
दिग्विजय ..












13 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    बढ़िया रविवारीय अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    बहुत ही सुंदर संकलन
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजवाब हलचल
    कई रचनाओं ने मन मोह लिया.
    दिग्विजय जी की कहानी "एक चुटकी जहर" बड़ी लाजवाब है सबको पढनी चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात आदरणीय

    बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर हलचल। मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर ,उम्दा रचनाएं...शानदार प्रस्तुतिकरण..

    जवाब देंहटाएं
  8. शुभ संध्या आदरणीय सर,
    बहुत अच्छी पठनीय रचनाओं का शानदार संकलन है आथ के अंक में। मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार आपका।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति, सादर।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।
    मेरी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं

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