जिन लोगों का है उनमें मैं अपने को पाता हूँ।
अच्छा हो कि अब अहद करें.. अगर हम सच में चाहते हैं कि हिन्दी लगातार समृद्ध हो तो हम साल में
पांच से दस किताबें जरूर खरीदें और अपने संगी साथियों को हिन्दी किताबें भेंट करें..
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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अब वहाँ हर चीज़ है अजनबी
जवाब देंहटाएंचुपपी ही लगती है भली
महमान कहलाते हैं जहाँ हम
मायके कह कर उसे बुलाते हैं
अब हम
स्त्री के मनोभाव पर बहुत ही सुंदर और सजीव रचना पढ़ने को मिली। आभार आप सभी रचनाकारों का।
जहाँ, तक हिन्दी की बात है,तो वे भद्रजन जो स्वयं को आम आदमी से अलग समझते है, वे अपनी मातृभाषा को सम्मान देने लगेंगे,अपने ही घर में दासी कहलाने का उसका दर्द दूर हो जाएगा।
तब न पखवाड़े की आवश्यकता होगी, न दिवस की...
सुबह सुबह इन सुंदर रचनाओं के लिये पुनः आभार।
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंप्रारम्भ धर्मवीर भारती की पंक्तियों के साथ
आनन्दित हुई
सटीक चयन
सादर
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी भूमिका और उम्दा लिंक संयोजन । चयनित रचनाकारों को बधाई । संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपका ।
जवाब देंहटाएंसार्थक श्रम
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और उम्दा प्रस्तुति ,चयनित रचनाकारों को बधाई । संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा भूमिका...जानदार रचनाओं से सजा आज का अंक बेहद प्रभावशाली लगा पम्मी जी।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें।
हम तो कबसे कह रहे हैं कि जैसे धनतेरस पर बर्तन खरीदने का सगुन है, वैसे ही वसंत पंचमी को पुस्तक खरीदने का पर्व मनाएं, कम से कम एक हिंदी साहित्य की। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआमीन
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन...
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